
जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर धर्म के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि पूरी दुनिया देख रही है कि एक धर्म की राजनीति होने लग गई है, संभलने की जरुरत है। श्री गहलोत ने बजट घोषणाओं का लाभ जन जन तक पहुंचाने के लिए आयोजित कार्यशाला के अवसर पर आज यहां यह बात कही। उन्होंने कहा कि देश में हालात गंभीर है और पूरा देश चिंतित हैं। इसलिए ऐसे वक्त में यह कार्यक्रम करना हमारे लिए शोक की बात हैं, तनाव का माहौल है हर व्यक्ति को चिंता लगी हुई है। उन्होंने राजस्थान में करौली और जोधपुर की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि छोटी-छोटी बात पर कोई तलवार एवं चाकू चला रहा है, उदयपुर में गला काट रहा है।
उन्होंने कहा कि आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और मैं खुद अगले दिन उदयपुर गया। यह तो सरकार पर विश्वास काम आया, नहीं तो प्रदेश में दंगे भड़क सकते थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री से शांति एवं भाईचारा बना रहने के संदेश देने की अपील की थी लेकिन आपने तो एक धर्म को चुन लिया हैं और धर्म के नाम पर राजनीति करनी है तो खुलकर करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं विपक्ष ने मांग की थी कि प्रधानमंत्री देश में शांति की अपील करे कि किसी भी कीमत पर हिंसा बर्दाश्त नहीं की जायेगी, यही तो कहना था।
उन्होंने कहा कि श्री मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब राजस्थान में हुई लिचिंग की घटना पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह भीड़तंत्र हैं, असामाजिक तत्व हैं तब इसका स्वागत किया गया। आज स्थिति बिगड़ गई हैं। देश में जो माहौल बना हुआ हैं उसे समाप्त करना चाहिए। अभी उन्हें बोलने की आवश्यकता थी लेकिन नहीं बोल रहे हैं। श्री गहलोत ने कहा कि धर्म के नाम पर राजनीति हो रही है। पूरी दुनिया देख रही है कि एक धर्म की राजनीति होने लग गई हैं। संभलना पड़ेगा। लाखों, करोड़ों लोग चिंतित हैं।
उन्होंने कहा ''सरकार में बैठे एक बड़े व्यक्ति ने कहा कि सिविल सोसायटी वाले गवर्नेस के बड़े दुश्मन है, मै कहता हू कि सिविल सोसायटी वाले सरकार की मदद करते है, गलती कोई भी कर सकता है लेकिन सुधारने की गुंजाइश होती है। आलोचना को माइंड नहीं करना चाहिए। सत्य ही ईश्वर है, ईश्वर ही सत्य हैं, अंतिम संस्कार करने जाते समय बोलते हैं राम नाम सत्य हैं सत्य बोलना यह बताता है कि पूर्वज भी ईश्वर को ही सत्य मानते थे। उन्होंने कहा कि सिविल सोसायटी के महत्व को इंकार नहीं किया जा सकता और सिविल सोसायटी को खारिज करने वाले का लोकतंत्र में यकीन नहीं हैं।
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