विश्व एड्स वैक्सीन दिवस
विश्व एड्स वैक्सीन दिवसSyed Dabeer Hussain - RE

विश्व एड्स वैक्सीन दिवस : जानिए क्यों दशकों बाद भी वैज्ञानिक नहीं बना पाए एड्स की वैक्सीन?

एड्स की रोकथाम और एचआईवी वैक्सीन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 18 मई को विश्व एड्स वैक्सीन दिवस मनाया जाता है। पहली बार यह दिवस साल 1998 में मनाया गया था।

World AIDS Vaccine Day : 18 मई 1997 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन (Bill Clinton) ने अपने एक भाषण में कहा था कि, ‘एक प्रभावी एचआईवी वैक्सीन ही एड्स के खतरे को कम करके उसे खत्म कर सकती है।’ बिल क्लिंटन के उस भाषण को आज सालों बीत चुके हैं, लेकिन अब तक एड्स की कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है। आज भी यह बीमारी लाइलाज है। हालांकि एड्स की रोकथाम और एचआईवी वैक्सीन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 18 मई को विश्व एड्स वैक्सीन दिवस मनाया जाता है। पहली बार यह दिवस साल 1998 में मनाया गया था। तो चलिए आज इस मौके पर जानते हैं कि एड्स की बीमारी के सामने आने के दशकों बाद भी आज तक इसकी वैक्सीन क्यों नहीं बन पाई है?

इम्यून सिस्टम

दरअसल जब भी हमें कोई बीमारी होती है तो हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम यानि रोग प्रतिरोधक तंत्र उसका मुकाबला करता है। एचआईवी एक ऐसा वायरस है, जिसका हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से पता नहीं लगा पाता है। ऐसे में वह एचआईवी के खिलाफ एंटीबॉडी तो बनाता है लेकिन उससे सिर्फ एचआईवी की गति धीमी होती है।

डीएनए में छिपता है

एचआईवी एक ऐसा वायरस है, जो मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने के बाद उसके डीएनए में छिप जाता है। डीएनए में छिपे किसी भी वायरस को पहचानकर उसे खत्म करना बहुत मुश्किल काम होता है। एचआईवी के मामले में भी यही एक बड़ी दिक्कत है।

डेड वायरस

अधिकतर मामलों में वैक्सीन के जरिए डेड वायरस मनुष्य के शरीर में डाला जाता है। इससे मनुष्य के शरीर में उस वायरस के खिलाफ लड़ने की एंटीबॉडी बनती है। कोरोना की वैक्सीन भी इसी तरह काम करती है। लेकिन एड्स के मामले में डेड वायरस से भी एंटीबॉडी नहीं बनती है।

म्यूटेशन

आमतौर पर वैक्सीन वायरस के किसी एक रूप के खिलाफ ही कारगर सिद्ध होता है। ऐसे में अगर वायरस अपना रूप बदल लेता है तो वैक्सीन का असर कम हो जाता है या खत्म हो जाता है। एड्स के मामले में यह भी एक बड़ी समस्या है कि यह काफी तेजी से अपना रूप बदलता रहता है।

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