फिर सोनिया के हाथ कांग्रेस

कांग्रेस नेताओं ने एक बार फिर से सोनिया गांधी को पार्टी की बागडोर सौंप दी है। 72 दिन यानी ढाई माह की उहापोह की स्थिति के बाद सोनिया गांधी को फिर से कांग्रेस का सिरमौर बनाया गया है।
फिर सोनिया के हाथ कांग्रेस
फिर सोनिया के हाथ कांग्रेसPriyanka Yadav - RE

राज एक्सप्रेस, भोपाल। सोनिया गांधी को कांग्रेस नेताओं ने एक बार फिर से पार्टी की बागडोर सौंप दी है। 72 दिन यानी ढाई माह की उहापोह की स्थिति के बाद सोनिया गांधी को फिर से कांग्रेस का सिरमौर बनाया गया है। वे किस तरह से कांग्रेस को पुनर्जीवित करती हैं, यह देखना होगा।

गांधी परिवार से इतर नया मुखिया चुनने की कवायद के बीच कांग्रेस कार्यसमिति ने एक बार फिर सोनिया गांधी के नेतृत्व पर ही भरोसा जताया। वर्ष 1998 से 2017 तक पार्टी की कमान संभालने वालीं सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। पार्टी के नए मुखिया के चुनाव तक वही पार्टी की कमान संभालेंगी। इससे पहले सोनिया और राहुल पहले दौर की बैठक बीच में ही छोड़कर चले गए थे। उनका कहना था कि वे अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहते। ताकि किसी की राय प्रभावित न हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि सोनिया गांधी की संगठन क्षमता कमजोर है या उन्हें नेतृत्व करना नहीं आता।

सवाल यह है कि अगर सोनिया गांधी को ही कमान देनी थी तो फिर ढाई माह तक नाटक क्यों चला। कांग्रेस की कमान गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को देनी की मशक्कत क्यों की गई। राहुल गांधी के इस्तीफा देने के एक-दो दिन बाद ही यह फैसला क्यों नहीं किया गया। सोनिया गांधी जिस दुहाई के बाद अध्यक्ष पद लेने को राजी हुईं, वह दुहाई तो कांग्रेसी न जाने कब से दे रहे थे। कांग्रेसी कह रहे थे कि गांधी परिवार के बिना पार्टी पूरी तरह बिखर जाएगी और टुकड़ों में बंट जाएगी।

कांग्रेस कार्यसमिति में हुए फैसले से पार्टी के नेता भले ही राहत की सांस ले रहे हों, मगर इससे देश में संदेश अच्छा नहीं जाएगा। कांग्रेस पर लोगों का भरोसा पहले ही कम हुआ है। अब गांधी परिवार और बाहरी को लेकर जिस तरह का नाटक लंबे समय तक चला उससे पार्टी की छवि बहुत अच्छी नहीं रह जाएगी। कहने को तो सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष बनी हैं और नए अध्यक्ष का चुनाव कराकर पद से हट जाएंगी। मगर सवाल वही है कि आखिर कौन है जो इस पद को संभालेगा और यदि कोई होता तो अब ही नहीं अध्यक्ष बन गया होता। यह सब बातें दिल बहलाने के लिए ठीक हैं।

कांग्रेस 2014 के बाद से काफी कुछ गंवा चुकी है। उसे आगे का रास्ता कुछ पाने का तैयार करना चाहिए। पुरानी लकीर पर चलकर उसे कुछ हासिल नहीं होने वाला है। बहरहाल, सोनिया गांधी 19 साल तक कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं। सीताराम केसरी के बाद 14 मार्च 1998 को उन्होंने अध्यक्ष पद संभाला और 16 दिसंबर 2017 तक इस पद पर रहीं। 17 दिसंबर 2017 को राहुल कांग्रेस अध्यक्ष बने। राहुल ने 3 जुलाई, 2019 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था।

सोनिया गांधी भले ही अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभालेंगी। लेकिन इसके बावजूद वर्तमान दौर में कांग्रेस को उबारना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। केंद्र सरकार के लगातार दो बार के कार्यकाल के कामकाज, फैसलों और उठाए गए मुद्दों के बीच उभरकर सामने आए भाजपा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तिलिस्म को तोड़ना इनमें सबसे बड़ी चुनौती होगी। भाजपा की आक्रामक प्रचार शैली के साथ शुरू हुए सदस्यता अभियान के बीच अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरना होगा।

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