सस्ती शिक्षा पर आपत्ति क्यों?

गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद जेएनयू छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी। छात्रसंघ ने पत्रकार-वार्ता कर साफ किया रुख, सम्पूर्ण फीस वृद्धि वापस नहीं होने तक जारी रहेगा विरोध प्रदर्शन।
23 दिनों से चल रहा है जेएनयू में विरोध-प्रदर्शन
23 दिनों से चल रहा है जेएनयू में विरोध-प्रदर्शनसोशल मीडिया

राज एक्सप्रेस। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, आज देश का सबसे बड़ा मुद्दा है। लगभग तीन हफ्तों से जारी विरोध प्रदर्शन ने कल, 18 नवंबर को राष्ट्रीय रुख ले लिया। हालांकि, कुछ दिन पहले हुए दीक्षांत समारोह में नेल्सन मंडेला सड़क को जाम करने के बाद से ही इसे राष्ट्रीय स्तर पर तूल दे दिया गया था। सोमवार को जेएनयू के विद्यार्थियों ने विश्वविद्यालय से संसद तक मार्च निकाला।

इस मार्च को रोकने के लिए, 800 से अधिक संख्या में पुलिस और अन्य सेक्योरिटी फोर्सेस को तैनात किया गया। जेएनयू से लगभग 1 किमी दूर बेर सराय में विद्यार्थियों के मार्च को रोक, कई छात्रों को गिरफ्तार किया गया। पुलिस की तरफ से बच्चों पर लाठीचार्ज़ हुआ, जिसमें उन्हें गंभीर चोटे आई हैं। हालांकि, दिल्ली पुलिस ने ट्वीट कर कहा कि पुलिस ने छात्रों पर कोई बरबरता नहीं की।

मंगलवार, 19 नवंबर 2019 को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ की ओर से की गई पत्रकार-वार्ता में विद्यार्थियों ने साफ कर दिया कि वे विरोध-प्रदर्शन से पीछे नहीं हटने वाले हैं। उनका तर्क है कि, विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से हॉस्टल मैन्युअल में किए गए बदलाव लोकतांत्रिक नहीं हैं, इसमें न तो छात्रसंघ को शामिल किया गया, न ही हॉस्टल के प्रतिनिधियों को, इसलिए जो भी बदलाव हों वो लोकतांत्रिक तरीके से, सभी को शामिल कर के किए जाएं।

कितनी बढ़ाई गई फीस?

पहले जेएनयू में सिंगल कमरे के लिए छात्रों को 20 रूपए प्रतिमाह चुकाने होते थे, जिसे बढ़ा कर 600 रूपए प्रतिमाह कर दिया गया है। अगर, सालाना बात की जाए तो अकेले कमरे के लिए पहले छात्रों को 240 रूपए देने होते थे जिसे बढ़ा कर 7200 रूपए कर दिया गया है।

वहीं, शेयरिंग रूम के लिए पहले 10 रूपए प्रतिमाह शुल्क थी, जिसे 300 रूपए प्रतिमाह कर दिया है यानि, 3600 रूपए सालाना। पहले मेस के लिए सेक्योरिटी किराया 5500 रूपए था जिसे बढ़ा कर 12000 रूपए कर दिया गया है।

इसके इतर सर्विस चार्ज़ के रूप में बच्चों से 1700 रूपए प्रतिमाह लिए जाएंगे (जो कि पहले नहीं लिए जाते थे) यानि, 20,400 रूपए सालाना। इसके अलावा बच्चों को पानी और बिजली के लिए भी अलग से फीस देनी होगी जो कि लगभग 500 रूपए प्रतिमाह होगी, यानि साल के लगभग 6000 रूपए।

पहले जहां सालभर में बच्चों को 5 से 6 हज़ार रूपए फीस भरनी होती थी, अब लगभग 50,000 तक भरनी होगी। इसमें मेस में खाने का खर्च शामिल नहीं है, जो कि अभी बच्चे 2,500 रूपए भरते हैं, इसे भी बढ़ाने की बात सामने आई है।

पत्रकार-वार्ता में क्या कहा जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष ने?

आज हुई पत्रकार-वार्ता में जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा कि, '28 अक्टूबर को हुई आईएचए की बैठक गैर-कानूनी तरीके से हुई, जिसमें छात्रसंघ को नहीं बुलाया गया। उस ही दिन से हम लोग मांग कर रहे हैं कि, इस बैठक के बाद जो हॉस्टल मैन्युअल ड्राफ्ट आया उसे पूरी तरह रद्द किया जाए। साथ ही इसके बाद प्रशासन आईएचए की बैठक फिर करे, जिसमें छात्रसंघ और हॉस्टल अध्यक्षों को भी अपना पक्ष रखने की अनुमति हो और नए मैन्युअल की बातचीत शुरू हो।'

छात्रसंघ अध्यक्ष ने ये भी बताया कि, दीक्षांत समारोह के दिन जब वो लोग मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल से मिले तो उन्होंने आश्वासन दिया था कि हफ्ते भर के अंदर मंत्रालय उन्हें आश्वासन देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस कारण से सोमवार, 18 नवंबर को संसद में शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र के पहले दिन विद्यार्थियों ने संसद तक शांतिपूर्वक मार्च निकालने का फैसला लिया।

क्या हैं जेएनयू की मांगें?

  1. आईएचए द्वारा पास किए गए हॉस्टल-मैन्युअल को तुरन्त वापस लिया जाए।

  2. जेएनयू प्रशासन और छात्रों के बीच बातचीत की शुरूआत हो।

  3. आईएचए बैठक फिर बुलाई जाए, जिसमें छात्रसंघ शामिल हो।

  4. मानव संसाधन विकास मंत्रालय और हाई पॉवर्ड इंक्व्यारी कमेटी विश्वविद्यालय में होने वाली गैर-कानूनी कार्रवाई पर सख्त कार्रवाई करे और जेएनयू के कुलपति इस्तीफा दें।

जेएनयू प्रशासन की तरफ से कोई आधिकारिक जानकारी अभी तक इस विरोध-प्रदर्शन के लिए नहीं आई है, न ही विश्वविद्यालय के उप-कुलपति ने विद्यार्थियों से बात करने के लिए किसी भी तरह की शुरूआत करने की कोशिश की है।

ये विश्वाद्यालय जेएनयू के समर्थन में आगे आए -

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय काफी समय से जेएनयू का समर्थन कर रहा है। उसके इतर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और इलाहबाद विश्वविद्यालय भी इनके समर्थन में आगे आए हैं।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ और कर्मचारी संघ ने भी छात्रों का साथ दिया और उनकी मांगों का जायज़ ठहराया है। साथ ही शिक्षक संघ ने छात्रों के समर्थन में विरोध प्रदर्शन भी किया।

कई राजनेताओं ने जेएनयू प्रदर्शन का समर्थन किया है। उन्होंने मांग की है कि फीस वृद्धि को वापस लिया जाना चाहिए।

पूर्व सांसद और एलजेडी पार्टी के नेता शरद यादव ने फीस वृद्धि का विरोध जताया है और फीस वापसी के समर्थन में ट्वीट किया-

तात्कालिक सांसद और प्रोफेसर मनोज कुमार झा ने भी इस फीस वृद्धि का विरोध किया है।

नेता प्रतिपक्ष और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव ने भी इस फीस वृद्धि पर सवाल उठाए हैं-

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय विवाद-

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र पिछले 23 दिनों से लगातार हॉस्टल-मैन्युल के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच जहां एक तरफ इस प्रदर्शन के समर्थन में कई लोग सामने आए हैं तो वहीं हज़ारों की तदाद में लोगों ने इसका विरोध किया है।

ट्विटर पर #ShutDownJNU, #JNUMuftkhorStudents, #JNU_में_हराम_का_खाना_बंद_हो आदि ट्वीट्स ट्रेंड कर रहे हैं तो वहीं लोगों का कहना है कि, यहां के बच्चे नहीं हैं, बूढ़े पढ़ रहे हैं जेएनयू में। किसी ने तर्क दिया कि, यहां देशविरोधी ताकतें हैं। एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश ने ट्वीट किया कि, एक गरीब के बच्चे को रशियन या विदेशी भाषा क्यों पढ़नी चाहिए। किसी का तर्क है कि यहां सेक्स रैकेट चलता है। किसी को लगता है कि वहां सिर्फ नशेड़ी पढ़ते हैं। टुकड़े-टुकड़े गैंग से लेकर प्रोस्टिट्यूशन के खुले अड्डे तक, न जाने क्या कुछ कहा गया जेएनयू को।

वहीं हज़ारों बच्चों ने जो जेएनयू से पढ़ कर निकले हैं या पढ़ रहे हैं, उन्होंने बताया कि अगर जेएनयू जैसा संस्थान नहीं होगा तो वो कभी भी पढ़ नहीं पाते। खुद जेएनयू के साल 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार यहां 40 प्रतिशत गरीब तबकों के बच्चे पढ़ते हैं, अगर फीस बढ़ती है तो वे सभी बच्चे आगे पढ़ाई नहीं कर पाएंगे।

क्या सच्चाई है इस पूरी राजनीति के पीछे, ये तो हम तय नहीं कर सकते पर एक सवाल जो हम सबको करना चाहिए,

क्यों देश में पब्लिक फंडेड शिक्षा नहीं होनी चाहिए? सस्ती शिक्षा से आपत्ति क्यों?

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