उधम सिंह जयंती
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उधम सिंह : भारत माता का वह वीर सपूत जिसने अंग्रेजों के घर में घुसकर लिया था जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला

जिस समय जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ, उस समय वहां पर 20 साल के उधम सिंह भी मौजूद थे। उन्होंने प्रतिज्ञा ली की वह इस नरसंहार का बदला जनरल डायर और पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर को मारकर ही लेंगे।

राज एक्सप्रेस। आज भारत माता के वीर सपूत और महान क्रांतिकारी रहे शहीद सरदार उधम सिंह की जयंती है। 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में जन्मे उधम सिंह महज 42 साल की उम्र में देश के लिए सूली पर चढ़ गए थे। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किए गए बर्बर जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लंदन जाकर अंग्रेज अफसर माइकल ओ डायर को मारकर लिया था। तो चलिए शहीद उधम सिंह की जयंती पर जानते हैं जलियांवाला बाग नरसंहार और उसके बदले की कहानी।

जलियांवाला बाग नरसंहार :

दरअसल साल 1919 में ब्रिटिश सरकार के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे। वहां लोग शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेज फौज की एक टुकड़ी ने ब्रिगेडियर जनरल डायर ने विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी। इस नरसंहार में 1,000 से ज्यादा निहत्थे स्त्री, पुरुष और बच्चे मारे गए थे। 1,200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

बदला लेने की कसम :

जिस समय जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ, उस समय वहां पर 20 साल के उधम सिंह भी मौजूद थे। इस भीषण नरसंहार ने उधम सिंह के मन में अंग्रेजों के लिए नफरत भर दी थी। उन्होंने प्रतिज्ञा ली की वह इस नरसंहार का बदला जनरल डायर और पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर मारकर ही लेंगे। क्योंकि जनरल डायर ने जो किया वह माइकल ओ डायर की परमिशन से ही किया था।

चंदे के पैसे से गए लंदन :

जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद उधम सिंह क्रांतिकारियों के साथ शामिल हो गए। दूसरी तरफ जनरल डायर और माइकल ओ डायर लंदन चले गए थे। ऐसे में उधम सिंह उन्हें मारने के लिए चंदा इकट्ठा कर देश के बाहर चले गए। हालांकि उनके लंदन पहुंचने से पहले ही जनरल डायर की ब्रेन हैमरेज के चलते मौत हो गई थी। ऐसे में उन्होंने अपना पूरा फोकस अब माइकल ओ डायर को मारने पर लगाया।

ऐसे लिया बदला :

माइकल ओ डायर को मारने के लिए उधम सिंह 6 साल तक लंदन में रहे और सही मौके का इंतजार करने लगे। 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी। जब उधम सिंह को पता चला कि माइकल ओ डायर इस बैठक में हिस्सा लेंगे तो वह भी वहां पहुंच गए। उधम सिंह अपने साथ एक मोटी किताब में बंदूक छुपाकर ले गए थे। जैसे ही माइकल ओ डायर उनके करीब आए, उन्होंने किताब से बंदूक निकालकर माइकल ओ डायर को 2 गोली मार दी। इससे माइकल ओ डायर वहीं पर मारे गए।

हुई फांसी की सजा :

इस घटना के बाद अंग्रेजों ने उधम सिंह को पकड़ लिया और उन पर माइकल ओ डायर की हत्या का केस चला। 4 जून 1940 को उन्हें हत्या का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। देश की आजादी के बाद साल 1974 में अंग्रेजों ने उनके अवशेष भारत को सौंपे थे।

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