आज महिलाएं रखेंगी हरतालिका तीज का व्रत, भगवान शिव और माता पार्वती की होगी पूजा

हरितालिका तीज 9 सितंबर, गुरुवार को है, अखंड सौभाग्य का प्रतीक है यह त्यौहार, जिसे पहली बार व्रत रहने वाली महिलाओं और कुंवारी कन्याओं में इसे मनाने को लेकर ज्यादा उत्साह होता है।
हरतालिका तीज का व्रत
हरतालिका तीज का व्रतरवि सोलंकी

Haritalika Teej festival : हरितालिका तीज आज 9 सितंबर, गुरुवार को है। हरतालिका तीज व्रत महिलाएं अखंड सुहाग के लिए निर्जला और निराहार रखेंगी। पहली बार व्रत रहने वाली महिलाओं और कुंवारी कन्याओं में ज्यादा उत्साह है। हरतालिका तीज पर महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की विधि- विधान से पूजा करेंगी। कुछ जगहों पर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की कच्ची मिट्टी से प्रतिमा बनाकर महिलाएं विधिवत पूजा करती हैं। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 8 सितंबर, दिन बुधवार को देर रात 2 बजकर 33 मिनट से आरंभ होकर आज रात 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।

भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि हरितालिका तीज के नाम से शिव-पार्वती भक्तों में लोकप्रिय है। यह पर्व शिव-पार्वती के अखंड जुड़ाव का प्रतीक है। हरतालिका तीज व्रत अविवाहिताओं के लिए मुख्य व्रत है, हरतालिका तीज भादों (भाद्रपद) मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को होती है। दोनों की कथा एक ही है, लेकिन मर्म व्यापक है। इसलिए इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखेंगी वहीं कुंवारी कन्याएं मनवांछित वर प्राप्ति की कामना कर व्रत रखेंगी। व्रतधारी महिलाओं द्वारा आज रात्रि जागरण कर भगवान शिव एवं माता पार्वती का पूजन किया जाएगा। घरों में रात भर भजन कीर्तन के आयोजन चलेंगे। हरितालिका तीज के लिए बाजारों में फुलेरा की दुकानें सज गईं हैं जहां बड़ी संख्या में महिलाएं खरीदी करने पहुंच रही हैं। हरतालिका तीज के अगले दिन से गणेशोत्सव प्रारंभ होगा।

शहर में गणोशोत्सव का उत्साह शुरू हो गया है। मुख्य मार्गों पर गजानन की आकर्षक प्रतिमाएं सज चुकी हैं। बैठकी को लेकर चौक चौराहों पर भी व्यवस्थाएं की जा रहीं हैं। समीतियों और लोगों द्वारा भगवान गजानन के अलग-अलग रूपों की प्रतिमाएं बुक की जा रहीं हैं। इस वर्ष 10 सितंबर को गणेश चतुर्थी गणेश महोत्सव के रूप में मनाई जाएगी। इस दिन भगवान गणेश का आगमन होगा और अनंत चतुर्दशी को विसर्जन किया जाएगा। कुछ लोग पांच तो कुछ सात दिनों के लिए गजानन को अपने घरों में विराजमान करते हैं।

ऐसे घर बुलाएं गजानन

पंडितों के अनुसार गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को संकल्पपूर्वक अपने घर में आने के लिए निमंत्रण दें। उन्हें श्रद्धाभाव से लेकर आएं। घर आने पर उनका फूलों से स्वागत करें। विशेष स्थान पर उन्हें विराजमान करें। धूप, दीप, नैवेद्य एवं आरती से उनकी पूजा करें। उसके पश्चात प्रतिदिन सुबह शाम की आरती, भोग, प्रसाद की व्यवस्था करें। जितने दिनों के लिए आप गणेश जी को लाए हैं। उसके बाद विशेष आयोजनों के द्वारा उन्हें नदी और तालाब आदि में विसर्जित कर दें। घर से मंगल गान गाते हुए पुष्प वर्षा करते हुए भगवान को आदरपूर्वक विदा करें और अगले साल आने के लिए पुन: कहें।

गजानन बैठकी का शुभ मुहूर्त

इस वर्ष 10 सितंबर को 12 बजे के पश्चात चित्रा नक्षत्र में भगवान गजानन को अपने घरों में विराजित कर सकते हैं। इस दिन चर लग्न शाम 3.34 बजे से 5.17 बजे तक रहेगा। उसके पश्चात शाम 08.10 से 09.46 बजे तक भी मेष लग्न है। उसमें भी आप इनकी स्थापना या विराजमान कर सकते हैं।

इन मंत्रोचार का करे प्रयोग

घर में गणेश जी के विराजमान रहने तक सात्विक वातावरण, नियम और संयम का पालन अवश्य होना चाहिए। नियमित रूप से भगवान जी के दर्शन, पूजन एवं आरती करते रहे। ओम गं गणपतये नम:। ओम विघ्नविनाशकाय नम:। ओम ऋद्धिसिद्धि पतये नम:। इन विशेष मंत्रों का जाप नियमित करते रहें। भगवान को मोदक पसंद हैं। इसलिए रोजाना उनको मोदक का भोग लगाएं। इस प्रकार किए गए गणपति विराजमान से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

शिवपुराण के अनुसार, पूर्वजन्म में सती होने के बाद देवी ने अगले जन्म में पार्वती के रूप में अवतरण किया। भगवान शंकर को पाने के लिए घोर तप किया। अन्न-जल त्याग दिया। उनका शरीर अपर्ण के समान हो गया। यहीं से देवी का नाम अपर्णा पड़ा। भूख और प्यास को सहन करते हुए देवी ने केवल एक ही प्रण किया कि वह शंकर जी को ही वरण करेंगी। तप तो पूरा हुआ, लेकिन भगवान शंकर कहां मानने वाले थे। कथा आती है कि तारकासुर के संहार के लिए शंकर जी ने पार्वती से विवाह किया, क्योंकि तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि शंकर जी के पुत्र (गर्भ से उत्पन्न) द्वारा ही वह मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। अंततोगत्वा कार्तिकेय के रूप में पार्वती जी ने पुत्र को जन्म दिया और तब जाकर तारकासुर से मुक्ति मिली। हरतालिका तीज इच्छित वर की कामना का व्रत है।

इच्छित वर की कामना को गलत नहीं माना नहीं गया। वरन इसके व्रत भी हैं। हरितालिका इसमें से एक है। कालांतर में, सुहागिन स्त्रियां भी व्रत को करने लगीं। पार्वती जी की तरह निर्जल रहने लगीं। जिस तरह माता पार्वती का सुहाग अक्षत है, उसी तरह व्रत को करने वालों का भी हो, यही कामना सनातन है। यही हरतालिका है। हम सभी परिवार के लिए कुछ न कुछ समर्पण करते हैं। अन्न-जल का त्याग इसी संकल्प का हिस्सा है। सब सुखी हों, सभी का परिवार श्रद्धा व विश्वास के साथ फूले-फले, यही कामना हमको और हमारी संस्कृति को पल्लवित करती है।

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