फेफड़ों के दुश्‍मन हैं होली के रंग, ये समस्‍या है, तो न करें सिंथेटिक रंगों का इस्‍तेमाल

डॉक्‍टर्स के अनुसार, बाजार से खरीदे गए होली के रंगों में हैवी मेटल्‍स कांच के टूटे हुए टुकड़े, केमिकल और कीटनाशक हो सकते हैं। ये सभी क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं।
फेफड़ों के दुश्‍मन हैं होली के रंग
फेफड़ों के दुश्‍मन हैं होली के रंगRaj Express

हाइलाइट्स :

  • होली के रंगों में पाए जाते हैं हैवी मेटल्‍स।

  • सिंथेटिक रंग ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के लिए जिम्‍मेदार।

  • अस्‍थमा के मरीज मुंह और नाक ढंकें।

  • हवा में न फेकें होली के रंग।

राज एक्सप्रेस। होली रंगों का त्‍योहार है। इस मौके पर लोग आपसी मतभेद भूलकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं। हालांकि, रंग और पानी कभी-कभी हमारे और हमारे आस-पास के लोगों के लिए भी परेशानी का सबब बन जाते हैं। दरअसल, होली पर हवा में रंग फेंकने की परंपरा है। लेकिन इससे वायु प्रदूषण बढ़ जाता है। यह उन लोगों के लिए ज्‍यादा हानिकारक है, जो सांस संबंधी समस्‍या से जूझ रहे हैं। अब सवाल ये है कि सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों की सेहत पर इसका क्या असर पड़ता है? एक मेडिकल जर्नल के अनुसार, गीले रंगों सहित सस्ते होली के रंगों में कांच के टुकड़े, माइका और एसिड जैसे हानिकारक एजेंट होते हैं, जो स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। इनके अलावा, होली के रंग स्किन एलर्जी जैसे डर्मेटाइटिस और एक्जिमा का कारण भी बन सकते हैं। तो आइए जानते हैं होली के रंग से कौन-कौन सी हेल्‍थ प्रॉब्‍लम हो सकती हैं और इनसे कैसे बचा जा सकता है।

होली के रंगों से होने वाली सांस संबंधी समस्याएं

राइनाइटिस :

यह एलर्जी नाक की झिल्ली में सूजन पैदा करती है। इसके कुछ लक्षणों में नाक बहना, छींक आना और नाक बंद होना शामिल हैं। वैसे तो यह जल्‍दी ठीक हो जाती है, लेकिन कभी-कभी ठीक होने में सप्‍ताह और महीने भी लग जाते हैं।

न्यूमोनाइटिस :

न्यूमोनाइटिस तब होता है जब केमिकल युक्‍त रंग शरीर में चले जाते हैं। इससे छाती में जमाव, सांस लेने में कठिनाई और थकान महसूस होने लगती है।

अस्थमा :

होली के सिंथेटिक रंगों में छोटे पीएम 10 कण होते हैं, जो वायुमार्ग को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसा होने पर लोगों को सांस लेने में कठिनाई होती और कभी-कभी सांस फूलने लगती है।

किस केमिकल से बढ़ती है कौन सी बीमारी

  • ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और एलर्जी क्रोमियम से बढ़ती है, होली के बैंगनी रंग में यह बहुत अच्‍छी मात्रा में मौजूद होता है।

  • मर्करी किडनी, लीवर और अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है।

  • आयरन लाइट के प्रति सेंसिटिविटी को बढ़ा सकता है।

  • इसके अलावा, इन रंगों में मौजूद सिलिका स्किन ड्राइनेस का कारण बनता है।

रेस्पिरेटरी डिजीज से पीड़ित लोग ऐसे रहें सावधान

नेचुरल कलर्स का यूज करें

जितना हो सके, नेचुरल कलर्स का यूज करें। आप हल्‍दी, संतरा, पालक की मदद से घर में खुद ऑर्गेनिक कलर बना सकते हैं। ताकि आप स्‍वस्‍थ तरीके से होली खेल सकें।

मुंह और नाक को कवर करें

अस्थमा या कोई भी रेस्पिरेटरी डिजीज वाले मरीजों को होली खेलते समय अपने चेहरे पर मास्क या स्कार्फ पहनना चाहिए।

प्रदूषण से रहें सावधान

यदि आप रेस्पिरेटरी डिसऑर्डर से पीड़ित हैं तो आपको ज्‍यादा सावधानी बरतनी चाहिए। सबसे पहले बाहर जाने से बचें। बहुत जरूरी हो तो आपको हमेशा फेस मास्क पहनना चाहिए। बुजुर्ग लोगों को खिड़कियां बंद रखनी चाहिए और प्रदूषण को अंदर जाने से रोकने के लिए अपने घरों को साफ-सुथरा रखना चाहिए। एयर प्‍यूरीफायर भी रेस्पिरेटरी इंफेक्शन के रिस्‍क को कम करने में फायदेमंद साबित हुआ है।

धुएं से बचें

अगर आपके फेफड़ों को किसी भी दूषित पदार्थ या धुएं के कण से एलर्जी है, तो होलिका दहन वाले दिन कुछ घंटों के लिए घर के अंदर रहें।

शराब के सेवन से बचें

कई लोग होली के मौके पर शराब का सेवन करते हैं। ये पदार्थ सांस लेने से जुड़ी समस्याओं को ट्रिगर कर सकते हैं। आप इन खतरनाक पेय पदार्थों की जगह पौष्टिक पेय पदार्थों का उपयोग कर सकते हैं। आप ठंडाई से भी अपने मीठे की क्रेविंग को संतुष्ट कर सकते हैं। इस होली सांस संबंधी समस्याओं से बचने के लिए खासतौर पर ज्‍यादा मात्रा में शराब के सेवन से बचने की कोशिश करें।

एक्‍सरसाइज करें

रोजाना एक्‍सरसाइज करने से न केवल वेट मेंटेन रहेगा, बल्कि सांस संबंधी लक्षणों को मैनेज करने में मदद मिलेगी। वास्तव में, रेगुलर एक्‍सरसाइज आपकी इम्‍यूनिटी को स्‍ट्रांग बनाती है। जिससे रेस्पिरेटरी इंफेक्‍शन से लड़ना आसान हो जाता है।

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