मिग-21 विमान हादसा : 4 दशकों में 500 से ज्यादा मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त

ग्वालियर एयरबेस पर मिग-21 विमान के हादसे ने एक बार फिर वायुसेना की चिंता बढ़ा दी है। पिछले कई वर्षों में जिस तरह से एक के बाद एक विमान हादसों का शिकार हुए हैं, वह सही नहीं है।
मिग-21 विमान हादसा
मिग-21 विमान हादसाSocial Media

वायुसेना का मिग-21 विमान मध्य भारत के एक एयरबेस पर लड़ाकू प्रशिक्षण मिशन के दौरान हादसे का शिकार हो गया। इस दुर्घटना में आईएएफ के ग्रुप कैप्टन ए गुप्ता शहीद हो गए हैं। वायुसेना ने जांच के आदेश दे दिए हैं। मिग-21 हादसे ने एक बार फिर विमान की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए हैं। आज दुनिया के बड़े देश अंतरिक्ष युद्ध की तैयारियों में लगे हैं। हाल में भारत ने अंतरिक्ष में निशाना साधने में कामयाबी हासिल की है। पर विडंबना यह है कि एक ओर हम अंतरिक्ष की ताकत बनने की बात कर रहे हैं और दूसरी ओर हमारी वायुसेना के पास जरूरत भर के भी विमान नहीं हैं। वायुसेना के पूर्व प्रमुख बीएस धनोआ ने मिग- 21 विमानों के इस्तेमाल को लेकर जो चिंता व्यत की थी, उससे यह साफ है कि ये विमान अब किसी भी रूप में सुरक्षित नहीं रह गए हैं। इसीलिए उन्हें यह कहना पड़ा था कि इतनी पुरानी तो हम कार भी नहीं चलाते हैं जितने पुराने मिग विमान उड़ा रहे हैं।

वायुसेना अध्यक्ष की यह फिक्र वाकई तब भी जायज थी और आज भी है, क्योंकि शायद ही कोई महीना बीतता हो जब मिग के दुर्घटनाग्रस्त होने की कोई खबर न आ जाती हो। पिछले कुछ सालों में मिग विमानों के हादसे बढ़े हैं, उससे सवाल उठना लाजिमी है कि कब तक हमारे लड़ाकू पायलट अपनी जान जोखिम में डाल कर इन विमानों को उड़ाते रहेंगे। लेकिन वायुसेना में अभी भी जिस बड़ी संख्या में, भले ही मजबूरी में इन विमानों का उपयोग किया जा रहा है, वह गंभीर चिंता का विषय है। हकीकत तो यह है कि आज भी मिग-21 विमान ही वायुसेना की रीढ़ बने हुए हैं। सिर्फ भारत ही दुनिया में एकमात्र देश है जो 50 साल पुराने मिग विमानों के दम पर वायुसेना को धकेले जा रहा है। वायुसेना प्रमुख पहले भी मिग विमानों के पुराने पडऩे और वायुसेना के आधुनिकीकरण का मसला उठाते रहे हैं। पर वायुसेना की बड़ी मजबूरी यह है कि उसके पास पर्याप्त लड़ाकू विमान नहीं हैं। ऐसे में मिग विमानों से ही काम चलाना पड़ रहा है चाहे पायलटों का प्रशिक्षण हो या फिर सैन्य अभियान।

पिछले कुछ सालों में हुए मिग हादसों में भारत ने कई जांबाज पायलटों का खोया है। चार दशकों में पांच सौ से ज्यादा मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं और दो सौ से ज्यादा पायलट मारे जा चुके हैं। पायलटों का मारा जाना वायुसेना के लिए मिग खोने से भी बड़ा नुकसान होता है। हालांकि वायुसेना प्रमुख कह चुके हैं कि राफेल विमान मिलने के बाद मिग विमानों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाएगा। राफेल विमानों की खेप भारत को मिलनी शुरू हो गई है। अगले तीन साल में 36 राफेल विमान वायुसेना के बेड़े में होंगे। इस तरह पहले चरण में 2022 तक मिग-21 विमान हटाए जाएंगे और 2030 तक मिग-27 और मिग-29 विमान भी हटा दिए जाएंगे। लेकिन सवाल यह है कि या 2030 तक वायुसेना मिग विमानों का ही उपयोग करती रहेगी और हम अपने लड़ाकू पायलटों को खोते रहेंगे?

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