डोनाल्ड ट्रंप अब तालिबान के साथ क्या करेंगे ?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कब क्या कर देंगे या बोल देंगे इसके बारे में कोई भी भविष्यवाणी जोखिम भरी होगी।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंपPankaj Baraiya - RE

राज एक्सप्रेस। अफगानिस्तान में तालिबानों के वर्चस्व का मतलब पाकिस्तान का परोक्ष आधिपत्य। भारत इसी का तोड़ निकालने में जुटा है। तालिबान से वार्ता के बावजूद वहां हिंसक गतिविधियां जारी रहीं। लिहाजा, ट्रंप बातचीत के दौर से बाहर आए गए। अब देखना होगा कि अमेरिका आगे क्या करता है। लेकिन तत्काल भारत और पूरे क्षेत्र के लिए यह राहत की खबर है। हमारा लक्ष्य तालिबान को परास्त करने का है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कब क्या कर देंगे या बोल देंगे इसके बारे में कोई भी भविष्यवाणी जोखिम भरी होगी। बावजूद इसके तालिबान से बातचीत को खत्म करने की उनकी घोषणा वाकई राहतकारी है। जब पिछले दो अगस्त को घोषणा हुई कि, अमेरिका और तालिबान के बीच समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है तो पूरी दुनिया में भविष्य को लेकर कई प्रकार की आशंकाओं के स्वर उभरने लगे। उस घोषणा के अनुसार अमेरिका नाटो सहित अपनी फौजों को वापस कर लेगा। ट्रंप प्रशासन के अंदर इस बात पर सहमति है कि हमें किसी तरह अफगानिस्तान से निकल भागना है। इसीलिए जल्मे खलीलजाद को विशेष प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया एवं वो पिछले दिसंबर से कतर की राजधानी दोहा में तालिबान के साथ नौ दौर की बातचीत के बाद समझौते के एक मसौदे पर पहुंचे थे। साफ लगने लगा था कि अमेरिका और तालिबान इस पर हस्ताक्षर करने ही वाले हैं। इसी बीच अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने घोषणा की कि, वे इस समझौते से सहमत नहीं हैं। हालांकि तब भी विशेषज्ञ यह मान रहे थे कि ट्रंप विदेशमंत्री को दरकिनार कर स्वयं हस्ताक्षर कर देंगे। तत्काल ट्रंप ने वही किया जो उनके विदेश मंत्री चाहते थे। प्रश्न है कि अब आगे क्या?

इस बारे में कुछ भी कहना कठिन है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तालिबान के साथ वार्ता से पीछे हटने की वजह पांच सितंबर को काबुल में तालिबान द्वारा किया गया है, हमला बताया है जिसमें एक अमेरिकी सैनिक समेत 12 लोग मारे गए। माइकपौम्पियो ने कहा है कि अगर तालिबान रवैया बदले तो वार्ता फिर हो सकती है। यह वार्ता तालिबान के लिए कितना अनुकूल था इसका पता ट्रंप के निर्णय के बाद आए उसके बयान से चलता है। तालिबान ने कहा कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान वॉशिंगटन को होगा लेकिन वह भावी वार्ता के लिए द्वार खुला छोड़ता है। तालिबान की ओर से ट्विटर पर जारी बयान में प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि हम अब भी..विश्वास करते हैं कि, अमेरिकी पक्ष को यह समझ में आएगा..पिछले 18 सालों से हमारी लड़ाई ने अमेरिकियों के लिए साबित कर दिया है कि जब तक हम उनके कब्जे का पूर्ण समापन नहीं देख लेते तब तक संतुष्ट नहीं बैठेंगे। इस बयान का अर्थ तो यही है कि तालिबान अपनी शर्तो पर बातचीत कर रहा था। उसका मानना है अमेरिका उसको पराजित नहीं कर सकता, इसलिए हारकर समझौता वार्ता करने आया। इसमें धमकी भी है कि हम अमेरिका के कब्जे को पूरी तरह खत्म कर देंगे। नौ दौर की वार्ता के बाद भी यदि तालिबान में इतना दंभ है तो फिर इससे समझा जा सकता है खलीलजाद साहब किस शैली में वार्ता कर रहे थे। भारत ने हमेशा इस वार्ता का विरोध किया था।

भारत का मानना था कि इससे आतंकवादियों का मनोबल बढ़ेगा और वे अफगानिस्तान के शासन पर कब्जा के लिए संघर्ष करेंगे। उनकी आज जैसी ताकत है उसमें वे गठबंधन सेनाओं की वापसी के बाद कब्जा करके फिर मन का इस्लामी शासन लागू करेंगे जिसमें खड़ा किया गया आधुनिक ढांचा ध्वस्त कर दिया जाएगा। अफगानिस्तान के लोकतंत्र स्थापना में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उसके चुनाव में हमारे चुनाव आयोग और पर्यवेक्षक तक लगे। उसका संसद भवन भारत ने बनाया। इसी तरह शिक्षा और स्वास्थ्य के कई केंद्र भारत ने बनाए। तालिबान के लिए ये सब इस्लामी विचारधारा के विरुद्ध है। तो वे इसे बनाए क्योंकर रखेंगे? इस बीच जो शिक्षालय वहां अस्तित्व में आए हैं, मीडिया विकसित हुई है, फिल्में बन रहीं हैं, थियेटर भी शुरू हुए हैं, युवक-युवतियां खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगे हैं। तालिबान इन सबको खत्म करेगा यह निश्चित है।

सच यही है कि, अमेरिका भले तालिबान से वार्ता करता रहा लेकिन उनकी हिंसा जारी रही। तालिबान ने समझौता पर सहमति की घोषणा के बाद 7 सितंबर को कुंदूज शहर पर कब्जे का प्रयास किया था। इसके अगले दिन उसके आतंकवादियों ने बगलान प्रांत की राजधानी पुल-ए-खुमरी पर धावा बोला था। कुंदूज और अन्य उत्तरी इलाकों में हिंसा जारी है। कुंदूज में पुलिस चेकपोस्ट पर आत्मघाती हमलावर ने खुद को उड़ा लिया। इस हमले में दो पुलिस अधिकारी मारे गए और सात घायल हुए। आम धारणा यही है कि 18 सालों में तालिबान इस समय सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति में है। अमेरिकी नेतृत्व में गठबंधन सेना की लगातार कार्रवाई के बावजूद तालिबान का अफगानिस्तान के आधे भूभाग पर कब्जा कायम है। इसमें आसानी से समझा जा सकता है कि अफगानिस्तान में मौजूद करीब 20 हजार नाटो सैनिकों के हटने के बाद वहां के हालात क्या होंगे?

हालांकि अफगानिस्तान सरकार ने अपना मत स्पष्ट कर दिया था। राष्ट्रपति अशरफ गनी ने बयान दिया कि बेगुनाह लोगों की हत्या करने वाले समूह से शांति समझौता करना निरर्थक है। यह कितनी अजीब वार्ता थी इसका अंदाजा इसी से चल जाता है कि इसमें अफगानिस्तान की सरकार शामिल ही नहीं थी। तालिबान ने अमेरिका के सामने शर्त रखी थी कि सरकार से हम वार्ता नहीं करेंगे। अमेरिका ने इस शर्त को मान लिया तो यह तालिबान का मनोबल बढ़ाने वाला ही साबित हुआ। मसौदे के बारे में जितना कुछ बाहर आया है उसे समझने की कोशिश करें। खलीलजाद ने एक इंटरव्यू में कहा था कि समझौते के बाद अमेरिका 135 दिनों में अफगानिस्तान से अपने 5,400 से ज्यादा सैनिकों को हटाएगा। फिर 14 से 24 माह में अफगानिस्तान से सारे अमेरिकी सैनिक जिनकी संख्या 14 हजार हैं, हटा दिए जाएंगे। तालिबान ने अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों से दूर रहने का वादा किया है। तालिबान अफगानिस्तान को फिर से आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनने देगा। सत्ता साझा करने के मसले पर तालिबान अफगान सरकार के साथ वार्ता करेगा। खलीलजाद ने यह भी कहा था कि, इससे हिंसा में कमी आएगी और स्थायी शांति का रास्ता खुलेगा। जरा सोचिए! एक आतंकी संगठन अफगानिस्तान को आंतकवाद का अड्डा नहीं बनने देगा और अल कायदा से दूर रहेगा यह संभव है क्या? जो संगठन अफगानिस्तान सरकार को वार्ता तक में शामिल होने देने के लिए तैयार नहीं वह सत्ता साझा करने के लिए उससे बात करेगा? इसे ही कहते हैं मूर्खो के स्वर्ग में रहना।

अमेरिका भागने की जल्दबाजी में सब कुछ समझते हुए आगे बढ़ रहा था। पाक द्वारा तालिबान को संरक्षण देने को लेकर वे बयान दे रहे थे। पर अमेरिका ने पाकिस्तान के प्रति अपना व्यवहार अचानक बदल दिया था। उसे लगता था कि पाक इसमें भूमिका निभा सकता है। भारतीय कूटनीति भी सक्रिय थी। जब रूस ने आईएसआईएस को अफगानिस्तान से बाहर रखने के नाम पर तालिबान से अनौपचारिक बातचीत की तो उन्होंने भारत को बुलाया। भारत के प्रतिनिधि गए पर वार्ता से अलग रहे। दरअसल, भारत की समस्या अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों हैं। हालांकि, अफगानिस्तान से वापसी ट्रंप का चुनावी वादा है। वो हर हाल में वहां से निकलना चाहते थे। अब देखना होगा कि अमेरिका आगे क्या करता है? लेकिन तत्काल भारत और पूरे क्षेत्र के लिए यह राहत की खबर है। हमारा लक्ष्य तालिबान को परास्त करने का है।

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