उत्तर को फायदा दक्षिण को नुकसान, जानिए कैसे भारत की राजनीति बदल सकता है 2026 में प्रस्तावित परिसीमन?
राज एक्सप्रेस। बीते दिनों राज्यसभा में आबादी आधारित परिसीमन और इससे दक्षिण को होने वाले नुकसान का मुद्दा उठाया गया था। इसके बाद से लोकसभा सीटों को लेकर देशभर में होने वाले परिसीमन को लेकर चर्चा तेज हो गई है। बता दें कि देश में आखिरी बार लोकसभा सीटों में संशोधन 1977 में संशोधन किया गया था। इसका आधार साल 1971 में हुई जनगणना थी। उसके बाद से अब तक देश की जनसंख्या दोगुनी से भी अधिक हो चुकी है। गौरतलब है कि 2026 में नया परिसीमन प्रस्तावित है और इसके लिए 2021 की जनगणना को आधार बनाया जाना है। हालांकि अभी से इसका विरोध भी शुरू हो गया है। इसका कारण परिसीमन की प्रक्रिया से दक्षिण को होने वाला नुकसान है। तो चलिए जानते हैं कि परिसीमन क्या है? और इससे कैसे दक्षिण को नुकसान होगा?
परिसीमन (Delimitation) क्या है?
परिसीमन का मतलब देश या राज्य की निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करना है। इस प्रक्रिया के दौरान उस क्षेत्र की जनसंख्या को आधार बनाया जाता है। इसका मकसद यह है कि समय के साथ आबादी में होने वाले बदलावों को सही तरीके से प्रतिनिधित्व मिल सके।
नई लोकसभा कैसी होगी?
वर्तमान में देश में लोकसभा सांसदों की संख्या कुल संख्या 543 है। यह संख्या साल 1977 में तय की गई थी। नियमों के अनुसार हर 10 लाख की आबादी पर 1 सांसद होना चाहिए। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में 88 करोड़ वोटर थे। इस लिहाज से साल 2026 में प्रस्तावित परिसीमन के बाद नई लोकसभा में सांसदों की संख्या 888 होगी।
उत्तर को फायदा, दक्षिण को नुकसान :
दरअसल आबादी को आधार मानकर साल 2026 में परिसीमन करने पर उत्तर, पूर्व, पश्चिम और मध्य भारत के राज्यों को तो इसका फायदा मिलेगा लेकिन दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों को नुकसान उठाना होगा। इसके बाद साल 1971 के बाद से अब तक आबादी में आया बदलाव है। आबादी के अनुसार नई लोकसभा में दक्षिण के प्रतिनिधित्व में 1.9 प्रतिशत जबकि पूर्वोत्तर के प्रतिनिधित्व में 1.1 प्रतिशत की गिरावट आएगी। वहीं उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व 1.6% बढ़कर 29.4% हो जाएगा।
भाजपा को होगा फायदा :
दरअसल परिसीमन में उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ेगी। इस क्षेत्रों में फ़िलहाल भाजपा मजबूत है। इसके उलट दक्षिण में भाजपा कमजोर है। ऐसे में उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत का प्रतिनिधित्व बढ़ने से भाजपा को फायदा हो सकता है।
उत्तर प्रदेश से होंगे 143 सांसद :
साल 2026 में प्रस्तावित परिसीमन के बाद 80 सीटों वाले उत्तरप्रदेश में लोकसभा सांसदों की संख्या 143 हो जाएगी। इसके बाद महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल का स्थान आता है।
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