राज एक्सप्रेस। मकर संक्राति पर तिल खाने को लेकर भी एक पौराणिक मान्यता है। श्रीमद्भगवत एवं देवी श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के अनुसार शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव से बैर था क्योंकि उन्होंने हमेशा पिता को अपनी माता और पहली पत्नी संज्ञा के बीच और खुद दोनों संतानों के बीच भेदभाव करता पाया। नाराज शनि ने पिता को कुष्ठरोग का श्राप दे डाला। रोगमुक्त हुए सूर्यदेव ने शनि के घर यानी कुंभराशि को जला दिया। बाद में अपने ही पुत्र को कष्ट में देखकर सूर्य शनि से मिलने उसके घर पहुंचे। वहां यानी कुंभ राशि में तिल के अलावा बाकी सबकुछ जला हुआ था। शनि ने तिल से ही सूर्यदेव को भोग लगाया, जिसके बाद शनि को उनका वैभव दोबारा मिल गया। तभी से इस दिन तिल दान और तिल खाने का महत्व है।
मकर संक्रांति पर तिल का वैज्ञानिक महत्व
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी और तिल खाना वैज्ञानिक महत्व भी रखता है। इस वक्त देश के ज्यादातर हिस्सों में भारी ठंड होती है और सूर्य का एक से दूसरी राशि में जाना मौसम में बदलाव लाता है। इसकी वजह से बीमारियों का डर बढ़ जाता है। तिल और खिचड़ी में वे सभी पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को गर्मी दें और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए। यही कारण है इस त्योहार पर तिल-गुड़ की चीजें और दाल-सब्जी वाली खिचड़ी खाई जाती है।
भारत में अनेकता में एकता के प्रतीक का त्योहार है मकर संक्राति
इस त्योहार को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है, जैसे तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं। कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे संक्रांति कहते हैं। गोवा, ओडिशा, हरियाणा, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और जम्मू में इस दिन को मकर संक्रांति कहते हैं।
इस दिन चावल और उड़द दाल की खिचड़ी खाने और इसके दान का काफी महत्व है। यहां तक कि, इस दिन को कई जगहों पर खिचड़ी पर्व भी कहते हैं। खिचड़ी खाने की वजह ये है कि इसमें चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और उड़द दाल को शनि का। इसमें डलने वाली हरी सब्जियां बुध ग्रह से जुड़ी हैं। इन सबका मेल मंगल और सूर्य से सीधा ताल्लुक रखता है।इसी दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं इसलिए खिचड़ी खाने से इन सारे ग्रहों का सकारात्मक प्रभाव बढ़ता है।
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