बिचौलियों और सरकार की वजह से ग्राहक और किसान दोनों ही घाटे में

किसान आंदोलन के दौरान भारत बंद के बाद अब नजर समाधान पर टिकी है। सरकार कानून में बदलाव को तैयार है, तो किसान चाहते हैं कानून को रद्द किया जाए।
ग्राहक और किसान दोनों ही घाटे में
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तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए चल रहे किसान आंदोलन ने भारत बंद भी करा लिया। बावजूद इसके समाधान के आसार नहीं दिख रहे हैं। 9 दिसंबर को एक बार फिर सरकार से वार्ता का दौर तय है, यह मुकाम पर पहुंचेगा या नहीं, कहना कठिन है। दरअसल, आंदोलन में मुख्य पेंच न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी को लेकर बना हुआ है। एमएसपी के सवाल पर आंदोलनकारी किसान संगठन ही नहीं बल्कि संघ के अनुषांगिक संगठन भी सरकार के खिलाफ हैं। हालांकि इस मांग से जुड़ी जटिलताओं के कारण सरकार पूरी तरह असमंजस में है। अगर एमएसपी की कानूनी गारंटी की घोषणा कर दी जाए तो तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग संबंधी स्वर धीमे हो सकते हैं क्योंकि सरकार पहले से ही इन कानूनों के कई प्रावधानों में संशोधन के लिए तैयार है। सरकार किसानों को सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाने, एनएसआर क्षेत्र से जुड़े नए प्रदूषण कानून में बदलाव करने, निजी खरीददारों के लिए पंजीयन अनिवार्य करने और छोटे किसानों की हितों की रक्षा के प्रावधानों में बदलाव को तैयार है।

पांचवें दौर की बैठक के बेनतीजा रहने के बाद सरकार में आंदोलन खत्म कराने के लिए माथापच्ची जारी है। मुख्य चिंता एमएसपी को लेकर है। कृषि मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के बीच शनिवार रात से ही कई दौर की बातचीत हुई है। इस पर अंतिम निर्णय से पहले सरकार किसान संगठनों की ओर से बुलाए गए भारत बंद के जरिए उनका दमखम भी देख चुकी है। आजादी के बाद से ही सरकारें किसान और ग्राहकों के बीच सीधा संबंध स्थापित करने में नाकाम रही हैं। इसके कारण ग्राहकों को तो ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी, मगर ग्राहक के द्वारा चुकाई गई रकम का मामूली हिस्सा ही किसानों की जेब तक पहुंचा। मसलन ग्राहकों ने कई बार किसान द्वारा बेची गई रकम से चार से पांच गुना अधिक कीमत चुकाई। कृषि क्षेत्र का मुनाफा बिचौलियों की भेंट चढ़ता रहा। आजादी के सात दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद सरकारें किसानों का आय बढ़ाने में नाकाम रही। केंद्र सरकार का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ाने की है। एमएसपी को सरकार कानूनी तो बना देगी, मगर निजी क्षेत्र को खरीदारी के लिए बाध्य नहीं कर पाएगी। ऐसे में अगर फसल की मांग कम हुई तो निजी क्षेत्र खरीदारी करेंगे ही नहीं।

सरकार एक सीमा तक ही एमएसपी के तहत खरीदारी कर सकती है। सरकार औसतन कुल उपज का छह फीसदी की ही खरीद करती है। वर्तमान क्षमता के अनुरूप इसे दस फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। भंडारण क्षमता, अर्थव्यवस्था पर बोझ सहित कई ऐसे कारण है जिसके चलते सरकार अधिक मात्रा में अनाज नहीं खरीद सकती। किसी एक फसल की अधिक उपज होने के बाद उसकी मांग में कमी आएगी। सरकार एक सीमा से अधिक फसल नहीं खरीदेगी। सरकार हर मांग मानने को तैयार है, किसान भी जिद छोड़ें।

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