वायु प्रदूषण फैलाने वालों को 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना

प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद सरकार ने कड़ा कानून तो बना दिया, मगर उससे स्थिति कितनी सुधरेगी, यह देखने वाला होगा। प्रदूषण को लेकर आज जो स्थिति है, वह सरकारी मशीनरी की ढिलाई का नतीजा है।
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दिल्ली के साथ-साथ देश के एक बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण के कहर के बीच सुप्रीम कोर्ट ने सक्रियता दिखाई तो सरकार भी हरकत में आ गई। सरकार ने आनन-फानन में कानून बनाया और रातों-रात उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भी करा लिए। अब वायु प्रदूषण फैलाने वालों को पांच साल की जेल और एक करोड़ रुपए तक जुर्माना भरना पड़ सकता है। मगर प्रदूषण को रोकने के इंतजामों पर सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि इसके लिए ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं। तमाम डांट-फटकार के बाद भी पंजाब में पराली दहन पर प्रभावी रोक नहीं लग सकी है। यदि हमारे नीति-नियंता यह समझ रहे हैं कि प्रदूषण के गंभीर हो जाने के बाद उससे निजात पाने के आधे-अधूरे कदम उठाने से समस्या का समाधान हो जाएगा तो ऐसा होने वाला नहीं है। इस पर हैरानी नहीं कि दिल्ली में ऑड-ईवन योजना पर अमल करने के बाद भी वायु प्रदूषण में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आ सकी है।

खुद सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि यह योजना प्रदूषण नियंत्रण का प्रभावी उपाय नहीं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि सरकारें वायु प्रदूषण के मूल कारणों को समझने और उनका समुचित निवारण करने के लिए तैयार नहीं। तभी चीफ जस्टिस को यहां तक कहना पड़ा कि लोग प्रदूषण नहीं रोक सकते तो साइकिल से चलने की आदत डाल लेनी चाहिए। प्रदूषण से निपटने की केंद्र सरकार की ताजा कवायद उम्दा है, मगर इस पर अमल कितना होगा यह देखने वाला होगा क्योंकि इस पर अमल राज्यों को करना है।क्योंकि परिवहन विभाग, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, लोक निर्माण विभाग, पुलिस और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और नगर निगमों जैसे महकमों और एजेंसियों में तालमेल की भारी कमी है और हर महकमा अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए दूसरे पर काम टरकाने की प्रवत्ति से ग्रस्त है। विचित्र बात यह है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण बढऩे पर तो शोर मच जाता है, लेकिन जब देश के दूसरे हिस्सों में ऐसा होता है तो अधिक से अधिक यह होता है कि इस आशय की कुछ खबरें सामने आ जाती हैं।

क्या वायु प्रदूषण केवल दिल्ली के लोगों के लिए ही नुकसानदायक है? यदि नहीं तो फिर देश के दूसरे हिस्सों में फैले वायु प्रदूषण की चिंता आखिर क्यों नहीं की जाती? यह वह सवाल है, जिसका संज्ञान लिया ही जाना चाहिए। इसी के साथ यह भी समझा जाना चाहिए कि केवल आदेश-निर्देश देने, बैठकें करने और चिंता जताने से वायु प्रदूषण से छुटकारा मिलने वाला नहीं है। बीते करीब एक दशक से अक्टूबर-नवंबर में वायु प्रदूषण उत्तर भारत के लिए आपदा जैसा साबित हो रहा है। देश में प्रदूषण रोकने की कवायद को अगर गंभीरता से अंजाम दिया जाए तो यह काम काफी मुश्किल भी नहीं है। जनता को ताजी हवा देना सरकार का काम है और वह इससे पल्ला नहीं झाड़ सकती है।

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