#SaveTiger : 10 वर्षों में शिकारियों ने कुल 384 बाघों को मारा

हाल ही में खुलासा हुआ है कि पिछले 10 वर्षों में शिकारियों ने कुल 384 बाघों को मार दिया। बाघों को बचाने का प्रयास पूरी दुनिया में हो रहा है।
10 वर्षों में शिकारियों ने कुल 384 बाघों को मारा
10 वर्षों में शिकारियों ने कुल 384 बाघों को माराSocial Media

हाल ही में एक आरटीआई द्वारा खुलासा हुआ है कि पिछले 10 वर्षों में शिकारियों ने कुल 384 बाघों को मार दिया। इस अपराध के लिए अब तक 961 लोगों को आरोपी भी बनाया है। वर्ल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो द्वारा दी गई इस तरह की जानकारी से मन कचोटता है कि आखिर हम मुख्य और अहम जीव जंतुओं को भी नहीं बचा पा रहे हैं। भारत में राष्ट्रीय पशु के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने 1973 में टाइगर परियोजना लॉन्च की थी। भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा दो हजार 967 बाघ हैं। ऐसी बातों से ही तय होता है कि हमारे पास आज भी वो चीजें हैं जो पूरे विश्व में नही हैं बावजूद इसमें इतनी लापरवाही का क्या कारण हो सकता है। सरकार चाहे किसी भी की पार्टी रहे लेकिन इन मामलों में बजट की कभी कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। यह विफलता तो पूर्ण रूप से वन विभाग एवं संबंधित क्षेत्र के पुलिसकर्मियों की लगती है। पूरे विश्व में 3891 बाघ हैं जिनमें से 70 प्रतिशत केवल भारत में ही है।

भारत के अलावा बांग्लादेश, मलेशिया और साउथ कोरिया में बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। ढेर सारी अहम विशेषताओं के साथ-साथ बाघ की विश्वविख्यात पहचान और अहमियत है जैसे कि यह बिल्ली की प्रजाति का सबसे बड़ा जानवर है और ध्रुवीय भालू और भूरे भालू के बाद सबसे ज्यादा मांस खाने वाला जीव माना जाता है। इसकी टांगें इतनी मजबूत होती है कि यह मरने के बाद भी कुछ देर खड़ा रह सकता है। वहीं इसके दिमाग का वजन 300 ग्राम होता है एवं सभी मांसाहारी जीवों मे दूसरा सबसे बड़ा जानवर होता है। एक बाघ अधिक से अधिक 300 किलो और 13 फीट का हो सकता है। सफेद रंग का बाघ दस हजार में से केवल एक के ही होने की आशंका होती है। बाघ के शरीर पर जो धारियां पाई जाती हैं वो मनुष्य के फिंगरप्रिंट की तरह यूनिक होती हैं।

बहुत कम लोगों का यह जानकारी होगी कि पशु-पक्षी हमारे लिए बेहद जरूरी हैं। यह हमारे जीवन को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाते हैँ। सबसे पहले उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि जितने भी पक्षी होते हैं वह छोटे छोटे कीड़ों को खाते हैं जिससे हमारे अनाज से लेकर अन्य कई चीजों में सुरक्षा मिलती है, लेकिन अब पक्षी भी गायब हो रहे है जिसका कारण मोबाइल टॉवर है। टॉवरों से निकलने वाली तरंगों ने महानगरों में पक्षी की जातियों को पूर्णत खत्म कर दिया है। ज्ञात हो कि लगभग दो दशक पूर्व आपसे घर के आस पास कितनी प्रकार की चिडिय़ा और अन्य तरह के पक्षी चहचाहते थे लेकिन अब ऐसा दृश्य यदाकदा ही देखने को मिल पाता है। इसी तरह कई बड़े पशु भी मानव जीवन को हानि पहुंचाने वाले कीड़े और जीव-जंतुओं को नाश करते हैं। मनुष्य में अपने तकनीकीकरण और विकास की लालच में प्रकृति का नाश करना शुरू कर दिया जिसका हमें सबसे बड़ा और नकारात्मक उदाहरण यह दिखा कि महानगरों में मनुष्य की आयु केवल 60 से 65 वर्ष तक ही सीमित होकर रह गई। हालांकि गांव के परिवेश में अभी आयु 80 से 85 वर्ष हैं क्योंकि अब भी वहां प्रकृति शेष है।

अब बदलते परिवेश में हमने अपनी जीवन प्रक्रिया को सरल तो बना लिया, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी बहुत जल्दी दिखने लगे। जिन बीमारियों के नाम भी नहीं सुने गए थे वो अब कम आयु में लोगों को घेरने लगी है। अब तो लोगों ने अपनी जरूरतों का बहाना इस तर्ज पर कहना शुरू कर दिया कि प्यास गजब की लगी थी और पानी में जहर था, पीते तो मर जाते और नहीं पीते तो भी मर जाते। अत: जल्द ही हमने अपनी आदतों को नहीं बदला तो विनाश बहुत जल्द तय है। बहराहल, अब बाघ की सुरक्षा करना हमारा अहम उद्देश्य है। शासन-प्रशासन को इस विषय में बेहद गंभीरता दिखाने की जरूरत है। अब बात यह समझने है कि 2008 से अब तक यूनस्को लगातार हमारे देश की धरोहरों पर अपनी निगाह बनाए हुए है और 13 धरोहरों को मानवता अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की प्रतिनिधि लिस्ट में स्थान दे चुका है। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि 195 देशों की संस्था हमारे देश के इतिहास व कलाओं को खोजकर हमें गर्वित महसूस करवा रही हैं और उन्हें दुनिया से परिचित भी।

हमारे देश के लगभग हर राज्य में अलग-अलग सैकड़ों संस्कृतियां शुमार हैं। ऐसी कितनी बातें हमें गर्वित कराती हैं लेकिन हमारे देश को अपनी कीमत और वकत का अंदाजा नहीं है जिससे सजीव उदाहरण यह है कि हमारे खुद के लोगों ने ही 10 वर्षों में 384 बाघों को मार दिया। लगभग हर चीज पुन: प्राप्त हो जाती है, लेकिन बाघ एक ऐसी प्रजाति है यदि एक बार पूर्णत खत्म हो गई तो दोबारा हमें नहीं मिल पाएगी। हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए बाघ सिर्फ किताबों या फोटो तक ही सीमित होकर रह जाएंगे। अगर ऐसा न हो, तो सरकारों के साथ-साथ समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। साथ ही शिकारियों पर कड़ी कार्यवाही करने के साथ ही उन्हें बाघों के विषय में समझाना होगा और उनकी जानकारी को बढ़ाना होगा। यह हम सभी को ज्ञात रखना होगा कि बाघ हमारे देश की अहम धरोहरों मे से एक हैं। इसके बाद भी अगर उनका जीवन सुरक्षित नहीं है, तो फिर शिकारियों में लालच से ज्यादा अज्ञानता हावी दिखती है। चूंकि शायद उनको यह नहीं पता कि जितना फायदा उन्हें बाघ को मार कर होगा, उससे कहीं ज्यादा नुकसान तो देश को उठाना होगा। अत: जरूरी है कि बाघ बचाने के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाया जाए। शायद बदलाव दिखने लगे।

सिर्फ भारत ही नहीं, बाघों को बचाने का प्रयास हर तरफ हो रहा है। दुनिया भर में बाघों की घटती संख्या से निपटने के लिए बाघों की आबादी वाले 13 देश उनकी वैश्विक गिनती के लिए सहमत हुए हैं। गिनती का मकसद बाघों की संख्या जानना और उनकी रक्षा के लिए बेहतर नीतियां बनाना है। एक सदी पहले बाघों की संख्या एक लाख के करीब थी, 2010 में इनकी संख्या बस 3200 के पास रह गई। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ ने बाघों को गंभीर रूप से लुप्तप्राय जानवरों की सूची में डाल रखा है। बाघों की घटती संख्या के लिए शिकार, जंगलों में इंसानी दखल और गैरकानूनी वन्यजीव व्यापार जिम्मेदार ठहराए जाते हैं। जानकारों का कहना है कि ऐसा समझा जाता है कि बाघों की आबादी पिछले चार सालों से स्थिर है लेकिन सटीक संख्या की कमी प्रभावी नीतियों के लिए बाधा बनी हुई है। साल 2010 में बाघों की आबादी वाले 13 देश बांग्लादेश, भूटान, चीन, कंबोडिया, भारत, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाइलैंड और विएतनाम ने एक योजना की शुरुआत की जिसके तहत बाघों की आबादी दोगुनी की जा सके।

अवैध शिकार अब भी बाघों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। सभी टाइगर रेंजों में यह सब हो रहा है, लेकिन हमारी सरकारों द्वारा शिकार रोकने के लिए मजबूत प्रतिबद्धता को हम अब तक नहीं देख पा रहे हैं। पर अब समय आ गया है, जब हमें बाघों के संरक्षण के प्रति धारणा बदलनी होगी। हम अपनी वस्तुओं के प्रति जितनी चिंता प्रकट करते हैं, उतनी ही हमें बाघों के प्रति भी दिखानी होगी। माना कि बाघ हमारे परिवार का हिस्सा नहीं हैं, मगर वे हमसे अलग भी नहीं हैं। इसलिए बिना देर किए न सिर्फ बाघ बल्कि सभी पशु-पक्षियों की रक्षा करनी होगी।

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