भारत को आजादी दिलाने में अरुणा आसफ अली ने किए ये उल्लेखनीय कार्य

देश की आजादी में बहादुरी का परिचय देते हुए अरुणा आसफ अली ने उल्लेखनीय कार्य कर न भूलाएं जाने वाले किरदार निभाए, इन्हीं के नाम पर देश की राजधानी मार्ग है, आज हम इन्हीं महान देशभक्त के बारे में जानेंगे।
Aruna Asaf Ali's contribution to freedom
Aruna Asaf Ali's contribution to freedomSyed Dabeer Hussain - RE

राज एक्‍सप्रेस। भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन की ग्रैंड ओल्‍ड लेडी, महान देशभक्‍त, स्‍वतंत्रता व समाजवाद की नायिका अरुणा आसफ अली के योगदानों को याद करते हुए इनके नाम पर देश में कॉलेज, अस्पताल संस्‍थान के अलावा राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में “अरुणा आसफ अली” नाम का एक मार्ग हैं, जो आपने शायद सुना होगा। ये मार्ग वसंत कुंज, किशनगढ़, जवाहर लाल नेहरू युनिवर्सिटी, आईआईटी दिल्ली को जोड़ता है, ये मार्ग उनके सम्मान के लिए नामित किया गया था।

जन्‍म और शिक्षा :

16 जुलाई, 1909 को पंजाब के ‘कालका’ नामक स्‍थान पर बंगाली ब्राह्मण परिवार में एक कन्‍या का जन्‍म हुआ, जिनका नाम अरुणा गांगुली रखा गया। उनके पिता का नाम उपेन्द्रनाथ गांगुली व माता का नाम अम्बालिका देवी था। अरुणा जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा लाहौर एवं उच्च शिक्षा नैनीताल पब्लिक स्कूल से की, वे कक्षा में हमेशा अव्वल आती थीं, उन्होंने बचपन से ही अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमाई थीं। पढ़ाई के बाद अरुणा गांगुली कोलकाता के ‘गोखले मेमोरियल स्कूल’ में टीचर बनी, जब वे स्‍कूल पढ़ाने जाती थीं, तभी उनकी मुलाकात एक व्‍यक्ति से हुई, जिनका नाम था आसफ अली, जो इलाहाबाद के रहने वाले व एक कांग्रेसी नेता थें। दोनों की नजदीकियां इतनी बढ़ गई कि, अरुणा जी ने अपने परिजनों के विरोध में जाकर भी 1928 में आसफ अली से विवाह कर लिया, जो उम्र में उनसे 23 साल बड़े थे। शादी के बाद अरुणा गांगुली का नाम अरुणा आसफ अली हो गया।

स्वतंत्रता-संग्राम मुहीम में जुड़ी अरुणा :

आसफ अली स्वतंत्रता संग्राम मुहीम से जुड़े थे, परतंत्रता में भारत की दुर्दशा व अंग्रेजों के अत्याचार को देखकर श्रीमति अरुणा जी भी अपने पति के साथ इस मुहीम में जुड़ने का निर्णय लिया और दोनों पति-पत्नी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। शादी के 2 साल बाद 1930 में जब ‘नमक सत्याग्रह’ आंदोलन हुआ, इसमें अरुणा जी भी शामिल हुई और उन्होंने सार्वजनिक सभाएं की व जुलुस निकाला, इस पर ब्रिटिश सरकार ने उन पर आवारा होने का आरोप लगाया, जिस कारण राजनैतिक बंदियों के साथ वह भी एक साल तक जेल में कैद रहीं, वहीं अगले साल 1931 में जब गांधी-इर्विन समझौते के अंतर्गत सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा किया, परंतु ब्रिटिश सरकार अरुणा जी से इतनी चिंतित थी कि, उन्‍हें जेल से रिहा तक नहीं किया, लेकिन जब उनके पक्ष में एक जन आंदोलन हुआ, तो आखिरकार ब्रिटिश सरकार को उन्हें रिहा करने के लिए झुकना ही पड़ा।

कैदियों के हक के लिए उठाई आवाज :

1932 में अरुणा जी को दोबारा गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में रखा, यहां कैदियों के साथ हो रहे बुरे बर्ताव को देख उनके हक के लिए आवाज उठाते हुए भूख हड़ताल की, जिससे कैदियों को काफी राहत मिली, हालांकि जब वे जेल से रिहा हुई तो, उन्हें 10 साल तक राष्ट्रीय आंदोलन से अलग कर दिया गया।

Achievements of Aruna Asaf ali
Achievements of Aruna Asaf ali Syed Dabeer Hussain - RE

नायिका के तौर पर आईं नजर :

राष्ट्रीय आंदोलन से अलग रहने के बाद भी अरुणा जी ने हार नहीं मानी, वे 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में पूर्ण रूप से सक्रिय हुईं और एक नायिका के तौर पर नजर आई। जब मुंबई के कांग्रेस अधिवेशन में 8 अगस्त को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ, उसी के एक दिन बाद आजादी की लड़ाई की नीव मजबूत करने के लिए 9 अगस्‍त को अरुणा ने अपनी बहादुरी का अद्भुत परिचय देते हुए मुंबई में गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय तिरंगा फहराया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने की खुली चुनौती दी।

गिरफ्तारी से बचने के लिए हुई अंडरग्राउंड :

अरुणा किसी भी कीमत पर जेल नहीं जाना चाहती थी, गिरफ्तारी से बचने के लिए वेे अंडरग्राउंड हो गईं, ब्रिटिश सरकार 9 अगस्त 1942 से 26 जनवरी 1946 तक उन्‍हें ढूंढने की काफी कोशिश की, उनकी संपत्ति जब्त कर बेच दी, इतना ही नहीं सरकार ने उनको ढूंढने वालों के लिए 5000 रुपए का इनाम देने की भी घोषणा की, इसी बीच अरुणा बीमार पड़ गई, गांधी जी ने उन्हें आत्मसमर्पण की सलाह दी। वहीं ब्रिटिश सरकार अपने कई प्रयासों के बाद भी अरुणा को पकड़ने में कामयाब नहीं हो सकी।

साल 1946 में गिरफ्तारी वारंट रद्द होने के बाद अरुणा जी सामने आई और देश में उनका भव्य स्वागत हुआ, साथ ही कोलकाता और दिल्ली में उन्‍होंने अपने स्वागत के दौरान आयोजित सभाओं में ऐतिहासिक भाषण दिए। आजादी की लड़ाई में यादगार भूमिका निभाने वाली अरुणा आसफ अली को उनके साहस व बहादुरी को देखते हुए 1942 में झांसी की रानी की संज्ञा दी, साथ ही उन्‍हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ के नाम से भी जाना जाने लगा।

अरुणा जी इन पुरस्‍कारों से हुई सम्‍मानित :

  • 1964 में अंतरराष्ट्रीय ‘लेनिन शांति पुरस्कार’

  • 1991 में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए जवाहरलाल नेहरू अवार्ड

  • 1992 में पद्म विभूषण से सम्मानित

  • 1997 में मरणोपरांत, भारत रत्न का सर्वोच्च नागरिक सम्मान

  • 1998 में भारतीय डाक सेवा ने एक डाक टिकट से सम्मानित

एक नजर अरुणा जी के राजनीतिक सफर पर :

15 अगस्त 1947 को जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ, तब अरुणा आसफ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं, यहां उन्‍होंने शरणार्थियों की हर समस्या दूर करने के लिए पूरी जी-जान लगाकर, कांग्रेस संगठन को मजबूत किया। इसके बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू से सैद्धांतिक विरोध की वजह से वे कांग्रेस पार्टी से अलग हो गई।

अरुणा जी ने इन पार्टियों में भी दिया अपना योगदान :

  • 1948 में सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुई।

  • 2 साल बाद 1950 में अलग से एक और ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और इसमें सक्रिय होकर 'मजदूर-आंदोलन' में जुट गईं।

  • 1953 में उनके पति आसफ अली का निधन हो गया, जिससे उनको गहरा धक्‍का लगा।

  • 1955 में ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' (भाकपा) में विलय हो गया, इसमें श्रीमती अरुणा जी भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्य और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्ष बनाई गई।

  • इसके बाद 1958 में 'मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी' छोड़ दी।

  • 1958 में 'दिल्ली नगर-निगम' की पहली महापौर बनी और नगर-निगम की कार्य प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार कर दिल्ली के विकास, सफाई, स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया।

  • 1964 में पं.जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद अरुणा जी पुनः कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने के लिए काम करने लगीं।

अरुणा जी ने आजादी के बाद भी राष्ट्र व समाज के कल्याण के लिए बहुत से काम किए व समाज के वंचित वर्गों, विशेषकर महिलाओं के लिए काम करना शुरू किया। अरुणा जी ने युवाओं के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, “युवा हमारे राष्ट्र के भविष्य हैं, मुझे उनसे प्रेरणा मिलती है।“

1996 में दुनिया को कह चली अलविदा :

वृद्धावस्था में अरुणा जी शांत एवं गंभीर स्वभाव की हो गई, उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। लंबी बीमारी के चलते अरुणा आसफ अली 87 वर्ष की उम्र में 29 जुलाई 1996 में इस दुनिया को अलविदा कह गई, लेकिन उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है। वे राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन की ऐसी अभिनेत्री थी, जिनका सम्पूर्ण जीवन संघर्ष, त्याग, राष्ट्र समाज सेवा समेत पत्रकारिता एवं राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के रचनात्मक कार्यो में गुजरा। भले ही वह आज हमारे बीच नहीं हैंं, परंतु अपनी राष्ट्र-भक्ति व राष्ट्रसेवा के कारण हमेशा जानी जाएंगी, उनकी आत्‍मीयता व स्‍नेह को कभी कोई नहीं भुला सकता, क्‍योंकि वे वास्‍तव में भारत देश की एक महान देशभक्‍त थीं।

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