ई-सिगरेट पर पाबंदी क्यों जरूरी ?

भारत में ई-सिगरेट पर बैन लगाने के लिए कानून बनाने की मांग फिर उठी है। इस कानून की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि कानून अभाव में ई-सिगरेट के आयात पर प्रतिबंध लगाना पूरी तरह संभव नहीं है।
ई-सिगरेट पर पाबंदी क्यों जरूरी ?
ई-सिगरेट पर पाबंदी क्यों जरूरी ?Neha Shrivastava RE

"ई-सिगरेट बैटरी संचालित यंत्र है जो तरल निकोटीन, प्रोपलीन, ग्लाइकॉल, पानी, ग्लिसरीन के मिश्रण को गर्म करके एक एअरोसोल बनाता है। मॉरीशस, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड, ब्राजील, मेक्सिको, उरुग्वे, बहरीन, ईरान, सऊदी अरब और भारत के बारह राज्य में ई-सिगरेट की बिक्री पर रोक लगा दी गई है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है "

राज एक्सप्रेस। भारत में ई-सिगरेट बनाने और इसकी बिक्री पर बैन लगाने के लिए कानून बनाने की मांग फिर उठी है। इस कानून की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि इसके अभाव में ई-सिगरेट के आयात पर प्रतिबंध लगाना पूरी तरह संभव नहीं है। यदि बगैर वैधानिक उपायों के ई-सिगरेट के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया तो यह वैश्विक व्यापार के मानदंडों के विपरीत होगा। इससे पहले भी स्वास्थ्य मंत्रलय ने इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम के आयात पर रोक लगाने के लिए अधिसूचना जारी करने की मांग वाणिज्य मंत्रलय से की थी। इस मांग में ई-सिगरेट के साथ लेवर्ड हुक्का नामक मादक पदार्थ भी शामिल था।

हालांकि इसकी रोकथाम की कवायद तभी से प्रारंभ हो गई थी जब पिछले साल अगस्त में स्वास्थ्य मंत्रलय द्वारा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम के विनिर्माण, बिक्री एवं आयात रोकने के लिए एक परामर्श जारी किया था। ऐसा करने का आधार दिल्ली उच्च न्यायालय की मानव स्वास्थ्य को लेकर चिंता थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ई-सिगरेट के खतरों की रोकथाम में हो रही देरी पर गहरी चिंता व्यक्त की। नतीजतन, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सभी दवा नियंत्रकों को अपने अधिकार क्षेत्र में ई-सिगरेट व लेवर्ड हुक्का सहित इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम के विनिर्माण, बिक्री, आयात व विज्ञापन की अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया था।

ई-सिगरेट मानव स्वास्थ्य के लिए इतनी हानिकारक है कि इस साल अप्रैल में भारत के 24 राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों के एक हजार से अधिक डॉक्टरों ने भारतीयों, विशेषकर युवाओं में इसकी लत लगने के पूर्व इस पर प्रतिबंध लगा देने की मांग की है। ई-सिगरेट एक बैटरी संचालित यंत्र है जो तरल निकोटीन, प्रोपलीन, ग्लाइकॉल, पानी, ग्लिसरीन के मिश्रण को गर्म करके एक एअरोसोल बनाता है जो असली सिगरेट का अनुभव प्रदान करने का कार्य करता है। ई-सिगरेट की बिक्री सर्वप्रथम वर्ष 2004 में चीन के बाजारों में तंबाकू के विकल्प के रूप में प्रारंभ की गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्ष 2005 से ईसिगरेट के व्यवसाय को वैश्विक व्यापार बनने की बात को स्वीकार करता है।

वर्तमान में यह व्यवसाय लगभग तीन अरब डॉलर तक पहुंच गया है। जाहिर है, इसकी प्रवृत्ति धूम्रपान के आदी लोगों में तेजी से बढ़ रही है। धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में ई सिगरेट के प्रति आकर्षण बढ़ने का कारण इसका दुष्प्रचार है। सिगरेट सेवन करने वालों के मध्य इस भ्रांति को फैलाया गया है कि ई-सिगरेट के सेवन से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ता है। जबकि अब तक सिगरेट का सेवन करने वाले लोग इस बात से वाकिफ थे कि सिगरेट से कैंसर, फेफड़ों से संबंधी रोग, श्वसन तंत्र पर बुरा प्रभाव जैसी समस्याएं होती हैं। सिगरेट में पाए जाने वाले निकोटीन का प्रभाव सिगरेट पीने के चालीस मिनट बाद भी रहता है। इसलिए इस भ्रांति को फैलाया गया गया कि सिगरेट की तुलना में ई-सिगरेट बहुत हानिरहित है। इस भ्रांति ने ई-सिगरेट के व्यवसाय को वैश्विक रूप से समृद्ध बना दिया और दैनिक जीवन में धूम्रपान को जीवन शैली का हिस्सा बना चुके लोग स्वत: इस ओर आकर्षित होते चले गए।

ई-सिगरेट के प्रचलन में आने के बाद धूम्रपान करने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। निरंतर ईसिगरेट का सेवन करने वालों की संख्या में वृद्धि होते देख ब्रिटेन की स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एक्शन ऑन स्मोकिंग एंड हेल्थ (ऐश) ने इसके कारणों को जानने के लिए सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में धूम्रपान करने वाले 12 हजार वयस्कों को शामिल किया गया। अध्ययन से पता चला कि ई-सिगरेट का सेवन वाले अधिकांश लोग धूम्रपान कम करने के लिए ई-सिगरेट का सहारा ले रहे हैं। सर्वे में पता चला कि ई-सिगरेट का सेवन करने वाले ऐसे लोगों की संख्या मात्र एक प्रतिशत है, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया। नियमित रूप से सिगरेट का सेवन करने वाले लोगों में ई-सिगरेट का उपयोग करने वालों की संख्या वर्ष 2010 में 2.70 फीसद थी, जो 2014 में 17.70 फीसद तक पहुंच गई।

जब धूम्रपान छोड़ चुके लोगों से ई-सिगरेट का उपयोग करने का कारण पूछा गया तो इकहत्तर प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे धूम्रपान छोड़ने में ई-सिगरेट का सहारा लेना चाहते थे। वहीं दूसरी ओर धू्म्रपान करने वाले 48 प्रतिशत लोगों का कहना था कि उन्होंने तंबाकू की मात्रा को कम करने के लिए ई-सिगरेट का सहारा लिया। जबकि 37 प्रतिशत लोगों की राय यह थी कि उन्होंने पैसे बचाने के लिए ई-सिगरेट के विकल्प का चुनाव किया। भारत में बिकने वाली कुल ई-सिगरेट में से करीब 50 फीसद ई-सिगरेट की बिक्री ऑनलाइन होती है। इसकी आपूर्ति में चीन की बड़ी भूमिका है। ऑनलाइन उपलब्धता के चलते अब बच्चों से लेकर किशोरों तक इसकी पहुंच बहुत आसान हो गई है। ऑनलाइन बाजार जहां जीवनशैली को सुलभ एवं आसान बनाता हैं, वहीं ऐसे उत्पादों की बिक्री के चलते स्वास्थ्य एवं जीवन को संकट में भी ला खड़ा करता है।

ई-सिगरेट के सेवन से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को जानने के लिए किए गए एक अध्ययन में चौंका देने वाले तथ्य सामने आए। तकरीबन 96 हजार लोगों पर किए गए शोध में यह बात सामने आई कि ई-सिगरेट के सेवन से दिल के दौरे का खतरा 56 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, साथ ही लंबे समय तक इसका सेवन करने से खून के थक्के बनने की समस्या भी हो सकती है। इतना ही नहीं, ई-सिगरेट की लत के शिकार लोगों में अवसाद का खतरा दोगुना हो जाता है। ई-सिगरेट का असर गर्भवती महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य पर अधिक होता है। शोध अध्ययन के ये तथ्य उन भ्रांतियों से पर्दा उठाने के लिए काफी हैं जो बताते हैं कि ई-सिगरेट का सेवन हानिरहित है। कुछ समय पूर्व एक्स, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इन्फॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च व अन्य स्वास्थ्य संगठनों के डॉक्टरों को शामिल कर ई-सिगरेट के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभावों के अध्ययन को लिए एक कमेटी बनाई गई थी।

उक्त कमेटी ने 250 रिपोर्टों का विश्लेषण किया, जिसमें नतीजा सामने आया कि ई-सिगरेट से जहर फैल सकता है। कमेटी ने रिपोर्ट में कहा है कि इसे बनाने में जिन सामग्रियों का इस्तेमाल होता है वे नुकसानदायक होती हैं और जहरीला प्रभाव पैदा कर सकती हैं। जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस पर शोध किया है। शोध के मुताबिक साधारण तंबाकू के मुकाबले ई-सिगरेट में दस गुना अधिक मात्रा में कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं। इसकी भाप में फॉर्मेल्डिहाइड व एसिटलडीहाइड जैसे कार्सिनोजेन तत्व पाए गए हैं। फॉर्मेल्डिहाइड का इस्तेमाल इमारतों के निर्माण में होता है और ई-सिगरेट में इसकी मात्रा साधारण सिगरेट के मुकाबले ज्यादा पाई गई है। अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने इस बात को स्वीकारा है कि वर्ष 2011 से 2013 के बीच ई-सिगरेट का इस्तेमाल करने वाले युवाओं की संख्या में खासी वृद्धि दर्ज हुई है। अत: आवश्यक है कि अब ई-सिगरेट पर रोक लगाई जाए।

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