राज एक्सप्रेस। दिल्ली कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने दिल्ली सरकार के बिजली की कीमतों में कमी या माफ करने वाले दावों की पोल खोल दी। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने ‘दिल्ली में विद्युत क्षेत्र की सच्चाई’ नाम से 16 पेज की बुकलेट जारी कर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवालऔर उनकी सरकार पर हमला बोला। इस दौरान दिल्ली के रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के सैंकड़ों पदाधिकारी मौजूद थे।
उन्होंने पीपीटी में बारीकी से यह बताया है कि, कैसे बिजली के दामों में कम करने की बात कहकर दिल्ली सरकार जनता को भरमा रही है। उन्होंने आज दिल्ली सरकार में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करके यह जानकारी मांगी कि दिल्ली सरकार यह बताए कि उन्होंने लगभग 8,500 करोड़ रूपए की सब्सिडी जो निजी बिजली कंपनियों को दी है, उसका क्या हुआ। किस-किस उपभोक्ता को कितनी-कितनी सब्सिडी प्रति महीना मिली और बिजली कंपनियों को सब्सिडी के रूप में दी गई राशि किन आदेशों के तहत दी गई है?
दिल्ली में सस्ती बिजली का दावा गलत :
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने बिजली के प्रति यूनिट दामों का एवरेज बिल्ड रेट पर कहा कि, दिल्ली में 2018-2019 में यह प्रति यूनिट 8.45 रूपए है जबकि अन्य राज्यों में यह दिल्ली से कम है। मगर केजरीवाल दावा करते हैं कि दिल्ली में पूरे देश की तुलना में बिजली के दाम सबसे कम हैं। "उदाहरण के लिए सूरत में यह दाम जहां 6.41 रूपए हैं, और मुंबई (टीपीसी-डी) में यह 7.51 रूपए हैं। मध्य प्रदेश में 6.59 रूपए, अहमदाबाद में 6.60 रूपए, पंजाब में 6.63 रूपए, मुंबई वेस्ट में 6.94 रूपए, राजस्थान (2018-2019) में 7.04 रूपए, हरियाणा में 7.05 रूपए, बंगलौर में 7.37 रूपए हैं।"
उन्होंने पत्रकारों से कहा कि-
कांग्रेस की दिल्ली सरकार ने 2002-2003 से 2006-2007 में पारदर्शिता को अपनाते हुए तकरीबन 3450 करोड़ रूपया सरकारी ट्रांसमिशन कम्पनी को लोन के रूप में देने की योजना बनाई थी, जिसके तहत सरकारी ट्रांसमिशन कंपनी को दिया गया लोन वापस आना था। इसलिए एवरेज बिल रेशियो यदि प्रति यूनिट निकाला जाए तो दिल्ली में बिजली की औसत दरें जो 2013-2014 में 7.36 प्रति यूनिट थीं वह केजरीवाल सरकार के राज में 2018-2019 में 8.45 पहंच गईं। जबकि केजरीवाल दिल्ली में सस्ती बिजली का दावा करते हैं।
सब्सिडी घोटाले का आरोप
उन्होंने बताया कि पिछले पांच सालों में केजरीवाल सरकार के द्वारा सब्सिडी के रूप में बिजली कंपनियों को दिल्ली के लोगों की गाढ़ी कमाई में से दिए गए करीब 8532.64 करोड़ रुपया एक बहुत बड़ा घोटाला है। ज्ञात हो कि, केजरीवाल ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में कहा था कि वे सब्सिडी बिजली कंपनियों को न देकर सीधे दिल्ली ट्रांस्को को देंगे, फिर उन्होंने 8532.64 करोड़ रुपये की सब्सिडी बिजली कंपनियों को क्यों दे डाली? उनका तर्क है कि जिस प्रकार केजरीवाल सरकार रेग्युलेटरी एसेट को लेकर लापरवाह है उसके हिसाब से वर्तमान के रेग्युलेटरी एसेट जो कि 8381.56 करोड़ हैं, उसका भुगतान करने में 64 साल लग जाएंगे।
सब्सिडी डीबीटी स्कीम से मिले
श्री माकन ने दिल्ली सरकार से मांग की कि वह बिजली कंपनियों को सब्सिडी के रूप में पैसा देने की बजाए उपभोक्ताओं के खाते में नकद राशि जमा कराई जाए। उनका तर्क है कि यदि उपभोक्ताओं को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के तहत जब बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी उनके खातों में सीधी दी जाएगी तो पारदर्शिता बनी रहेगी और केजरीवाल सरकार एवं बिजली कंपनियों के बीच चल रहे भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ होगा।
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