कोरोनावायरस- 67 टीकों पर 2021 के अंत तक क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने की उम्मीद

अपेक्षाकृत कमजोर जीवित विषाणु वाले सफल टीकों की संख्या कम है, क्योंकि उन्हें बनाना जटिल काम है। ऐसा इसलिए भी है कि क्योंकि यह वास्तव में परीक्षण और त्रुटि पर आधारित होता है।
कोरोनावायरस- 67 टीकों पर 2021 के अंत तक क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने की उम्मीद
कोरोनावायरस- 67 टीकों पर 2021 के अंत तक क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने की उम्मीदSocial Media

इस वक्त दुनिया कोरोना के जिस मकडज़ाल में फंस गई है, उससे निकलने का एक ही रास्ता है कि अब इलाज सामने आए, कोई दवा या टीका विकसित हो। तभी दुनिया में इस महामारी को फैलने से रोका जा सकता है। इस वक्त कई देश टीके की खोज में लगे हैं। कुछ ने बना लेने का दावा किया है तो कुछ देश परीक्षण के विभिन्न चरणों में हैं। दुनिया भर के दर्जनों शोध समूह जिस अथक प्रयास में लगे हैं, वह जुए की किसी बाजी से कम नहीं है। टीका तैयार करने में जुटा हर देश और हर संस्थान यह दावा कर रहा है कि उसका टीका दूसरे की तुलना में सस्ता और ज्यादा कारगर साबित होगा। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि जल्दी ही टीका बना लेना कोई आसान काम नहीं है। ऑसफोर्ड- एस्ट्रेजेनिका के जिस टीके को लेकर सबसे ज्यादा उम्मीदें थीं, परीक्षण के दौरान एक व्यक्ति पर उसी का दुष्प्रभाव सामने आने के बाद परीक्षण अब रोकना पड़ गया है। हालांकि, ऑसफोर्ड ने फिर से परीक्षण शुरू करने की बात कही है।

महामारी के सात महीनों में 130 से अधिक प्रयोगात्मक टीकों पर काम चलने की बात सामने आई है। हाल में न्यूयार्क टाइस ने पुष्टि की कि दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में कम से कम 88 टीकों पर इस समय नैदानिक परीक्षण से पहले का शोध चल रहा है, जिनमें से 67 टीकों पर अगले साल (2021) के अंत तक चिकित्सकीय परीक्षण पूरा कर लिए जाने की उम्मीद है। इस दौड़ में शामिल टीकों में से जो सबसे आगे नजर आ रहे हैं, वे सब एक ही जैव-चिकित्सीय सिद्धांत पर आधारित और निर्मित हैं, जिसमें एक प्रोटीन (स्पाइक प्रोटीन) है, जो प्राकृतिक रूप से कोरोनाविषाणु के ऊपरी कवच पर पाया जाता है। जब यह प्रोटीन शरीर के अंदर पहुंचेगा तो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली खुद के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने के संकेत देगी और सैद्धांतिक रूप से इससे बनने वाला एंटीबॉडी कोरोनाविषाणु को नष्ट कर देगा। लेकिन कुछ शोधकर्ताओं की चिंता यह है कि हमें एक ही तरह की रणनीति पर बहुत अधिक उम्मीदें नहीं लगानी चाहिए, वह भी ऐसी रणनीति जिसे अभी सफल साबित होना बाकी है।

इसीलिए वाशिंगटन विश्वविद्यालय में विषाणु विज्ञानी डेविड वेस्लर का कहना है कि ‘अपने सभी अंडों को एक ही टोकरी में रखना बुद्धिमता नहीं है’। बीते मार्च में डॉ. वेस्लर और उनके सहयोगियों ने एक नैनो कण वाला टीका तैयार किया था, जिसमें हर एक नैनो कण पर स्पाइक प्रोटीन की नोक की साठ प्रतियां साथ जुड़ी थीं। इन नैनो कणों में पूरी स्पाइक प्रोटीन श्रृंखला के बजाय उसका बाहर निकले हुए नुकीले हिस्से, जो कोरोना विषाणु के मानव शरीर में घुसने के बाद हमारी कोशिकाओं से सबसे ज्यादा संपर्क में आता है, का इस्तेमाल किया गया है। यह एक बहुत मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित कर सकता है। जब इन नैनो कणों को चूहों में प्रवेश कराया गया, तो उनमें कोरोना विषाणु के खिलाफ बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी प्रतिक्रिया हुई। जब इन चूहों को कोरोना विषाणु के संपर्क में लाया गया, तो इन चूहों में संक्रमण नहीं फैला और जांच में ये चूहे संक्रमण से सुरक्षित पाए गए। इस सफल परीक्षण के बाज दी डॉ. वेस्लर और उनके एक सहयोगी नील किंग द्वारा स्थापित कंपनी, आइकोसावैस, जल्द ही ‘नैनोकण टीके’ का परीक्षण शुरू करेगी।

अमेरिकी सेना के वाल्टर रीड आर्मी इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने एक और ‘स्पाइक-नोक नैनो कण’ वाला टीका बनाया है, जिसका परीक्षण भी चल रहा है। कुछ अन्य कंपनियां और विश्वविद्यालय भी ‘स्पाइक-नोक नैनो कण’ वाले टीके पर काम कर रहे हैं। शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र में एंटीबॉडी कई दूसरे अस्त्रों के साथ एक प्रतिरोधी हथियार है। टीरत कोशिकाएं भी उन्हीं में से एक हैं, जो विषाणु द्वारा संक्रमित की गई कोशिकाओं को खा जाती हैं। ब्राजील के साओ पाउलो के इंस्टीट्यूट बुटानन की एक शोधकर्ता लुसियाना लेइट का कहना है कि ‘हम अभी नहीं जानते हैं कि किस तरह की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होगी।’ केवल एंटीबाडी प्रतिक्रिया प्रेरित करने वाले टीके लंबे समय में बेकार साबित हो सकते हैं। एक टीके का प्रभाव इससे भी तय होता है कि यह हमारे शरीर में किस रास्ते से भेजा जाता है। सभी टीके, जो चिकित्सकीय परीक्षण में हैं, मांसपेशियों में लगाए जाते हैं। इन्फ्लुएंजा के सफलतम टीके को नाक के रास्ते स्प्रे किया जाता है।

यह प्रणाली कोरोना विषाणु के खात्मे लिए इसलिए भी उचित है, क्योंकि कोरोना विषाणु वायु मार्ग से ही हमारे शरीर में आता है। नाक से स्प्रे के जरिए दिए जाने वाले टीकों में सबसे कल्पनाशील पहल न्यूयॉर्क की कंपनी कोडॉजेनिस की है। वह एक ऐसे टीके का परीक्षण कर रही है जिसमें कोरोना विषाणु का सिंथेटिक संस्करण प्रयोग किया जा रहा है। दशकों से टीकों के निमार्ताओं ने चेचक और पीत-ज्वर जैसे रोगों के लिए कमजोर जीवित विषाणु का सफलता से प्रयोग किया है। परंपरागत रूप से, वैज्ञानिक कमजोर विषाणु को प्राप्त करने के लिए मुर्गियों या अन्य जानवर की कोशिकाओं में उनकी वंश-वृद्धि करते हैं। लेकिन ये विषाणु अभी भी मानव कोशिकाओं में घुस पाने में सक्षम होते हैं, हालांकि, उनका प्रजनन धीमा हो जाता है।

परिणामस्वरूप, वे बीमार नहीं कर पाते। इन कमजोर विषाणुओं की छोटी खुराक प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए एक शतिशाली उत्प्रेरक का काम करती है। अपेक्षाकृत कमजोर जीवित विषाणु वाले सफल टीकों की संख्या कम है, क्योंकि उन्हें बनाना जटिल काम है। ऐसा इसलिए भी है कि क्योंकि यह वास्तव में परीक्षण और त्रुटि पर आधारित होता है। इसमें जीन में होने वाले बदलावों का पता नहीं चल पाता है। निष्क्रिय विषाणु के टीकों को तैयार करने में बहुत उच्च मानकों को पूरा करना पड़ता है। इसमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत होती है कि टीकों में सभी विषाणु कमजोर या निष्क्रिय हों। वाल्नेवा का टीका पहले ही उन मानकों को पूरा कर चुका है, लेकिन चीनी टीकों के बारे में किसी को कुछ नहीं पता। इसीलिए ब्रिटेन ने वाल्नेवा के टीके की छह करोड़ खुराक पहले ही से खरीद ली है।

अगर ये टीके के शुरुआती स्तर पर भी कामयाब रहते हैं, तो अगली चुनौती इनकी भारी-भरकम वैश्विक मांग को पूरा करने की होगी। कई पारंपरिक टीके बड़े पैमाने पर उत्पादित किए जा सकते हैं, जिनका उपयोग सुरक्षित और प्रभावी ढंग से दशकों से हो रहा है। कोडॉजेनिस ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ अपने विषाणु वाले टीके के उत्पादन के लिए साझेदारी की है। यह कंपनी पहले से ही खसरा, रोटाविषाणु और इन्फ्लुएंजा के लिए जीवित-कमजोर विषाणु के टीकों की अरबों खुराक बनाती है। कार्यप्रणाली का इस्तेमाल करने से टीके की लागत भी काफी कम बैठेगी।

भले दुनिया को कोविड -19 से बचाव के लिए सस्ते और प्रभावी टीके मिल जाएं, लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि आने वाली महामारियों की चिंताएं खत्म हो जाएंगी। जंगली जानवरों में छिपे बैठे अन्य विषाणु से कोविड-19 जैसी महामारी कभी भी प्रकट हो सकती है। कई कंपनियां, जिनमें चीन की अनहुइ जोइफी, फ्रांस की ओसिवैस और अमेरिका की वीबीआई भी हैं, कोरोना विषाणु के टीके विकसित कर रही हैं और ये ऐसे विषाणु समूह से सुरक्षा देंगे, जिन्होंने मानव जाति को अब तक संक्रमित नहीं किया।

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