‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन
‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलनSyed Dabeer Hussain - RE

अंग्रेजो को भारत से खदेड़ने के लिए हुई थी ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत

‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने ‘करो या मरो' नारे के साथ की थी। यह आंदोलन देखते ही देखते देश की सबसे बड़ी क्रांति बन गया। आइए जानते हैं इस आंदोलन के बारे में कुछ खास बातें।

राज एक्सप्रेस। भारत देश की आज़ादी के लिए ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन का प्रस्ताव आज ही के दिन यानि 8 अगस्त 1942 को पारित किया गया था। इस आंदोलन को भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद करवाने वाली सबसे लंबी लड़ाइयों में से एक माना जाता है। इस आंदोलन के साथ ही देशवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने परचम बुलंद कर लिए थे, और उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। महात्मा गांधी के अहम योगदान और अहिंसा के साथ शुरू हुए इस ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। चलिए आज हम आपको इस आंदोलन से जुड़ी कुछ खास बातों से अवगत करवाते हैं।

'करो या मरो' नारे के साथ हुई आन्दोलन की शुरुआत :

इस ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ की शुरुआत महात्मा गांधी ने ‘करो या मरो' नारे के साथ अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिहाज से की थी। 9 अगस्त को 'ऑपरेशन जीरो ऑवर' के अंतर्गत अंग्रेजी हुकूमत ने कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया। महात्मा गांधी को पुणे के आगा खां महल में और अन्य साथियों को अहमदनगर के दुर्ग में कैद किया गया था। ब्रिटिश सरकार ने सभी जुलूसों पर बैन लगा दिया और कांग्रेस को भी अवैध संस्था घोषित कर दिया गया।

नेताओं की गिरफ्तारी :

बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद आंदोलन चल रहा था। जिसे देख अंग्रेज भी चकित थे कि किसी बड़े नेता के बिना आंदोलन कैसे चल रहा है। दरअसल यह अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा था जो भारी पड़ रहा था। कई बार अंग्रेजों ने इसके लिए लाठी और बन्दूक का सहारा भी लिया।

गोवालिया टैंक मैदान का भाषण :

इसके पहले महात्मा गांधी ने करीब 70 मिनट तक गोवालिया टैंक मैदान में भाषण दिया था और लोगों से कहा था, अपने दिलों में एक बात उतार लें, करो या मरो। इसके उपरांत जब सभी बड़े कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई तो आंदोलन की बागडोर आमजन के हाथों में आ गई। जिसके साथ ही यह आंदोलन अहिंसा का रास्ता छोड़ हिंसा के रास्ते पर आ गया। लोगो ने 250 रेलवे स्‍टेशन, 150 पुलिस थाने और 500 पोस्‍ट ऑफिस में आग तक लगा दी।

1943 तक भारत संगठित हुआ :

अंग्रेजी सरकार ने बताया कि इस हिंसा में 940 लोग शहीद हुए और 1630 लोग घायल हुए थे। लेकिन कांग्रेस के अनुसार मरने वालों की संख्या 10 हजार थी। एक समय ऐसा भी आया जब ब्रिटिश सरकार को भी ऐसा लगने लगा था कि उन्हें अब भारत छोड़ना पड़ेगा। 1943 आने तक भारत संगठित हो गया था।

15 अगस्‍त 1947 को भारत को मिली स्वतंत्रता :

इसके बाद 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को भारत को वायसराय बनाया गया। यह संघर्ष ऐसे ही चलता रहा और आखिरकार 15 अगस्‍त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया। स्वतंत्रता के बाद देश को पहले प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू के रूप में मिले और उन्होंने ध्‍वजारोहण किया।

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