गुरु अमरदास जी
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सिखों के दस महान गुरुओं में से आज ही के दिन बने थे तीसरे गुरु "गुरु अमरदास"

सिखों के तीसरे गुरु "गुरु अमरदास" जी 26 मार्च 1552 में आज ही के दिन सिख गुरु बने थे। उनका जीवन आध्यात्मिक, पारिवाहिक और समाज सेवा में लीन रहा।

राज एक्सप्रेस। गुरु अमरदास जी की उम्र सिखों के दस गुरुओं में से सबसे ज्यादा रही है। उनका जन्म 5 मई 1479 को अमृतसर जिले में हुआ था। उनकी पत्नी मंसा देवी एवं चार बच्चे थे। उनके पिता तेज भल्ला और माता भक्त कौर थी। गुरु अमरदास जी दिनभर खेती, किसानी और व्यापर के कामों में व्यस्त रहने के बावजुद भी भगवन की भक्ति में (आध्यात्मिक चिंतन) में लीन रहते थे।

ऐसे आया उनके जीवन में गुरु भाव का प्रवाह :

एक बार अमरदास जी अपने बहु से गुरु नानक देवजी का लिखा शब्द "शबद" सुना। इससे वह इतने प्रभावित हुए कि 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष कम आयु के गुरु आनंद देवजी को गुरु बना लिया एवं 11 वर्षों तक सेवा की। गुरु आनंद देवजी ने सेवा से प्रसन्न होकर एवं सभी प्रकार से योग्य समझते हुए आज ही के दिन गुरु अमरदास जी को गुरु गद्दी सौप दी और इस तरह गुरु अमरदास जी सिखों के दस महान गुरुओं में तीसरे महान गुरु बने।

गुरु अमरदास जी ने गुरु का अर्थ सिखाया :

उन्होंने गुरु का अर्थ सिखाते हुए आध्यात्मिक चिंतन दैनिक तथा नैतिक जीवन पर जोर दिया। उन्होंने धर्म की एक पवित्र परिभाषा बनाई जिसमे सुबह उठने से लेकर स्नान, स्वछता, एकांत ध्यान, मन को वश में रखना, सत पुरुषो संगती, पूजा पाठ, ईमानदारी, सेवाभाव और अपने न्याय के लड़ना ही धर्म कहा है।

गुरु अमरदास जी का समाज से भेद-भाव मिटाने में योगदान :

उन्होंने जाती भेद-भाव को ख़त्म करने लिए लंगर (पंगत) की शुरुआत की जिसमे सभी जाती के लोग साथ में बैठकर खाना खा सकते थे, जो परंपरा आज भी जारी है। उन्होंने समाज के कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाया, जातिवाद, ऊंच नीच, कन्या हत्या, सती प्रथा और समाज से भेदभाव खत्म करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।

बादशाह अकबर ने भी लंगर में बैठकर खाया था खाना :

कहा जाता है कि उनके समय बादशाह अकबर ने भी लंगर में बैठकर खाना खाया था। उनके द्वारा छुआछूत मिटाने के लिए गोइदास साहिब में एक सांझी बावली का निर्माण किया गया जिसमे कोई भी व्यक्ति पानी पी सके। सिखों के 10 (दस) महान गुरुओ में से गुरु अमरदास जी सबसे ज्यादा उम्र दराज गुरु थे। गुरु अमरदास जी ने 21 बार हरिद्वार की पैदल यात्रा भी की। गुरु अमरदास जी 1 सितम्बर 1574 को विलीन (मृत्यु) हो गए।

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