नवरात्रि का तीसरा दिन : जानिए कैसे करें मां चंद्रघंटा को प्रसन्न ? कुछ ऐसी है पूजा विधि
राज एक्सप्रेस। आज नवरात्रि का तीसरा दिन है और इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म से जुड़े ग्रंथों के अनुसार मां चंद्रघंटा को मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप माना जाता है। मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र सुशोभित है, यहीं कारण है कि उन्हें मां चंद्रघंटा कहा जाता है। मां चंद्रघंटा का वाहन सिंह है। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करना शांतिदायक और कल्याणकारी होता है। साथ ही विवाह में आ रही समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है।
पूजा विधि :
सबसे पहले स्नान करने के बाद मां चंद्रघंटा को केसर और केवड़ा जल या गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद मां चंद्रघंटा को धूप, दीप, चंदन, अक्षत अर्पित करें। मां को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं और उनकी पूजा-अर्चना करे। इस दौरान मां को प्रसन्न करने के लिए ‘या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:‘ मंत्र का जाप करें।
कथा :
एक बार असुरों के स्वामी महिषासुर ने स्वर्गलोक पर कब्जा करने के लिए देवताओं पर हमला बोल दिया। सभी देवता इससे परेशान हो गए। वह भागकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे। उन्होंने तीनों भगवान को असुरों के अत्याचारों के बारे में बताया। यह सुनकर तीनों भगवान को क्रोध आया और उनके मुख एक ऊर्जा उत्पन्न हुई। इस ऊर्जा से एक देवी का जन्म हुआ, जिसे मां चंद्रघंटा कहा जाता है। असुरों का सर्वनाश करने के लिए भगवान शिव ने मां चंद्रघंटा को अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी अन्य देवी-देवताओं ने भी मां चंद्रघंटा को अपने-अपने अस्त्र सौंप दिए। देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया।
इसके बाद मां चंद्रघंटा असुरों के स्वामी महिषासुर के पास पहुँची। मां चंद्रघंटा को देखकर ही महिषासुर को आभास हो गया था कि आज उसका विनाश निश्चित है। हालांकि इसके बाद भी उसने मां चंद्रघंटा पर हमला बोल दिया। मां चंद्रघंटा और महिषासुर के बीच भीषण युद्ध चला और अंत में मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया। इस तरह से मां चंद्रघंटा ने असुरों से देवताओं की रक्षा की।
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