देश-विदेशों में बढ़ाई ख्याति

सुषमा स्वराज सादगीपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखती थीं। घर की साफ-सफाई करने से लेकर किचिन में आम महिलाओं की भांति काम करना उन्हें पसंद था।
देश-विदेशों में बढ़ाई ख्याति
देश-विदेशों में बढ़ाई ख्यातिSyed Dabeer Hussain - RE

राज एक्सप्रेस। सुषमा स्वराज सादगीपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखती थीं। घर की साफ-सफाई करने से लेकर किचिन में आम महिलाओं की भांति काम करना उन्हें पसंद था। उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू से अंत तक पाक रही। कोई आरोप तक नहीं लगा। सुषमा स्वराज की छवि ऐसी थी, जिसने विरोधियों को भी दोस्त बना दिया। यही वजह है कि आज हर आंख नम है।मध्य प्रदेश में विदिशा के लोग भी आज अपनी पूर्व सांसद को याद करके भावुक हो रहे हैं। विदिशा ही नहीं, बल्कि समूचे भारत ने सुषमा स्वराज के रूप में अपना चहेता नेता खो दिया। उनके खोने का गम आज हर किसी के चेहरे पर दिखाई दे रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर हर हिंदुस्तानी की आंखें आज नम हो गई हैं।

पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का जाना हिंदुस्तान की सिसासत में गहरा शून्य छोड़ जाने जैसा होगा। ‘नेकी की दीवार’ के गिरने की तरह है उनका न रहना। आम इंसान के दर्द को समझना, और उसे तत्काल दूर करना, सुषमा स्वराज की खूबी हुआ करती थी। जबकि, आज के युग में ऐसी खूबी कुछ विरले ही राजनेताओं में देखी जाती ही है। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी आम और खास में अंतर नहीं समझा, हमेशा इंसानियत को तवज्जो दी। यही कारण था कि समूचे भारत के लोगों का जुड़ाव उनसे दूसरे नेताओं से अलग होता था। वह मददगारों और गरीबों से प्रत्यक्ष संवाद करने में विश्वास रखती थी। उनके न रहने की खबर जैसे ही बाहर आई, लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ कि उनके परिवार का ही कोई अहम सदस्य रुखसत हो गया हो। सुषमा जी मौजूदा वक्त की सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार थीं। मददगार उनसे बिना हिचक अपनी समस्याओं को सामने रखते थे।

हमने उनके दरबार में ऐसे भी फरियादी देखे थे जिनके पासपोर्ट बनने में कुछ सामान्य दिक्कतें होती थी, तब भी लोग उनसे सहयोग के लिए आते थे। ऐसी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी वह क्र्लक स्तर के कर्मचारी को फोन करती थी, थोड़ी देर के लिए खुद भूल जाती थी, कि वह विदेश मंत्री हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री के रूप में सुषमा सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर पर बेहद सक्रिय रहा करती थीं और देश-विदेश में जो भी उनसे मदद की गुहार लगाता था, उसे तत्काल पूरी सहायता देने की कोशिश करती थीं। विगत कुछ वर्षो से उनकी एक खास पहचान बन गई थी। वह पहचान थी ‘लोगों की मदद करना’। वह आम लोगों की आवाज बन चुकी थीं। सुषमा स्वराज सादगीपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखती थीं। घर की साफ-सफाई करने से लेकर किचिंन में आम महिलाओं की भांति काम करना उन्हें पसंद था। उनकी राजनीतिक यात्र शुरू से अंत तक पाक रही। कोई आरोप तक नहीं लगा। विरोधी दलों के नेता भी उनके काम करने के तरीकों को सीखा करते थे।

सुषमा सियासी पटल पर अटल-आडवाणी युग के बाद दूसरी पीढ़ी के प्रखर नेताओं में शुमार होकर अपनी अलहदा चमक खिबेर रही थीं। मौत के मात्र तीन घंटे पहले तक पूरी तरह से सक्रिय रहीं। नब्बे के दशक में उनकी शैली को अलग माना गया। हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पार्टी ने जहां से कहा वह मैदान में उतरीं और लोगों में दिलो में रच-बस गईं। विगत एकाध वर्षो से उनका स्वास्थ्य कुछ गिरा था जिस कारण उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। पर, उनकी राजनीतिक सक्रियता लगातार जारी रहीं। विदेश मंत्री रहते जितनी लोकप्रियता उन्हें मिली, शायद आज तक किसी विदेश मंत्री को नहीं मिली। उनके कार्यकाल में उनका दरबार गरीब, असहायों और जरूरतमंदों के लिए हमेशा खुला रहता था। कोई भी निराश होकर नहीं लौटा। उनके सियासी सफर पर नजर डालें तो एक सुनहरा अध्याय पढ़ने और सुनने को मिलता है। सत्तर के दशक में उनका भाजपा की छात्र ईकाई एबीवीपी से जुड़ना हुआ और यहीं से उनकी सियासी यात्रा का आगाज भी हुआ। मात्र पच्चीस वर्ष की आयु में सुषमा स्वराज मंत्री बनीं। सन् 1977 में हरियाणा विधानसभा की सदस्य बनीं और कैबिनेट मंत्री का पदभार भी संभाला।

उनके नाम सबसे कम उम्र में जनता पार्टी हरियाणा की अध्यक्ष बनने का रिकॉर्ड भी है। सुषमा 1987 से 1990 के बीच भाजपा एवं लोकदल की गठबंधन सरकार में हरियाणा की शिक्षा मंत्री रहीं। उन्हें दिल्ली की पहली मुख्यमंत्री होने का भी गौरव प्राप्त हुआ। उनके निधन से एक स्वर्णिम युग का अंत हुआ। सुषमा के लिए आज शब्द तक कम पड़ रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के बाद मुखर प्रवक्ता के लिए हमेशा सुषमा स्वराज को याद किया जाएगा। विदेशी नेता भी आज सुषमा को याद कर रहे हैं। सुषमा स्वराज के निधन पर देश के ही नहीं, बल्कि दुनिया के तमाम नेता भी दुख जता रहे हैं। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने सुषमा स्वराज के निधन पर अपनी श्रृधांजलि दी हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया ने एक महान कद्दावर नेता खो दिया है। अमेरिका के कई नेताओं ने भी सुषमा के परिवार और भारत के प्रति सहानुभूति जताई। इसके अलावा पाकिस्तान की पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी ने भी सुषमा स्वराज जी के अचानक निधन से दुखी हैं। उन्होंने स्वराज को विशिष्ट और दृढ़निश्चयी प्रतिनिधि बताया।

सुषमा स्वराज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे वफादार साथियों में से एक थीं। पीएम को उनके निधन से बहुत बड़ा धक्का लगा है। सुबह जब अंतिम दर्शन करने उनके घर पहुंचे तो पीएम भी भावुक हो गए। उनके साथ काम करने के दौरान के समय को याद करके उनकी आंखें नम हो गईं। सुषमा स्वराज तीन साल पहले तक पूरी तरह स्वस्थ थीं। अचानक उन्हें पता चला कि उनकी किड़नी खराब हो गई हैं। कडनी फेल होने पर उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया। डायलिसिस पर रखा गया, ट्रीटमेंट के बाद उनकी हालत में सुधार हुआ। इसके बाद उनके परिवारजनों के आग्रर पर राजनीति से कुछ दूरियां बनाई। चुनाव भी नहीं लड़ा, लेकिन देश के लिए हमेशा फिक्रमंद रहीं। मौत के कुछ घंटे पहले ही उन्होंने 370 हटाए जाने को लेकर प्रधानमंत्री को बधाई भी दी। दिसंबर 2016 में सुषमा की दोनों किडनियों का ट्रांसप्लांट किया गया था। इसके अलावा वह डायबिटीज की पुरानी बीमारी से भी जूझ रही थीं।

बताते हैं कि सुषमा स्वराज करीब बीस वर्षो से भी ज्यादा समय से डायबिटीज की पीड़ित थीं जिसके चलते ही उनकी किडनी खराब हुई थी। नेतृत्व क्षमता के लिहाजा से सुषमा स्वराज जी को भाजपा में दूसरी पीढ़ी के दमदार राजनेताओं में गिना जाता रहा है। 2014 के चुनावों में उन्होंने विदिशा से जीत हासिल की। उनकी काबिलियत व योगदान को देखते हुए मोदी ने उन्हें विदेश मंत्री बनाया। इंदिरा गांधी के बाद सुषमा स्वराज दूसरी ऐसी महिला थीं, जिन्होंने विदेश मंत्री का पद संभाला था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा कि वे असाधारण वक्ता एवं उत्कृष्ट सांसद थीं। जब बात विचारधारा की आती थी अथवा भाजपा के हितों की आती थी तो वह किसी प्रकार का समझौता नहीं करती थीं, जिसे आगे ले जाने में उनका बहुत योगदान था। उनके निधन से देश को बड़ा नुकसान हुआ है जिनकी भरपाई कभी भी नहीं की जा सकती। भावभीनी श्रृद्धांजलि!

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