अनाज की बर्बादी जटिल समस्या

28 करोड़ टन अनाज उगाने वाले देश में अगर करीब 19 करोड़ लोगों को पर्याप्त भोजन न मिल पाता हो तो यह जानना ही पड़ेगा कि, यह समस्या किस तरह की है।
अनाज की बर्बादी
अनाज की बर्बादीPankaj Baraiya - RE

राज एक्सप्रेस, भोपाल। 28 करोड़ टन अनाज उगाने वाले देश में अगर करीब 19 करोड़ लोगों को पर्याप्त भोजन न मिल पाता हो तो यह जानना ही पड़ेगा कि, यह समस्या है किस तरह की है। भारत में जितने लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता, उनकी तादाद फ्रांस, इटली, जर्मनी जैसे देशों की कुल आबादी से दोगुनी बैठती है। जाहिर है, यह समस्या कम उत्पादन से नहीं बल्कि पर्याप्त भंडारण व्यवस्था की कमी से जुड़ी है, जिसे दूर करना होगा।

खाद्य उत्पादन में भारत विश्व के शीर्ष पांच देशों में है। इस मामले में हम हर साल अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ देते हैं और इसी को बताते हुए कृषि विकास का प्रचार भी कर रहे हैं। पर ऐसे दावों के बावजूद अगर किसान आत्महत्या कर रहे हों, देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा घटता ही जा रहा हो, देश का भूख सूचकांक और कुपोषण के आंकड़े भयानक तस्वीर पेश कर रहे हों तो कृषि के हालात की जांच पड़ताल जरूर होनी चाहिए। हरित क्रांति के बाद भारत खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर घोषित हो गया था। उन्नत बीजों के इस्तेमाल से उत्पादन अचानक काफी बढ़ गया था। लेकिन यह भी हैरत की बात है कि, कई दशक पहले खाद्य आत्मनिर्भरता पा लेने के बावजूद भूख के वैश्विक सूचकांक में हम अपनी स्थिति नहीं सुधार पाए। वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में एक साल पहले की स्थिति के मुकाबले हमारी हालत तीन पायदान और नीचे चली गई। 2017 में भारत 100वें पायदान पर था और 2018 में 103वें नंबर पर आ गया। इस मामले में एक सौ 19 देशों में हमारी हालत सबसे पीछे के 17 देशों में दिखाई जा रही है। क्या रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन करने वाले किसी देश के लिए यह विचार की बात नहीं है?

28 करोड़ टन अनाज उगाने वाले देश में अगर करीब 19 करोड़ लोगों को पर्याप्त भोजन न मिल पाता हो तो यह जानना ही पड़ेगा कि यह समस्या है किस तरह की। यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्युरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड 2018' रिपोर्ट में दिया गया है। समस्या के आकार का अंदाजा लगाएं तो भारत में जितने लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता, उनकी तादाद फ्रांस, इटली, जर्मनी जैसे देशों की कुल आबादी से दोगुनी बैठती है। खासतौर पर यह समस्या और ज्यादा जटिल तब बन जाती है, जब हम अपनी मांग या जरूरत से ज्यादा अनाज पैदा करने का दावा भी कर रहे हों। इस समस्या के कई कारण बताए जा सकते हैं।

कुछ विशेषज्ञ इसका सबसे बड़ा कारण यह बताते हैं कि, देश में खाद्य उत्पाद की बर्बादी हद से ज्यादा है। कितनी बर्बादी है, इसका सही हिसाब लगा पाना 135 करोड़ की आबादी वाले देश में मुश्किल काम है। फिर भी भूख सूचकांक और छोटे-छोटे नमूने लेकर किए सर्वेक्षणों से अंदाजा लगता है कि, ब्रिटेन की आबादी का पेट भरने के लिए जितने अनाज की जरूरत पड़ती है, उतना अनाज हमारे देश में बर्बाद चला जाता है। बर्बादी का मुख्य कारण यह जाना गया है कि, अनाज की बर्बादी कई स्तरों पर होती है। लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया जाता है कि, हमारी खाद्य भंडारण व्यवस्था निर्धारित मानकों से बहुत निचले स्तर की है।

भारत में मुख्य फसलों की बात करें तो भारतीय कृषि हमेशा से ही गेहूं और चावल पर आधारित रही है। इसके अलावा दालें, गन्ना और तिलहन आदि भी भारतीय कृषि का बड़ा हिस्सा हैं। लेकिन हमारे कुल कृषि उत्पाद में आज भी गेहूं और चावल ही प्रमुखता से उगाया जा रहा है। इस बार गेहूं की पैदावार दस करोड़ टन से ज्यादा होगी। सरकार की तरफ से कहा भी गया है कि देश में अनाज की कमी नहीं है, लेकिन अब चिंता सरकारी खरीद बढ़ाने के बाद उसके भंडारण की है। इस मामले में कुछ आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है। इस साल सरकार तीन करोड़ 57 लाख टन गेहूं की खरीद की योजना बना रही है। इसी तरह चावल के लिए तीन करोड़ 75 लाख करोड़ टन खरीद का लक्ष्य बनाया गया था, जिसमें से तीन करोड़ 50 लाख टन चावल सरकार की तरफ से इस साल खरीदा जा चुका है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दो मुख्य फसलों के कुल उत्पादन का कितना हिस्सा सरकार खरीद पा रही है।

जब हमें यह पता है कि, एक तिहाई अनाज बर्बाद चला जाता है तो इसी से अंदाजा लगता है कि, कितना अनाज जरूरतमंद तबके तक पहुंच पाएगा और कितना गोदामों में और ढुलाई के समय बर्बाद हो जाएगा? जाहिर है, यह समस्या कम उत्पादन नहीं बल्कि पर्याप्त भंडारण व्यवस्था की कमी से जुड़ी है। भारत में खाद्य भंडारण का काम सरकारी संस्था फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया (एपसीआई) दूसरी सरकारी एजंसियों के साथ मिल कर करती है। यह काम राशन की दुकानों यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के जरिए गरीबों तक अन्न पहुंचाने के लिए किया जाता है। लेकिन आज तक हम अपनी भंडारण क्षमता को इतना दुरुस्त नहीं कर पाए कि देश में अनाज की बर्बादी रुक जाए। मसला सिर्फ अनाज के भंडारण का ही नहीं है। अनाज के अलावा जल्दी खराब होने वाले दूसरे खाद्य उत्पादों जैसे फल और सब्जियां को सुरक्षित भंडारण की उससे भी ज्यादा जरूरत पड़ती है।

इंस्टीट्यूशन ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स के एक शोध सर्वेक्षण के मुताबिक, इस समय भारत में करीब 6300 कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं हैं। इनकी भंडारण क्षमता करीब तीन करोड़ टन है। लेकिन इन कोल्ड स्टोरेज में से 75 से 80 फीसद गोदाम सिर्फ आलू की फसल रखने के लिए ही अनुकूल हैं। लंबे समय तक टिकने वाली मुख्य फसलें यानी गेहूं और चावल के भंडारण की स्थिति खास अच्छी नहीं है। इस समय भारत में सिर्फ आठ करोड़ 43 लाख टन अनाज के भंडारण की व्यवस्था है। इसमें से सरकारी भंडार तीन करोड़ 62 लाख टन की क्षमता के ही हैं। दूसरी एजंसियों एवं गैर सरकारी भंडारों की कुल क्षमता चार करोड़ 80 लाख टन है। हालांकि गैर सरकारी भंडारों को सरकार एक सीमित समय के लिए किराए पर ले लेती है। इतना ही नहीं, साढ़े आठ करोड़ टन की भंडारण क्षमता में एक और नुक्ता है। इन गोदामों में भी बंद या छत वाले गोदामों की क्षमता सिर्फ सात करोड़ टन है। बाकी डेढ़ करोड़ टन अनाज खुले आसमान के नीचे चबूतरों पर बोरों के कट्टे लगाकर और उन्हें तिरपाल या पॉलीथिन से ढक कर रखने की मजबूरी है।

भंडारण के काम का जिम्मा कृषि के उत्पादकों यानी किसान का है, लेकिन अब तो यह बात गैर-किसान लोग भी जान गए हैं कि मुश्किल हालात में आते जा रहे किसान कर्ज ले-लेकर किसानी कर पा रहे हैं। उनकी माली हालत इतनी खराब है कि फसल तैयार होते ही वे उसे बेचना चाहते हैं ताकि पैसा आए व अगली फसल की तैयारी करें। हर किसान चाहता है कि उसका सारा उत्पाद फौरन ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिक जाए। लेकिन किसान की उपज का थोड़ा हिस्सा ही सरकारी खरीद के जरिए बिक पाता है। बाकी बड़ा हिस्सा खुले बाजार में ही सस्ते में बेचने की उसकी मजबूरी होती है। भंडारण पर खर्च बढ़ाने का काम कृषि सुधार की योजनाओं में प्राथमिकता पर होना चाहिए। बीते साल यानी 2017-18 में भंडारण पर एफसीआई के जरिए सरकारी खर्च सिर्फ 2731 करोड़ रुपए बैठा था, लेकिन भंडारण के मामले में अपनी पतली हालत देखते हुए इस काम पर खर्च बढ़ाने की सख्त जरूरत दिख रही है। मुख्य फसलों की ज्यादा से ज्यादा खरीद का इंतजाम न सिर्फ किसानों को राहत देगा, बल्कि भूख के सूचकांक को ठीक करने और गरीब तबके तक राहत पहुंचाने के लिए जरूरी है।

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