राजएक्सप्रेस। कोरोना की इस महामारी और लॉक डाउन के बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की चिंता अब बढ़ गई है। उनके सामने मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर के बड़ा राजनितिक संकट खड़ा हो गया है। दरअसल भारतीय संविधान के हिसाब से कोई भी शख्स बिना किसी सदन से जुड़े मुख्यमंत्री या मंत्री तो बन सकता है, लेकिन सिर्फ 6 महीने तक, इस 6 महीने में उसे किसी भी एक सदन का सदस्य बनना अनिवार्य होता है, अन्यथा वो पद छोड़ना होता है। उद्धव ठाकरे की स्थिति भी अभी कुछ ऐसी ही है। ठाकरे अब तक किसी भी सदन के सदस्य नहीं बन सके हैं। इन्होंने ने 28 नवंबर को एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाकर प्रदेश में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाई थी, और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए 28 मई तक प्रदेश के किसी भी सदन की सदस्यता हासिल करनी होगी।
बीते 26 मार्च को महाराष्ट्र में 9 विधानपरिषद सीटों पर चुनाव होना था, लेकिन सूबे में कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए अनिश्चितकाल के लिए चुनाव को टाल दिया गया।
जिसके बाद महाराष्ट्र कैबिनेट ने विधानपरिषद का सदस्य मनोनीत करने को लेकर महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसपर उन्होंने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है, तो महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने एक बार फिर सोमवार को विधानपरिषद की खाली एक सीट पर उद्धव को एमएलसी मनोनीत करने के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से दोबारा सिफारिश की है।
भारतीय संविधान के तहत राज्यपाल को कुछ निश्चित संख्या में विधानपरिषद में सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार होता है। मनोनीत एमएलसी के लिए कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा पृष्ठभूमि वाला होना जरूरी है, तब जाकर राज्यपाल अपने विवेक से किसी सदस्य को मनोनीत करते हैं। राज्यपाल की ख़ामोशी मुख्यमंत्री ठाकरे और महा विकास आघाडी के लिए बड़ी चिंता बनी हुई है।
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