बसंत पंचमी को विवाह मुहूर्त नहीं, पर अबूझ मुहूर्त में होंगी शादी

शुक्र का तारा अस्त होने की वजह से इस बार बसंत पंचमी को विवाह मुहूर्त नहीं हैं, लेकिन अबूझ मुहूर्त के चलते बसंत पंचमी को शहनाई की गूंज जरूर सुनाई देगी।
बसंत पंचमी को विवाह मुहूर्त नहीं, पर अबूझ मुहुर्त में होंगी शादी
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राज एक्सप्रेस। शुक्र का तारा अस्त होने की वजह से इस बार बसंत पंचमी को विवाह मुहूर्त नहीं हैं, लेकिन अबूझ मुहूर्त के चलते बसंत पंचमी को शहनाई की गूंज जरूर सुनाई देगी। ऐसी मान्यता है कि जिनका शुक्र कमजोर होता है उनका वैवाहिक जीवन अधिक खुशहाल नहीं होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित गौरव उपाध्याय ने बताया कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहते हैं । यह दिन ऋ तुओ के राजा बसंत के आगमन का पहला दिन होता है। इस दिन से प्रकृति की सुंदरता में निखार आ जाता है। इस दिन मां सरस्वती के साथ कामदेव तथा रति की पूजा करने का विधान है। कामदेव बसंत के सहचर हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन देवी सरस्वती पर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। इस दिन को सरस्वती पूजा, सरस्वती जन्मोत्सव आदि नामों से जाना भी जाना जाता है।

विद्यारंभ का दिन बसंत पंचमी :

विद्याज्ञान और ललित कलाओं में दक्षता प्राप्ति के लिए बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। प्राचीन समय में विद्या प्राप्ति के लिए गुरुकुल जाने का विधान अथवा विद्या आरंभ बसंत पंचमी के दिन ही किया जाता था । भगवान श्रीराम भी बसंत पंचमी के दिन से गुरुकुल गए थे। बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, इस दिन विद्यारंभ, यज्ञों पवीत धारण करना, व्यापार आरंभ करना, नया वाहन खरीदना, खरीदारी, गृह प्रवेश आदि को शुभ माना जाता है

13 को उदित होंगे देवगुरू :

उपाध्याय ने बताया कि वर्तमान में देवगुरु बृहस्पति अस्त है जो कि 13 फरवरी को उदित होंगे तथा शुक्रदेव 14 फरवरी को अस्त होंगे। सामान्यत: विवाह के समय गुरु और शुक्र का उदित रहना जरूरी है। इस कारण पंचांग में इस दिन के विवाह के मुहूर्त नहीं दिए गए हैं। परंतु बसंत पंचमी अबूझ महूर्त है इसलिए लोकाचार के अनुसार बसंत पंचमी को विवाह किए जाएंगे। पंचमी तिथि का प्रारंभ बसंत पंचमी का प्रारंभ 16 फरवरी को सुबह 3:56 से होगा तथा पंचमी तिथि का समापन 17 फ रवरी को सुबह 5: 40 पर होगा। अत: 16 फरवरी को पूरे दिन पंचमी तिथि रहेगी । पूजन करने के लिए दोपहर का समय सबसे उपयुक्त होता है, पूजन विधि- मां सरस्वती की प्रतिमा को पीले वस्त्र पर स्थापित करें। रॉली हल्दी, केसर, अक्षत, पीले फूल, पीली मिठाई, दही -मिश्री, पीले कपड़े आदि से पूजन करें एवं स्वयं पीले वस्त्र धारण करें। पीले वस्तुएं दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है ।

पौराणिक कथा- प्राचीन काल में माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन पितामह ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की रचना की तथा उसके पश्चात वे सृष्टि को देखने निकले। उन्हें सर्वत्र उदासी दिखी। सारा वातावरण उन्हें ऐसा दिखा जैसे किसी के पास वाणी ना हो। उदासी भरा माहौल देखकर उन्होंने इसे खत्म करने के लिए अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे देवी प्रकट हुई जिसके चार हाथ थे। उनमें से दो हाथों में वीणा तथा एक हाथ में पुस्तक और एक हाथ में माला थी । तब ब्रह्माजी के संकेतों को इस देवी ने वीणा बजाकर जीवों को स्वरों का ज्ञान प्रदान किया। इसी कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा तथा वह विद्या और संगीत की देवी कहलायीं। उस दिन माघ पंचमी थी उसी दिन से ही बसंत पंचमी पूजन की प्रथा चली आ रही है। इस दिन विद्यार्थी किताब पाठ सामग्री आदि की पूजा करते हैं।

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