इंदौर : होली पर बन रहे विशेष ज्योतिषीय संयोग

इंदौर, मध्यप्रदेश : होली नवाहन्नेष्टि यज्ञ पर्व है। जो वैदिक सोमयज्ञ भी है। वैदिककाल में सोमलता का रस निचोड़कर यज्ञ सम्पन्न होते थे जो सोमयज्ञ के नाम से प्रसिद्ध है।
होली पर बन रहे विशेष ज्योतिषीय संयोग
होली पर बन रहे विशेष ज्योतिषीय संयोगसांकेतिक चित्र

हाइलाइट्स :

  • होलिका दहन हेतु प्रदोष काल श्रेष्ठ, भद्रा का असर नहीं

  • होलिका की लौ (आंच ) व वायु प्रवाह से भविष्य टटोला जा सकता है

  • विज्ञान सम्मत भी है होलिका दहन

इंदौर, मध्यप्रदेश। होली नवाहन्नेष्टि यज्ञ पर्व है। जो वैदिक सोमयज्ञ भी है। वैदिककाल में सोमलता का रस निचोड़कर यज्ञ सम्पन्न होते थे जो सोमयज्ञ के नाम से प्रसिद्ध है। सोमरस शक्ति वर्द्धक है जो अमरता की अनुभूति प्रदान करता है। वैदिक ऋषियों ने भी इसे अनुभूत किया। धीरे धीरे इसका स्वरूप होलिका दहन में परिवर्तित होता गया। जो होली के नाम से जाना जाने लगा।

आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने बताया कि इस वर्ष यह पवित्र पर्व सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि व अमृत योग में मनेगा। रविवार को पूर्णिमा तिथि रात्रि 12 बजकर 18 मिनिट तक रहेगी। उत्तरा फाल्गुनी व हस्त नक्षत्र, वृद्धि योग, बुध प्रधान कन्या राशि का चन्द्रमा, गुरु प्रधान मीन राशि का सूर्य व शनि प्रधान मकर राशि के बृहस्पति में प्रदोष काल मे होलिका का दहन होगा। इस प्रकार होली पर विशेष ज्योतिषीय संयोग निर्मित हो रहे हैं।

इस वर्ष होलिकादहन पर भद्रा का साया नहीं रहेगा :

आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि 28 मार्च रविवार को भद्रा दोपहर 1 बजकर 55 मिनिट तक रहेगी। सामान्यत: होलिका दहन प्रदोष काल में किया जाता है। धर्मशास्त्रों की स्पष्ट मान्यता है कि फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल मे होलिका का दहन शुभ होता है। सूर्यास्त के बाद कि छ: घड़ी अर्थात 2 घण्टा 24 मिनिट का काल प्रदोषकाल कहलाता है। आचार्य पण्डित शर्मा वैदिक ने बताया कि होलिका दहन विज्ञान सम्मत है। प्रज्ज्वलित अग्नि से मानव शरीर व भूमण्डल पर परमाणुओं में स्तिथ कफजनक कीटाणुओं का विनाश होता है। यही कफ जनक कीटाणु ही वैश्विक महामारी कोरोना को बढ़ावा देते है व कारण भी। होलिका की पूजा का विशेष महत्व है।

दिन में होलिका दहन भूल कर भी नहीं करें :

प्रदोषकाल में होलिका दहन के पूर्व विविध पूजा उपचारों ( सामग्री ) से होलिका की सविधि पूजा करना चाहिए। पूजा में साबुत नारियल, पीली सरसों व कालीमिर्च दहन के पश्चात अवश्य डालना चाहिए। इससे आरोग्यता बनी रहती है। आचार्य पण्डित शर्मा वैदिक ने बताया कि संहिता ग्रन्थों व शकुन शास्त्रों की मानें तो होलिका दहन समय के वायु प्रवाह से भविष्य/ शुभाशुभ भी जाना जा सकता है। होली दीपन के समय पूर्व दिशा का प्रभाव शुभ, आग्नेय कोण का आगजनी कारक,दक्षिण का दुर्भिक्ष व पीड़ाकारक,नैऋत्य का फसलों के लिए हानिकारक, पश्चिम का सामान्य,मिश्रित, वायव्य कोण का चक्रवार, पवनवेग व आंधी कारक, उत्तर व ईशान कोण का मेघ गर्जना सूचक। यदि होलिका दहन के समय वायु प्रवाह चतुष्कोणीय हो तो राष्ट्र संकट कारक होता है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन वायु प्रवाह से शुभाशुभ की जानकारी भी प्राप्त होती है । दिन में होलिका दहन भूल कर भी नहीं करें।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

और खबरें

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com