असम के तिनसुकिया जिले स्थित ऑयल इंडिया की बागजान गैस कुएं में लगी भीषण आग पर अब तक काबू नहीं पाया जा सका है। गैस की अधिक मात्रा में होने के कारण यह अब भी तेजी से फैलते जा रही है। इस भीषण आग को बुझाने के लिए सेना की मदद लेनी पड़ी। राज्य सरकार को उमीद है कि सेना की मदद से आग पर काबू पा लिया जाएगा। ऑयल इंडिया लिमिटेड के बयान के अनुसार कुएं में लगी आग पर काबू पाने के लिए अभियान की आपात स्थिति के मद्देनजर तिनसुकिया के उपायुत भास्कर पेगु ने कुएं से सटे एक जल क्षेत्र पर 150 मीटर लंबा पुल बनाने के लिए सेना की मदद लेने का अनुरोध किया है। प्रशासन के अनुरोध को स्वीकार करते हुए सेना मिसामरी और तेजू से बागजान आपदा क्षेत्र में सामान और कर्मियों को ला रही है। असम के तिनसुकिया जिले में ऑयल इंडिया लिमिटेड द्वारा संचालित बागजान क्षेत्र में एक कुएं से 27 मई 2020 को प्राकृतिक गैस का अनियंत्रित रूप से रिसाव होने लगा। इसके कारण विस्फोट हो गया। विस्फोट इतना तगड़ा था कि कुएं में आठ जून को आग लग गई। इसमें अग्निशमन दल के दो कर्मियों की मौत हो गई और एक घायल हो गया।
वहीं इससे पहले घटना का जायजा लेने के लिए केंद्रीय पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान शनिवार को असम पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि ऑयल इंडिया की बागजान गैस कुआं अग्निकांड के प्रभावितों को उचित मुआवजा दिया जाएगा। प्रधान ने राहत शिविरों में रह रहे लोगों को भी भरोसा दिलाया कि सरकार सभी प्रभावितों को मुआवजा देगी। लेकिन सवाल यह है कि देश में इस तरह का यह पहला हादसा नहीं है। कई शहरों में आगजनी की घटनाएं हो चुकी है, मगर एक से भी न तो सरकार ने सबक सीखा और न ही प्रबंधन ने। इसी का नतीजा है कि अब असम के तिनसुकिया जिले के एक तेल कुएं में लगी आग बड़ा सिरदर्द साबित हो रही है। आग इतनी भयंकर है कि दस किलोमीटर दूर से इसकी लपटें देखी जा सकती हैं। विशाल हरा-भरा इलाका काले धुएं से भर गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस पर काबू पाने में कम से कम चार हफ्ते लगेंगे। याद रहे, यह कोई आकस्मिक हादसा नहीं है।
27 मई को इसी तेल कुएं में एक विस्फोट हुआ था जिसके बाद से वहां गैस लीक हो रही थी। इससे न सिर्फ यहां के लोगों का बल्कि वन्य जीवों का भी जीना हराम हो गया था। आसमान से तेल की बारिश सी हो रही थी, जिससे जल स्रोत प्रदूषित हो रहे थे। मरी डॉल्फिनें नदी में उतराई दिख रही थीं। कंपनियों में कम से कम कर्मचारी रखने का है। नतीजा यह कि कोरोना और लॉकडाउन के चलते मजदूरों के पलायन से बने शून्य को भरना सारे ही उद्यमों के प्रबंधन के लिए लोहे के चने चबाने जैसा है। सारे काम इस जटिलता का आकलन करने के बाद ही शुरू किए जाने चाहिए, वरना आने वाले दिनों में और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का साक्षी होना पड़ सकता है।
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