
पहली बात: हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते हैं, तो भगवान से कहते हैं:- ''प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था, और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ''।
भगवान बोले:- वो कैसे ...?
हनुमान जी बोले:- वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी हैं, मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था, तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया। कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हों तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए। उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा। सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर।
शिक्षा :
हम भगवान का नाम तो लेते हैं, पर भरोसा नही करते, भरोसा करते भी हैं, तो अपने पुत्रों एवं धन पर, कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, धन ही साथ देगा।
उस समय हम भूल जाते हैं कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे हैं वे हैं, पर हम भरोसा नहीं करते। बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते हैं ।
दूसरी बात प्रभु...!
बाण लगते ही मैं गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योंकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ। मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया।
शिक्षा :
हमारी भी यही सोच है कि, अपनी गृहस्थी का बोझ को हम ही उठाये हुए हैं। जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हमारा परिवार चलता ही है।
जीवन के प्रति जिस व्यक्ति को कम से कम शिकायतें हैं, वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।
जय जय श्री सीयाराम :
ये राम नाम बहुत ही सरल सरस, मधुर, और अति मन भावन है मित्रों----- जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी।
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