Kaal Bhairav Ashtami 2020 : अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं, काल भैरव

पुराणादि धर्म शास्त्रों की मान्यता व शत रुद्रसंहिता के अनुसार आशुतोष भगवान सदाशिव ने इस दिन मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भैरवरूप में अवतार ग्रहण किया और काल भैरव कहलाए।
अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं, काल भैरव
अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं, काल भैरवSocial Media

Kaal Bhairav Ashtami 2020। पुराणादि धर्म शास्त्रों की मान्यता व शत रुद्रसंहिता के अनुसार आशुतोष भगवान सदाशिव ने इस दिन मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भैरवरूप में अवतार ग्रहण किया और काल भैरव कहलाए। इसीलिए काल भैरव की साक्षात शिव स्वरूप में पूजा अर्चना की जाती है। काल भैरव का स्वरूप अत्यंत ही भयंकर, रौद्र, प्रचंड व विकराल है।

शिव के दो रूपों में यह उनका दूसरा स्वरूप कहलाता है। शिवजी का प्रथम व मूल स्वरूप भक्तों का कल्याण व अभय प्रदान करने वाला है। जबकि दूसरे स्वरूप में दुष्टों को दंड देने वाले रूप में ये कालभैरव नाम से विख्यात है। काल भैरव की पूजा विशेष रूप से महाकाल की नगरी उज्जयनी व काशी में की जाती है, ये शिवजी के कोतवाल नाम से भी जाने जाते हैं, कोतवाल अर्थात नगर रक्षक।

आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने बताया कि सोमवार को काल भैरव अष्टमी मनाई जाएगी। काल भैरव का अवतरण मार्गशीर्ष माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यान्ह काल मे हुआ था। अत: देशभर के भैरव मंदिरों में इसी समय पूजा अर्चना व महाआरती की जाती है। भैरव बाबा का भंडारा भी आयोजित होता है। 56 भोग लगाएं जाते हैं।

आज के दिन बाबा काल भैरव की कृपा प्राप्त करने हेतु इन्हें उड़द से बने पदार्थ जैसे इमरती, दहीबड़े आदि प्रिय वस्तुऐ चढ़ाई जाती हैं। काल भैरव अष्टमी पर रात्रि जागरण, भजन व संकीर्तन का विशेष महत्व है। सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति हेतु? कालभैरवाय नम: इस महा मंत्र का जप करने से मनुष्य बाधा मुक्त हो जाता है। आज के दिन श्वानों को जलेबी, इमरती व उड़द से बने मिष्ठान्न खिलाने से मनोकामना पूर्ण होती है। आचार्य वैदिक ने आगे बताया कि धर्म शास्त्रों में इन्हें क्षेत्र पाल के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है, जिनकी संख्या 49 से भी अधिक है। अजर, से पावन तक ये 49 ही है। भैरव जी के कालभैरव, बटुक भैरव, आनंद भैरव, असितांग भैरव आदि नाम लोक प्रसिद्ध है। आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि देश विदेश में जहाँ जहाँ माताजी व शिवजी के प्रसिद्ध स्थान है वहाँ बाबा की उपस्थिति अनिवार्य है। ग्रामीण अंचलों में ग्राम के मध्य कांकड़ भैरव अवश्य विराजित होते हैं।

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