सुप्रीम कोर्ट ने बताया पति का कर्तव्य
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सुप्रीम कोर्ट ने बताया पति का कर्तव्य, 'पति को मजदूरी करके भी करना होगा पत्नी-बच्चों का भरण-पोषण'

पत्नी-बच्चों की देख रेख को लेकर चल रहे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना अहम फैसला सुनाया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, 'यह पति का कर्तव्य है कि...

राज एक्सप्रेस। पिछले कुछ समय से सुप्रीम कोर्ट में पत्नी और बच्चों की देख रेख को लेकर मामला चल रहा था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को अपना अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पति को उसका कर्तव्य बताया है। साथ ही उनका हर हाल में भरण-पोषण' करने की बात कही है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला :

दरअसल, पत्नी और बच्चों की देख रेख को लेकर चल रहे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, 'पति का यह कर्तव्य है कि वह अपनी अलग हो चुकी पत्नी और नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करे। उसके लिए भले ही उसे शारीरिक श्रम करना पड़े। पति को हर हाल में पत्नी और बच्चों की आर्थिक सहायता करनी होगी। वह अपने दायित्व से बच नहीं सकता है। पति को केवल कानूनी आधार पर शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होने पर ही इससे छूट मिल सकती है।'

कैसे पहुंचा मामला कोर्ट :

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि, 'CRPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का प्रावधान सामाजिक न्याय का एक उपाय है जो विशेष रूप उन महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था जो इसलिए वैवाहिक घर छोड़ने को मजबूर हुई ताकि अपना और बच्चे के भरण-पोषण की कुछ उपयुक्त व्यवस्था कर सके।' बता दें, यह मामला कोर्ट तक एक पति की याचिका के माध्यम से पहुंचा था। साथ ही कोर्ट ने उस पति की याचिका भी स्वीकार करने से साफ़ मन कर दिया था। इस याचिका में मांग की गई थी कि, उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और उनका कारोबार अब बंद हो गया है। इसलिए वह अपनी पत्नी की आर्थिक मदद नहीं कर पाएगा।' जबकि, कोर्ट ने अपनी याचिका दायर करने वाले पति को अपनी पत्नी को 10,000 रुपये प्रति माह और अपने नाबालिग बेटे को 6,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने दिए आदेश :

इस मामले की सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'पति शारीरिक रूप से सक्षम होने के कारण, वैध साधनों से कमाने और अपनी पत्नी तथा नाबालिग बच्चे को मेटिनेंस देने के लिए बाध्य है। फैमिली कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता-पत्नी के साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, और रिकॉर्ड पर अन्य सबूतों को ध्यान में रखते हुए कहा कि यह मानने में कोई हिचक नहीं है कि प्रतिवादी के पास आय का पर्याप्त स्रोत था और वह सक्षम था, लेकिन वह दायित्व निभाने में असफल रहा।'

पीठ का कहना :

पीठ ने कहा कि, 'CRPC की धारा 125 की कल्पना एक महिला की पीड़ा और वित्तीय पीड़ा को दूर करने के लिए की गई थी, जिसे वैवाहिक घर छोड़ने की नौबत आ गई। पत्नी और नाबालिग बच्चों को वित्तीय मदद प्रदान करना पति का परम कर्तव्य है। पति के लिए शारीरिक श्रम से भी पैसा कमाने की जरूरत होती है, अगर वह सक्षम है। कानून में वर्णित कुछ आधारों को छोड़कर वह (पति) पत्नी और बच्चे के प्रति अपने दायित्व से बच नहीं सकता।'

क्या था मामला ?

बताते चलें, सुप्रीम कोर्ट में जिस पति ने याचिका दायर की थी वह साल 2010 में अपने परिवार से अलग हो गया था। उसकी पत्नी पति का घर छोड़ छोड़कर बच्‍चों के साथ अलग रहती है। पति का घर छोड़ने के बाद वह काफी सालों से अपने और बच्चों के भरण-पोषण के लिए कानून का दरवाजा खटका रही थी। इस फैसले से इस महिला को भी काफी राहत मिलेगी।

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