महानिशा काल के समय मनेगा कृष्ण जन्मोत्सव
महानिशा काल के समय मनेगा कृष्ण जन्मोत्सवSocial Media

अष्टमी तिथि के योग संयोग में रात्रि 12 बजे महानिशा काल के समय मनेगा कृष्ण जन्मोत्सव

जन्माष्टमी पर्व व्रत त्यौहार तीनों की श्रेणी में आता है भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष में जब अष्टमी तिथि का योग रोहिणी नक्षत्र से होता है तब यह व्रत उत्सव किया जाता है।

राज एक्सप्रेस। जन्माष्टमी पर्व व्रत त्यौहार तीनों की श्रेणी में आता है भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष मैं जब अष्टमी तिथि का योग रोहिणी नक्षत्र से होता है तब यह व्रत उत्सव किया जाता है इस बार सोमवार के दिन प्रात: 7 बजे से रोहिणी नक्षत्र का प्रारंभ होगा अष्टमी तिथि के योग संयोग में रात्रि 12 बजे महानिशा काल के समय कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा। इस समय पर भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र वृष लग्न एवं वृष राशि का चंद्रमा एवं स्थिर योग तथा सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: काल से ही फल प्रदान करेगा। ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम ज्योतिष मठ संस्थान भोपाल ने बताया कि सोमवार के दिन प्रात: व्रत का संकल्प लेकर सभी जरूरी पूजन सामग्री एकत्र कर पूर्वा विमुख होकर भगवान श्री कृष्ण जी का पूजन करें जन्माष्टमी का पूजन वृष लग्न में किया जाता है अत: वृष लग्न रात्रि 10:12 से प्रारंभ हो जाएगी यह 12:12 तक रहेगी इस समय पर सभी सनातन धर्मावलंबी इस व्रत पर्व एवं त्यौहार को श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक मनाएंगे।

श्री कृष्ण जी की जन्म पत्रिका की विवेचना :

भगवान कीजन्म पत्रिका में वृष लग्न तथा चंद्रमा वृष राशि का है पूर्ण पुरुष भगवान श्री कृष्ण परम महायोगी थे उनकी जन्म कुंडली में पंचम भाव में स्थित बुध के प्रभाव ने जहां उन्हें वादक बनाया वही स्वराशि गुरु ने नवम भाव में स्थित उच्च के मंगल एवं शत्रु मित्र भाव में स्थित उच्च के शनि ने महानायक न्यायप्रिय तथा परम पराक्रमी बनाया मात स्थान में स्थित स्वग्रही सूर्य ने उन्हें माता-पिता से विमुक्त रखा इसके अलावा सप्तमेश मंगल, लग्न में स्थित उच्च के चंद्रमा, तथा स्वग्रही शुक्र ने श्रीकृष्ण को रसिक शिरोमणि कला प्रिय तथा सौंदर्य उपासक बनाया यही नहीं लाभभाव के गुरु नवम भाव के उच्च के मंगल एवं छठे भाव में स्थित उच्च के शनि, पंचम भाव में स्थित उच्च के बुध, और चतुर्थ भाव में स्थित उच्च के सूर्य ने उन्हें महान पुरुष शत्रु हंता तत्वग्य विजय जननायक तथा अमर बनाया।

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