राज एक्सप्रेस। देशव्यापी लॉक डाउन चलने के साथ इन दिनों सबसे अधिक दिहाड़ी मजदूरों के एक साथ भारी संख्या में उमड़े हुजूम की काफी चर्चा हो रही है, क्योंकि वे बेघर हैं और सड़कों पर आ गए हैं उनकी ये परेशानी में उनको कोरोना वायरस का बिल्कुल भी डर नहीं है और एक साथ मजदूरों की उमड़ती भीड़ से देशबंदी की धज्जियां उड़ रही हैं।
सड़कों पर नजर आ रही मजदूरों की भीड़ से सवाल यह उठता है कि, आखिर यह कैसी सोशल डिस्टेंसिंग है, क्योंकि हर तरफ आम लोगों को सिर्फ और सिर्फ एक ही सलाह दी जा रही है कि सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें... जहाँ हैं, वहीं रहें, लेकिन इन मजदूरों का ना कोई घर, ना कोई ठिकाना है और ऐसे में उन्हें कुछ भी नहीं सूझ रहा है और वह अपने घर जाने के लिए बेताब हैं। एवं हजारों की संख्या में मजदूर वर्ग के लोग हाइवे किनारे पैदल मार्च करते हुए अपने घर जा रहे हैं। मजदूरों की जो मौजूदा स्थिति है उसे देखते हुए इन लोगों में सामाजिक दूरी या कहें सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना कतई संभव नहीं है।
आशंका वाली बात तो ये है कि, इतने बड़े स्तर पर लोगों की भीड़ में अगर एक भी व्यक्ति कोरोना वायरस का शिकार हुआ, तो इस महामारी के और अधिक फैलाने का डर रहेगा। इसके अलावा सरकार द्वारा चलाई गई मुहिम पर पानी भी फिर सकता है। बताया जा रहा है कि, घर लौटने वाले इन मजदूरों की सबसे अधिक तादात उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान की है।
मजदूरों के इस पलायन के कारण Covid-19 वायरस को फैलने से रोकना सरकार के लिए बड़ी चिंता एक चुनौती का विषय है। इसके अलावा मजदूरों के इस पलायन को देखते हुए सरकार को अपनी रणनीति में कुछ बदलाव भी लाना पड़ सकते हैं। हालांकि, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) द्वारा इस चुनौती के लिए रणनीति बनाना शुरू कर दी गई है और सरकार ने उन जिलों को 'हाई रिस्क' का टैग दे दिया है जहाँ के यह मजदूर हैं।
एक साथ इकट्ठी हुई बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ में संभावना यह है कि, कई लोग इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो सबसे बड़ी चुनौती होंगे ग्रामीण इलाके, क्योंकि, ग्रामीण इलाकों में कोविड-19 से लड़ने के इंतजाम सीमित होंगे। इसको दृष्टिगत रखते हुए सरकार ने IDSP के तहत इन लोगों की मॉनिटरिंग करने के लिए रणनीति बनाई है, इसके तहत रैपिड रेस्पॉन्स टीमें इनके गंतव्य स्थान और सफर के दौरान भी इन लोगों की सेहत पर कड़ी निगरानी रखेंगी।
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