न्याय तंत्र के लिए कड़ी चेतावनी

आखिर हमारा सिस्टम ऐसे हादसे क्यों नहीं रोक पा रहा है? माना कि लड़कियों और महिलाओं से दुराचार, हिंसा, हत्या किसी एक देश की समस्या नहीं।
न्याय तंत्र के लिए कड़ी चेतावनी
न्याय तंत्र के लिए कड़ी चेतावनीSocial Media

राज एक्सप्रेस। अपराधियों के भीतर खौफ पैदा करने की तेलंगाना पुलिस ने राह दिखाई है, जिसका पूरे देश ने समर्थन किया है। अगर हम चाहते हैं कि, भविष्य में ऐसा न हो और पुलिस पर फूल न बरसें तो हमें अपने सिस्टम को बदलना होगा, जिसमें अपराधियों के साथ सख्त से सख्त सलूक किया जाए। यह घटना न्यायतंत्र के लिए चेतावनी है। अगर देश में कानून पीड़ितों के लिए कांटा बनेगा, तो फिर जनता ऐसे ही कामों का समर्थन करने लगेगी।

हैदराबाद में हुए रेप-हत्याकांड के चारों आरोपियों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया। पुलिस जो कह रही है वह सच है या फिर झूठ यह जांच में सामने आएगा, मगर अभी तो जनता खुश है। खुश इसलिए नहीं की आरोपी मारे गए, बल्कि इसलिए सिस्टम में सुधार की गुंजाइश तो दिखी। अपराधियों को जेल में पालने का जो रिवाज हमने शुरू कर रखा है और जिस कानून की दुहाई देते हम थकते नहीं, वह अब पीछे छूट गया है। अपराधियों में खौफ पैदा करने का तरीका यही है कि, उनके साथ भी वैसा ही सलूक किया जाए, जैसा वे करने के आदी हैं। यह न सिर्फ रेप बल्कि हर मामले में होना चाहिए। खैर, हैदराबाद की बेटी को इंसाफ मिल गया है, मगर अब भी देश में ऐसी लाखों बेटियां हैं, जो इंसाफ के इंतजार में तिल-तिलकर मर रही हैं। तेलंगाना पुलिस ने इस घटना को ऐसे समय अंजाम दिया है, जब पूरे देश में रेप के आरोपियों के खिलाफ गुस्सा था और सरकार से ऐसी वारदातों पर कानून को और कड़ा करने की मांग की जा रही थी। पीड़िता के पिता ने सरकार को बधाई देते हुए कहा है कि, उनकी बेटी की आत्मा को शांति मिलेगी।

16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में निर्भया के गैंगरेप के बाद से देश में गुस्सा था और उसके बाद यह दूसरा मौका था, जब हैदराबाद समेत पूरे देश में लोग सड़कों पर उतरे। आरोपियों को फांसी दिए जाने की मांग की जा रही थी। यहां तक कि, एक आरोपी की मां ने चारों को उसी तरह जिंदा जलाने तक का कह दिया था, जैसे पीड़िता के साथ किया गया था। हैदराबाद के दरिंदों की करतूत को लेकर बने माहौल में उन्नाव की रेप पीड़िता को जिंदा जला दिया गया, वह अस्पताल में जीवन से संघर्ष कर रही है। इस पीड़िता के साथ जो हुआ, वह भी हमारे कानून की देन है। कानून में जमानत देने का प्रावधान है, सो अपराधी बाहर आए और पीड़िता को जान से मारने की पराकाष्ठा पार कर गए। आखिर हम किस सिस्टम की दुहाई देते हैं और किस कानून की माला जपते हैं। इससे अच्छा है कि, अपराधियों को तत्काल सजा देने का नियम बना दिया जाए। 2012 में हुए निर्भया गैंग रेप कांड पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया। निर्भया के साथ जो कुछ हुआ उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। आरोपियों के खिलाफ पूरा देश एकजुट था और सुप्रीम कोर्ट का फैसला पांच सालों में आ गया।

आज पशु चिकित्सक को न्याय मिल गया लेकिन देश की हजारों निर्भया सालों से इंसाफ का रास्ता देख रही हैं। लखनऊ की वो लड़की तब महज 13 साल की थी जब कुछ लोगों ने उसे जबरदस्ती एक कार में धकेलकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया था। इस घटना को 12 साल बीत गए, अब तक पीड़िता दर्जनों बार अदालत में पेश हुई, आरोपी पकड़े गए और छूट गए, लेकिन न्याय नहीं मिला, अब हाईकोर्ट से उम्मीद जारी है और न जाने कितने सालों तक रहेगी। अफसोस की ऐसी सैंकड़ों पीड़ित महिलाएं हैं। वहीं ऐसे भी मुकदमे हैं, जिन पर अब तक सुनवाई तक नहीं की गई। वर्ष 2014 में यूपी के मुजफ्फरनगर-शामली में हुए दंगों में सात मुस्लिम महिलाएं सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई थीं, जिनकी सुनवाई एक नई धारा 376(2जी) के तहत होनी थी लेकिन साढ़े तीन साल बीत गए न्याय तो दूर सात में से कुछ के मामलों में तो आज तक सुनवाई नहीं हुई। अफसोस की ये सिर्फ अकेला मामला नहीं है।

जिस देश में हर आधे घंटे में एक रेप की घटना घटती हो उस देश में एक रेप केस पर न्याय मिलने में सालों का समय लगता है, लेकिन कैलेंडर तो बदल जाते हैं, लेकिन इन पीड़ितों की जिंदगी नहीं बदलती, वो रुक जाती है, जैसे किसी ने उनकी जिंदगी होल्ड पर रख दी हो। बलात्कार पीड़िता ताउम्र पीड़ित रहती है, उसकी शादी नहीं होती, शादीशुदा हो तो समाज में इज्जत नहीं मिल पाती, लेकिन आरोपी शादी भी करता है और एक हंसती खेलती जिंदगी भी बिताता है। 2015 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 34,651 बलात्कार के मामले दर्ज हुए, जिनमें से 95 कस्टोडियल रेप और 557 अपने ही परिवार वालों द्वारा किए गए मामले थे। इन मामलों में अब भी लंबित मामलों की दर बहुत ज्यादा है। 2015 के सारे आपराधिक मामलों में 28.4 फीसदी मामलों में जांच अभी भी लंबित हैं। इनमें से रेप के 50,509 मामलों की जांच होनी थी, जिनमें से 31.8 फीसदी की जांच अब भी बकाया है, सजा दर 29 फीसदी रही। अटेम्प्ट टू रेप रेप यानी बलात्कार के प्रयास के 5,726 मामलों में जांच होनी थी, जिसमें 31.4 फीसदी की जांच बकाया है। इन मामलों में 3,892 लोगों ने चार्जशीट फाइल की जिनमें 19.8 फीसदी मामलों में सजा हुई।

2012 में हुए निर्भया कांड के बाद महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों को निपटाने के लिए सरकार ने सारी राज्य सरकारों से फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने के लिए कहा था। दिल्ली की ही बात करें तो सरकार और हाई कोर्ट ने छह फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए हैं, जिनमें अब भी रेप के 1600 मामले पेंडिग पड़े हुए हैं। देशभर की फास्ट ट्रैक कोर्ट में लाखों मामले पेंडिंग हैं। 10 लाख लोगों पर औसतन 14 जज हैं, तो अंदाजा लगाइए न्याय भी उसी औसत में ही मिलेगा। हम कह सकते हैं कि, निर्भया का मामला देश का मामला बन गया था और इसीलिए सिर्फ पांच साल का इंतजार करना पड़ा, लेकिन रेप का हर मामला देश का नहीं होता और न हर मामले के लिए लोग एकजुट होते हैं। ये पेंडिग केस इसी बात का सबूत हैं और इस बात का भी कि, रेप जैसे जघन्य अपराधों के लिए सरकार और कानून कितनी गंभीरता से सोचता है। देशभर में बाल दुष्कर्म के एक लाख 50 हजार 332 मामले लंबित हैं और इस प्रकार के मामलों के निपटान की दर महज नौ फीसदी ही रही है। इन मामलों के पीड़ितों को बच्चों के पक्ष में इंसाफ का इंतजार है। पॉक्सो कानून को लागू हुए सात साल बीत गए अभी देश में डाटा प्रबंधन प्रणाली या प्रबंधन सूचना प्रणाली दुरुस्त करना बाकी है।

वर्ष 2018 में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के सर्वे ने पूरे विश्व में भारत को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक और असुरक्षित बताया था। आज हर के मन में एक ही सवाल घुमड़ रहा है कि, आखिर हमारा सिस्टम ऐसे हादसे क्यों नहीं रोक पा रहा है? माना कि लड़कियों और महिलाओं से दुराचार, हिंसा, हत्या किसी एक देश की समस्या नहीं। पूरी दुनिया की आधी आबादी इस बर्बरता से जूझ रही है। लेकिन सिर्फ इस जानकारी से हम संतुष्ट होकर तो नहीं बैठ सकते। कठुआ रेप केस के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तत्कालीन अध्यक्ष क्रिस्टिन लैगार्डे को कहना पड़ा था कि, भारत सरकार दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। निर्भया कांड से पूरा देश हिल उठा। अब तो आधी आबादी का भगवान ही मालिक है। हमारी व्यवस्था महिला सुरक्षा के प्रति जरा भी संवेदनशील नहीं है। आज हर देशवासी के मन में एक ही सवाल घुमड़ रहा है कि आखिर हमारा सिस्टम ऐसे हादसे क्यों नहीं रोक पा रहा है? महिलाएं आखिर क्यों डर-डर कर जिंदा रहने को मजबूर हैं?

आज पूरे देश में ऐसे अपराधियों के भीतर कानून का कोई खौफ नहीं है। बर्बरता कम होने की बजाय और भयावह होती जा रही है। अब तेलंगाना पुलिस ने राह दिखाई है, जिसका पूरे देश ने समर्थन किया है। अगर हम चाहते हैं कि, ऐसा न हो और पुलिस पर फूल न बरसें तो हमें अपने सिस्टम को बदलना होगा, जिसमें अपराधियों के साथ सख्त से सख्त सलूक किया जाए। यह घटना न्यायतंत्र के लिए चेतावनी है।

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