नरेंद्र मोदी सरकार का लक्ष्य समाज के हर वर्ग तक पहुँचे योजनायें

सामान्यत: सार्वजनिक सेवाओं को सुविधाजनक,आसान और विश्वसनीय बनाने का कार्य निजी क्षेत्र को सौंपा जाता है, क्योंकि सार्वजनिक व्यवस्थाओं से गुणवत्तापूर्ण सेवाओं की प्रदायगी कराना कठिन नहीं, लगभग असंभव है।
नरेंद्र मोदी सरकार का लक्ष्य
नरेंद्र मोदी सरकार का लक्ष्यPankaj Baraiya

"केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का लक्ष्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक योजनाओं का प्रचारप्रसार करना और लाभ पहुंचाना है। मोदी सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने पहले दिन से प्रयासरत है और सफलता भी अर्जित कर रही है। गरीबों को आवास देना हो ,गैस कनेक्शन या फिर चिकित्सा की सुविधा, सरकार ने हर मोर्चे पर कीर्तिमान गढ़े हैं। इससे गरीबों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, साथ ही देश भी आगे बढ़ा है "

राज एक्सप्रेस। सार्वजनिक सेवाओं को सुविधाजनक, आसान और विश्वसनीय प्रणाली तैयार करने का कार्य इस आधार पर छोड़ दिया जाता है कि यह सब निजी क्षेत्र कर लेगा क्योंकि सार्वजनिक व्यवस्थाओं से गुणवत्ता पूर्ण सेवाओं की प्रदायगी कराना कठिन नहीं, लगभग असंभव है। भारत में सर्वाधिक वंचित परिवारों तक जरूरी सेवाओं की समता और न्याय आधारित प्रदायगी अनिवार्य रूप से लाभार्थियों के साक्ष्य-आधारित चयन, भलीभांति किए गए अनुसंधान के आधार पर नीतिगत उपायों, सूचना-प्रौद्योगिकी से जुड़े संसाधनों की उपलब्धता और उनके पूर्ण उपयोग के जरिए मानवीय हस्तक्षेप को कम से कम करने और अन्य के साथ-साथ संघीय संरचना में काम करने वाली विभिन्न एजेंसियों के साथ ठोस तालमेल पर निर्भर करती है।

बुनियादी ढांचागत कमियों, विस्तृत भौगोलिक क्षेत्रों व देश के कई दुर्गम भूभागों में दूर-दूर बसी विरल आबादी को ध्यान में रखते हुए यह कार्य और भी जरूरी हो जाता है। वास्तव में इतने बड़े पैमाने पर अपेक्षित सेवाओं की संकल्पना, योजना तैयार करना और सेवाएं प्रदान करना गैर सरकारी एजेंसियों के लिए असंभव है। हालांकि निजी क्षेत्र और स्थानीय/राज्य स्तरों पर कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। तथापि, सबका साथ-सबका विकास के व्यापक फ्रेमवर्क में सभी के लिए आवास, सभी के लिए स्वास्थ्य, सभी के लिए शिक्षा, सभी के लिए रोजगार जैसे महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति और नए भारत का स्वप्न साकार करने सार्वजनिक सेवाओं की पर्याप्त व्यवस्था जरूरी है, ताकि अखिल भारतीय आधार पर कार्यक्रमों की आयोजना, वित्तपोषण, कार्यान्वयन और निगरानी के साथ उनमें समय-समय पर बदलाव किए जा सकें।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान ग्रामीण विकास के क्षेत्र में चलाए गए ग्राम स्वराज अभियान जैसे कार्यक्रम पूरी तरह पारदर्शी रहे हैं। वास्तव में ये कार्यक्रम समुदाय के प्रति जवाबदेही के साथ अपेक्षित परिणाम हासिल करने के लिए भरोसेमंद सार्वजनिक सेवा प्रणाली तैयार करने के उत्कृष्टम उदाहरण हैं। हमारी यह यात्रा जुलाई, 2015 में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित जनगणना (एसईसीसी) 2011 के आंकड़ों को अंतिम रूप दिए जाने के साथ शुरू हुई। गरीबों के लिए चलाए जाने वाले लोक कल्याण कार्यक्रमों में अभावग्रस्त परिवारों का सटीक व उद्देश्य-परक निर्धारण किया जाना आवश्यक था। गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वालों की 2002 में तैयार की गई बीपीएल सूची ग्राम प्रधान का विशेषाधिकार बन चुकी थी और इससे गरीब अक्सर छूट जाते थे। एसईसीसी के तहत अभाव के पैरामीटरों की पहचान करना आसान है।

आंकड़े एकत्रित किए जाने के समय लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि, एसईसीसी का इस्तेमाल क्या और किस तरह से होगा। इसके आधार पर तैयार की गई रिपोर्टे वास्तविकता के बहुत नजदीक हैं। परिवारों की गरीबी के पैरामीटरों को तैयार किए जाने के बाद ग्राम सभा के माध्यम से पुष्टि की प्रक्रिया ने इस डाटाबेस में समुदाय आधारित सुधार का अवसर दिया। एलपीजी कनेक्शन के लिए उज्जवला, बिजली के निशुल्क कनेक्शन के लिए सौभाग्य, मकान की व्यवस्था के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) और अस्पताल में चिकित्सीय सहायता के लिए आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रमों के तहत लाभार्थियों का चयन एसईसीसी के अभाव संबंधी मानदंडों के आधार पर किया गया।

गरीबी के सटीक निर्धारण, आंकड़ों में सुधार और उन्हें अद्यतन बनाने में ग्राम सभाओं की भागीदारी से आधार और परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग, कार्यक्रमों के लिए राज्यों में एक नोडल खाते, पंचायतों को धनराशि खर्च करने का अधिकार दिए जाने किंतु नकद राशि न देने, सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) जैसे प्रशासनिक व वित्तीय प्रबंधन सुधारों को अपनाया जा सका। इसके परिणामस्वरूप लीकेज की स्थिति में बड़ा बदलाव आया।गरीबों के जन-धन खाते और अन्य खाते भी बिना बिचौलियों के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम बन गए। इससे व्यवस्था में काफी सुधार हुआ।

पंचायत के खाते में नकद राशि अंतरण किए जाने की बजाय केवल पंचायत के निर्वाचित नेता के प्राधिकार से मजदूरी और सामग्री के लिए भुगतान इस प्रणाली के माध्यम से किए जा सकते हैं। मनरेगा जैसे कार्यक्रमों से गरीबों के खातों में धनराशि के अंतरण, टिकाऊ परिसंपत्तियों के सृजन और आजीविका सुरक्षा सहित प्रमुख सुधारों को बढ़ावा मिला है। दिहाड़ी मजदूरी के लिए रोजगार उपलब्ध कराना जरूरी है, साथ ही यह भी आवश्यक है कि मजदूरी आधारित रोजगार के परिणामस्वरूप गरीबों की आय और दशा में सुधार लाने वाली टिकाऊ परिसंपत्तियों का सृजन भी हो। ग्राम पंचायत स्तर पर मजदूरी व सामग्री के 60:40 के अनुपात जैसे नियमों में बदलाव कर इसे जिला स्तर पर भी लागू किया गया।

गरीबों के लिए स्वयं अपने मकान के निर्माण कार्य में 90/95 दिन के कार्य के लिए सहायता के रूप में व्यक्तिगत लाभार्थी योजनाएं शुरू की गईं। इन योजनाओं में गरीबों के साथ सीमांत एवं छोटे किसानों को भी शामिल कर, मनरेगा के अंतर्गत पशुओं के बाड़े बनाए गए, कुएं और खेत तालाब खोदे गए व पौधरोपण कार्य किए गए। प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) तथा कृषि और जुड़े कार्यकलापों पर अधिक जोर देते हुए सामुदायिक परिसंपत्तियों का निर्माण भी जारी रखा गया। हमने मनरेगा के अंतर्गत लीकेज पर पूरी तरह अंकुश लगाने और गुणवत्तापूर्ण परिसंपत्तियों के सृजन के लिए साक्ष्यों का सहारा लिया।

2018 में आर्थिक विकास संस्थान के अध्य्यन में पाया गया कि 76% परिसंपत्तियाँ अच्छी या फिर बहुत अच्छी थीं। केवल 0.5 फीसदी परिसंपत्तियाँ असंतोषजनक पाई गईं। मनरेगा व इसके सुचारू कार्यान्वयन के लिए विश्वसनीय सार्वजनिक व्यवस्था तैयार करना महत्वपूर्ण कदम है। हमने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए एक तकनीकी दल गठित कर साक्ष्य आधारित कार्यक्रम लागू करने के लिए इस प्रौद्योगिकी का उपयोग किया। अब इसके परिणाम दिखाई दे रहे हैं। 15 दिनों के भीतर भुगतान आदेशों की संख्या 2013-14 के 26% से बढ़कर 2018-19 में 90% से अधिक हो गई। इस वर्ष हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि भुगतान आदेश न केवल समय पर जारी हों, बल्कि धनराशि पंद्रह दिन के भीतर ही खाते में जमा हो जाए।

यह सच है कि हम सार्वजनिक सेवा प्रणालियों की सफलता का जिक्र करने में भी कोई रुचि नहीं लेते क्योंकि ज्यादातर की धारणा सरकारों को निष्क्रिय तथा निजी क्षेत्र को कारगर स्वरूप में देखने की बन चुकी है। संदेह नहीं कि निजी क्षेत्र ने शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन हमें यह भी समझना जरूरी है कि सामाजिक क्षेत्र में गरीबों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रम जैसी सेवाओं में अब भी समुदाय के नेतृत्व व स्वामित्व वाली ऐसी सार्वजनिक सेवा प्रदायगी व्यवस्था की जरूरत है जो परिणामों पर केंद्रित हों। प्रसन्नता की बात यह है कि PM मोदी के नेतृत्व में सरकार शुरू से ही प्रयत्नशील रही है। इसके सुखद परिणाम सामने आए हैं और यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है।

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