कोरोना वायरस : 2 माह की पाबंदी के बाद अब सरकारों ने राहत देना शुरू किया

पहली लहर के बाद जिस तरह की लापरवाही बरती गई, उसका परिणाम हम देख चुके हैं। लिहाजा अब पिछली गलतियों से सबक लेना होगा, ताकि तीसरी लहर के खतरे से देश को बचाया जा सके।
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कई हफ्तों की पाबंदी के बाद देश के कुछ राज्यों ने अब इसमें ढील देने की कवायद शुरू कर दी है। ढील देने का काम भी चरणबद्ध तरीके से हो रहा है। माना जा रहा है कि ज्यादातर जगहों पर संक्रमण के मामलों में अब काफी कमी आ गई है। लेकिन अभी पके तौर पर यह दावा करना सही नहीं होगा कि खतरा टल गया है। खतरा अभी कम भर हुआ है। यानी जोखिम बरकरार है। इस वक़्त हम ऐसे नाजुक मोड़ पर हैं जिसमें अब जरा-सी भी लापरवाही एक बार फिर तबाही के रास्ते पर धकेल सकती है। हाल ही में गुजरे दौर को पलट कर देखना जरूरी है। दूसरी लहर ने जिस तरह से कहर बरपाया, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। देश में संक्रमितों का रोजाना आंकड़ा चार लाख के ऊपर निकल गया था। इसी के बाद देश को एक बार फिर से लॉकडाउन जैसे सख्त प्रतिबंधों की मार झेलने को मजबूर होना पड़ा। विषाणु का फैलाव रोकने के लिए राज्यों के पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं रह गया था। लेकिन सवाल यह है कि जीवन को आखिर कब तक इस तरह कैद रखा जा सकता है?

अगर काम-धंधे नहीं चलेंगे तो लोग भूखे मरने लगेंगे। कर्ज में डूबते जाएंगे। कारोबार ठप होने लगेंगे। यह सब पिछले साल भी हम भुगत ही चुके हैं। इसलिए हालात को देखते हुए सरकारें भी मजबूरी को समझ रही हैं। बस देखने की बात यह है कि कौन सा राज्य कितनी छूट देता है और कितने बेहतर ढंग से महामारी के हालात और काम-धंधे के बीच तालमेल बना कर आगे बढ़ता है। गौरतलब है कि सभी राज्यों की बड़ी चिंता छोटे उद्योगों धंधों को लेकर ज्यादा है, क्योंकि राज्यों की आमदनी का बड़ा हिस्सा इनसे मिलने वाले करों से आता है। इसलिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र ने आम जनजीवन को पटरी पर लाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। यह सही भी है क्योंकि ज्यादा ढील या एक साथ सब कुछ खोल देना नए खतरे को न्योता देने जैसे होगा। ढील के बाद के जोखिम भी कम नहीं हैं। क्योंकि पिछली बार एक साथ बाजार खोल देने से भीड़ बढऩे लगी थी। इससे सबक लेना होगा। बारी-बारी बाजारों को खोलने के दिन और समय निर्धारित करना जरूरी है, ताकि भीड़ न बढ़े।

मुश्किल तो है ही, क्योंकि लोगों को महामारी से बचाना है और अर्थव्यवस्था को भी रास्ते पर लाना है। इसमें कोई संदेह नहीं कि दूसरी लहर के तांडव से लोगों में डर तो बना है और यह डर फिजूल का भी नहीं है। इसलिए लोग खुद भी काफी कुछ चिंतित और सतर्क तो हैं। इधर सरकारें भी चाह रही हैं कि लोग बचाव के लिए बनाए गए नियमों का पालन करें। अगर लापरवाही या चूक हुई तो महामारी से जंग जीतना मुश्किल हो जाएगा। इस बात से कोई इंकार नहीं करेगा कि महामारी का खतरा टला नहीं है। दो महीने की पाबंदियों के कारण संक्रमण को फैलने से रोक पाने में कामयाबी भर मिली है। इसलिए अगर भीड़ बढऩे लगेगी तो फिर से संक्रमण फैलने में देर नहीं लगेगी।

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