देश में एनआरसी की जरूरत है या नहीं?

पश्चिम बंगाल में गृहमंत्री अमित शाह ने एनआरसी पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए दिए गए बयान से मच गया है बवाल, बात उठती है कि क्या देश में एनआरसी लाने की आवश्यकता है?
एनआरसी (NRC) की जरुरत क्यों?
एनआरसी (NRC) की जरुरत क्यों?Syed Dabeer Hussain - RE

राज एक्सप्रेस। गृहमंत्री अमित शाह ने एनआरसी पर रुख स्पष्ट करते हुए कहा, हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध शरणार्थी को देश से जाने नहीं दिया जाएगा। वहीं, घुसपैठियों को भारत में रहने नहीं दिया जाएगा। इस पर बवाल मचा है, पर घुसपैठियों की पहचान से किसी को दिक्कत नहीं है।

भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर केंद्र सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए कहा, किसी भी हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध शरणार्थी को देश से जाने नहीं दिया जाएगा। वहीं, घुसपैठियों को भारत में रहने नहीं दिया जाएगा। एनआरसी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है और इसे हर हाल में लागू किया जाएगा। नेताजी इंडोर स्टेडियम में एनआरसी पर आयोजित सेमिनार में शाह ने ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस पर एनआरसी को लेकर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बंगाल में एनआरसी को लागू किया जाएगा, लेकिन उससे पहले नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पास कराकर सभी हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। शाह ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ही चार अगस्त-2005 को संसद में घुसपैठ का मुद्दा उठाया था। अब वे अपने कथन से मुकर रही हैं। घुसपैठियों को देश से बाहर करने को लेकर गृहमंत्री शाह के बयान से सियासत गरमा गई है।

बता दें कि असम में नेशनल सिटीजन रजिस्टर का आखिरी मसौदा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में तैयार किया गया था, जिसमें इसका खुलासा होने पर पार्टियों ने इसे राजनीतिक पैंतरा बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। पश्चिम बंगाल में तो यह राजनीति की धुरी बनता जा रहा है। हालांकि, गृहमंत्री ने विवाद पैदा होने के बाद स्पष्ट किया था कि, अभी भी लोगों के पास एनआरसी में शामिल होने का मौका है लेकिन राजनीतिक लाभ लेने वाले ऐसे स्पष्टीकरण का कोई मूल्य नहीं रह जाता। फिर धड़ाधड़ की जा रही बयानबाजी से समाज दो वर्गो में बंट चुका है। एक विरोध करने वाले, दूसरे समर्थन करने वाले साथ ही देशभक्ति और देशद्रोहियों के फरमान जारी होने लगे हैं। यह पूरा मामला दरअसल आगामी चुनावों को लेकर जारी है। असम और बंगाल की सीटों की संख्या बहुत ही अहम है। देश की राजनीति की खासियत बन गई है कि समाज को बांटना। अच्छी बात यह होती कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को रैलियों की भाषणबाजी में न लाया जाता, अदालत का काम अदालत करती व राजनेता अपना काम करते और सरकार जो कर रही है, उसे करने दिया जाए।

राजनीतिक शगूफेबाजी समाज में अमन-शांति को प्रभावित करती है एवं इससे राजनीतिक हिंसा बढ़ती है। केरल में पहले ही राजनीतिक हिंसा के भयानक परिणाम सामने आ चुके हैं, जिससे सीख लेनी चाहिए थी। एक तरफ प्रधानमंत्री भीड़ द्वारा हिंसा की निंदा करते हुए सख्ती इस्तेमाल करने का संदेश दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ एनआरसी के नाम पर राजनेता दो वर्गो में सीधे टकराव का माहौल बना रहे हैं। एनआरसी देश की जरूरत और कानूनी प्रक्रिया में से क्या है, यह बहस का प्रश्न है, लेकिन इसकी आड़ में देश को विभाजित करना सरासर गलत है। जहां तक सवाल देश में घुसपैठियों की पहचान का है, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

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