दिल्ली की तरह, पुलिस देशव्यापी हड़ताल करती है तो क्या होगा?

दिल्ली में पार्किंग को लेकर पुलिस और वकीलों के बीच विवाद हुआ, जिसके बाद से पुलिसबल ने मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया। अगर यह पूरे देश में हुआ तो क्या होगा?
दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिसबल
दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिसबल सोशल मीडिया

राज एक्सप्रेस। मंगलवार, 4 नवंबर 2019 को भारत के इतिहास में पहली बार हज़ारों पुलिस वालों ने हाथ में प्लेकार्ड्स लेकर, नारे लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली पुलिस ने पुलिस मुख्यालय के सामने यह प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2 नवंबर को पार्किंग को लेकर हुए विवाद का हश्र ये होगा, शायद ही किसी ने सोचा हो।

शनिवार, 2 नवंबर को राजधानी के तीस हज़ारी न्यायालय में पार्किंग को लेकर कुछ वकीलों और पुलिस में विवाद हो गया। इसके एक दिन बाद ही साकेत न्यायालय में भी वकीलों और पुलिस के बीच विवाद हुआ। इन मसलों में पुलिसवालों की पिटाई कर दी गई तो वहीं पुलिस की तरफ से भी गोलियां चलीं।

विवाद के चलते पुलिस और वकील दोनों ही खेमों में नाराज़गी है। एक तरफ पुलिस मुख्यालय के सामने पहली बार पुलिसबल ने विरोध प्रदर्शन किया तो वहीं दूसरी तरफ वकीलों का धरना प्रदर्शन भी जारी है। आज सुबह, 6 नवंबर को धरना दे रहे वकीलों में से 2 ने आत्महत्या करने का प्रयास किया, जिस कारण ये मामला बढ़ता ही नज़र आ रहा है।

यहां एक बात और गौर करने की है कि, वकीलों के राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर संगठन हैं लेकिन पुलिस फोर्स में ऐसा कोई संगठन नहीं है।

वकीलों की संस्था 'द बार काउंसिल ऑफ इंडिया' ने दिल्ली पुलिस की तरफ से हुए विरोध प्रदर्शन को राजनैतिक रूप से प्रेरित बताया। साथ ही ये भी कहा कि ये स्वतंत्र भारत के इतिहास का काला दिन है।

दिल्ली के सभी छह स्थानीय न्यायालयों के वकील पिछले तीन दिनों से धरना दे रहे हैं। वकीलों ने पटियाला हाउस और साकेत जिला अदालतों में मुख्य द्वार बंद कर दिए और लोगों को अदालत परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया।

हालांकि, पुलिसबल का प्रदर्शन समाप्त हो गया है लेकिन अगर ये एक बार हो सकता है तो क्या फिर कभी ऐसा नहीं होगा? विरोध प्रदर्शनों के दौरान भीड़ पर काबू करने वाली पुलिस ही जब विरोध प्रदर्शन करने उतर जाए तो क्या होगा? उन्हें नियंत्रित करने के लिए तो कोई पुलिस बल भी नहीं होगा सामने।

भोपाल ग्रामीण क्षेत्र के डीआईजी डॉ. आशीष बताते हैं कि, पुलिस कंडक्ट रूल्स के मुताबिक विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकती या धरना नहीं दे सकती। पुलिसबल में आंतरिक शिकायत कमेटी होती है, जहां किसी भी परेशानी का निवारण किया जाता है।

कानूनी रूप से पुलिस को हमला करने वाले वकीलों को गिरफ्तार करना चाहिए था। एक ऑन ड्यूटी पुलिस ऑफिसर पर हाथ उठाने या हमला करने के अपराध में उन पर कार्रवाई होनी चाहिए थी लेकिन कानून हाथ में लेने से बात बिगड़ती चली गई और नौबत पुलिस के विरोध प्रदर्शन तक आ पहुंची। वहीं वकीलों ने भी समझदारी नहीं दिखाई और उनका धरना अब तक जारी है।

सर्वोच्च न्यायालय के एक वकील ने इस केस में दिल्ली कमिश्नर को एक नोटिस दिया है।

इस सबके बीच एक प्रश्न जो लगातार उठ कर सामने आ रहा है कि यदि इस तरह की किसी भी घटना के बाद पुलिसबल विरोध प्रदर्शन का रास्ता अपनाता है तो देश के हालात क्या होंगे?

जब भी सुरक्षाबलों की बात होती है तो उनके मानवाधिकारों पर काफी बहसें छिड़ती हैं। हालांकि, इन अधिकारों के लिए कभी कोई ठोस कदम उठाए नहीं गए हैं। कई बार सुरक्षाबलों की बद्तर हालत कई खबरों के माध्यम से सामने आती है पर उन पर आंतरिक कमेटी ही कार्रवाई करती है। ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि पुलिस और समस्त सुरक्षाबलों के पास क्या विरोध ज़ाहिर करने का अधिकार नहीं होना चाहिए?

दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन से किसी भी तरह के हाताहत की खबर सामने नहीं आई। पुलिस ने बताया कि नौकरी पूरी करने के बाद वे विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बने। राजधानी की कानून व्यवस्था में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं आई लेकिन अगर चंद मिनटों के लिए भी पूरे देश में पुलिसबल अपना काम छोड़ विरोध प्रदर्शन करने लगे तो कैसा मंजर होगा?

किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा का सबसे बड़ा स्तंभ पुलिसबल है। ट्रैफिक व्यवस्था मुस्तैद रखनी हो या किसी राजनेता की सभा हो, किसी आपातकालीन ऑपरेशन के लिए अलग कॉरीडोर बनाना हो या किसी कार्यक्रम की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी हो, इत्यादि सभ जगहों पर कानून व्यवस्था बनाए रखने और शांति व्यवस्था की समस्त जिम्मेदारी पुलिस के कंधों पर होती है।

ऐसे में अगर सभी पुलिस ऑफिसर्स विरोध प्रदर्शन का हिस्सा होते हैं तो क्या होगा, ये सोच से भी परे है।

सभी जेलों से अपराधी फरार हो जाएंगे, उनके अपराधों की फाइलें खत्म हो सकती हैं, जो भी महत्वपूर्ण जानकारी हमारे देश के सर्वर्स पर है वो हैक हो सकती है, आतंकवादी तो शायद इस ही इंतज़ार में बैठे हों, देश में न जाने कितने स्लीपर सेल्स हैं जो एक झटके में एक्टिव हो जाएंगे, सभी राजनेता और सरकारी सुरक्षा प्राप्त लोगों की सुरक्षा खतरे में आ जाएगी, तो वहीं किसी भी जुर्म पर कोई नज़र रखने वाला ही नहीं होगा, नक्सली, माओवादी बिना डर के लोगों पर हमला करने लगेंगे और भी न जाने क्या, जो हम सोच भी नहीं पा रहे हैं।

इस हालत में सरकार को जो भी हो पुलिसबल की बात माननी ही होगी, अगर सरकार पुलिस की बात नहीं मानती है तो देश में कानून एवं व्यवस्था एक झटके में समाप्त हो जाएगी। ये सोच कर भी डर लगता है। कई देशों में सेना का विद्रोह देखने को मिला है, वहां की हालत बद्तर है। अफगानिस्तान, सीरिया जैसे देशों में आम लोगों का जीवन पर हर पल खतरे में है।

इन सब परिस्थितियों के आधार पर हम पाते हैं कि सरकार न तो पुलिस के आगे झुक सकती है, न ही उनकी मांगों को नकारा जा सकता है क्योंकि यह सच्चाई है कि कहीं न कहीं सुरक्षा बल बेहद मुश्किल परिस्थितियों में रहकर भी अपनी नौकरी पूरी करते हैं।

हालांकि, इसमें एक सकारात्मक पहलू हम ये पाते हैं कि अगली बार जब कोई विरोध प्रदर्शन हो, जब मजदूर, किसान, विद्यार्थी या आम लोग किसी ज़्यादती का विरोध करने सड़कों पर उतरें तो पुलिस उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार करे।

पुलिस को प्रदर्शन के दौरान न तो आंसू गैंस के गोले झेलने पड़े, न वॉटर कैनेन की तेज धार, न ही लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा, न चेतावनियों का लेकिन आम लोग इस सबको झेलते हुए भी प्रदर्शन का हिस्सा बनते हैं क्योंकि जब किसी के साथ गलत हो और सुनवाई नहीं हो तो विरोध प्रदर्शन के सिवा हमारे पास कोई रास्ता नहीं रह जाता। हम उम्मीद करते हैं कि पुलिस अब आम लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील व्यवहार करेगी।

हम उम्मीद करते हैं कि ऐसी कोई परिस्थिति भारत में न हो और जिस तरह की घटनाएं पिछले हफ्ते में हुईं, वो आगे नहीं दोहराई जाएं।

हम ये भी उम्मीद करते हैं कि सुरक्षाबलों की नौकरी को थोड़ा आसान बनाया जाए ताकि मानवाधिकारों के तहत उनके किसी भी हक का हनन न हो लेकिन इस परिस्थिति ने एक डर पैदा कर दिया है, अगर समस्त सुरक्षाबल या पुलिस हर बार इस ही तरह विरोध प्रदर्शन का रास्ता अपनाने लगेगी तो न जाने क्या होगा?

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