कृषि विधेयक किसानों के लिए डेथ वारंट (Death Warrant) साबित होगा ?

विपक्ष को अंदेशा है कि यह विधेयक किसानों के लिए डेथ वारंट साबित होगा, मगर अभी सरकार जो कह रही है, उस पर भी पूरे देश को भरोसा करना ही होगा।
कृषि विधेयक किसानों के लिए डेथ वारंट(Death Warrant) साबित होगा ?
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राज्यसभा में रविवार को केंद्र सरकार ने खेती से जुड़े दो बिल फार्मर्स एंड प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स बिल और फार्मर्स एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस बिल ध्वनिमत से पास करा लिया। राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद ये कानून बन जाएंगे। इससे पहले वोटिंग के दौरान सदन में जमकर हंगामा हुआ। विपक्षी सांसदों ने वेल में जाकर नारेबाजी की। तृणमूल सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने उपसभापति हरिवंश का माइक तोडऩे की कोशिश की। उन्होंने सदन की रूल बुक भी फाड़ दी। सदन की कार्यवाही जारी रखने के लिए मार्शलों को बुलाना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा से दोनों बिल पास होने के बाद 8 ट्वीट किए। किसानों को बधाई दी। उन्होंने कहा, भारत के कृषि इतिहास में आज एक बड़ा दिन है। संसद में अहम विधेयकों के पारित होने पर मैं परिश्रमी अन्नदाताओं को बधाई देता हूं। यह न केवल कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाएगा, बल्कि इससे करोड़ों किसान सशक्त होंगे।

दूसरे ट्वीट में उन्होंने फिर किसानों को भरोसा दिलाया कि एमएसपी और सरकारी खरीददारी पहले की तरह जारी रहेगी। कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समाप्त करने और कॉरपोरेट जगत को फायदा पहुंचाने के लिए दोनों नए कृषि विधेयक लेकर आई है। हालांकि सरकार ने खंडन करते हुए कहा कि किसानों को बाजार का विकल्प और उनकी फसलों को बेहतर कीमत दिलाने के उद्देश्य से ये विधेयक लाए गए हैं। जो भी हो, सरकार और विपक्ष जिस तरह की बातें कर रहे हैं, वह सब भविष्य के गर्भ में है। सरकार की बात सच होगी या विपक्ष की, यह सामने आएगा। मगर अभी सरकार जो कह रही है, उस पर भरोसा करना होगा। सरकार का कहना है कि एमएसपी का लाभ मिलता रहेगा और सरकारी खरीद जारी रहेगी तो ऐसा होगा। एमएसपी वह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी गारंटेड मूल्य है जो किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही बाजार में फसल की कीमतें कम हो।

तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े। उन्हें न्यूनतम कीमत मिलती रहे। सरकार हर फसल सीजन से पहले कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है। किसी फसल की बंपर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती है, तब एमएसपी उनके लिए फिस एश्योर्ड प्राइज का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों में गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है। पीडीएस के जरिये जनता तक अनाज को रियायती दरों पर पहुंचाती है। पीडीएस के तहत देशभर में पांच लाख उचित मूल्य दुकानें हैं जहां से लोगों को रियायती दरों पर अनाज बांटा जाता है। एपीसी का नाम वर्ष 1985 में बदलकर सीएपीसी किया गया। यह कृषि से जुड़ी वस्तुओं की कीमतों को तय करने की नीति बनाने में सरकार की मदद करती है।

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