कब से शुरू हुई थी पवित्र कावड़ यात्रा?
कब से शुरू हुई थी पवित्र कावड़ यात्रा?सांकेतिक चित्र

कावड़ यात्रा पर जाने वाले भूलकर भी ना करें ये काम, जानिए क्या है इसका महत्व?

अगर आप भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा पर जा रहे हैं, तो उससे पहले कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान जरूर रखें।

राज एक्सप्रेस। भगवान शिव का सबसे प्रिय माना जाने वाला सावन का पवित्र महीना 14 जुलाई से शुरू हो गया है। हिन्दू धर्म में सावन माह का विशेष महत्व है। पूरे महीने भक्त शिवालयों में जाकर भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। सावन की शुरुआत के साथ ही पवित्र कांवड़ यात्रा भी शुरू हो गई है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु कावड़ में पवित्र जल एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान पर जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। अगर आप भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा पर जा रहे हैं, तो उससे पहले कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान जरूर रखें।

कावड़ यात्रा के नियम :

  • कावड़ यात्रा एक बहुत ही पवित्र यात्रा है, इसलिए हमें कभी भी बिना स्नान किए कावड़ को छूना नहीं चाहिए।

  • कावड़ यात्रा के दौरान किसी वाहन पर या चारपाई पर बैठना मना है। इसके अलावा कावड़ को जमीन पर रखना भी वर्जित है।

  • कावड़ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को यात्रा के दौरान और पूरे सावन माह मांस, मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।

  • कावड़ यात्रा के दौरान बीच-बीच में बोल बम या ओम नमः शिवाय सहित भगवान शिव-शंकर की जय कहते रहना चाहिए।

कावड़ यात्रा कब से कब तक चलेगी?

इस बार सावन महीना 14 जुलाई 2022 से शुरू होकर 12 अगस्त 2022 को खत्म हो रहा है। वहीं कावड़ यात्रा की बात करें तो यह 14 जुलाई 2022 से 26 जुलाई 2022 तक चलेगी।

कावड़ यात्रा का महत्व :

दरअसल यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को कांवड़िया कहा जाता है। कांवड़िया पवित्र जल को कांवड़ में भरकर लंबी पैदल यात्रा करते हुए लेकर आते हैं और उस जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं।

कावड़ यात्रा कथा :

कावड़ यात्रा को लेकर कई अलग-अलग कथा प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा यह है कि जब श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार गंगा स्नान के लिए ले गए तो वापसी के समय वह अपने साथ गंगाजल लेकर आए थे। उस जल से उन्होंने अपने माता-पिता से शिवलिंग का जलाभिषेक करवाया था। कहा जाता है कि तभी से कावड़ यात्रा प्रारंभ हुई थी।

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