प्रकृति से बेबस, सरकार से आस
प्रकृति से बेबस, सरकार से आसSyed Dabeer Hussain - RE

प्रकृति से बेबस, सरकार से आस

स्वर्ग से भी बढ़कर जन्मभूमि से बिछड़ने का दर्द लिए जोशीमठ के लोग कहां जाएंगे, कहा रहेंगे जैसे भविष्य के गर्त में छिपे सवालों का जवाब शीघ्र चाहते हैं।

राज एक्सप्रेस। पहाड़ दरक रहे हैं... सपने टूट रहे हैं...आशियाने उजड़ रहे हैं। सियासत, धर्म और धंधे वालों के खिलाफ सीने में आक्रोश है तो पथराई आंखों में पानी है। यह कहीं और की नहीं धसकते हिमालय का शिकार बने जोशीमठ में रहने वाले लोगों की कहानी है। एक कहावत है दुखों का पहाड़ टूट पड़ा क्या? वास्तव में जोशीमठ में यह कहावत चरित्रार्थ होती दिख रही है। पीड़ितों के चेहरों पर बेबसी के साथ झल्लाहट बताती है कि पहाड़ टूटने से जोशीमठ की जमीन के साथ लोगों के सीने भी छलनी हुए हैं।

गौरतलब है कि जोशीमठ हिंदुओं के लिए एक पवित्र शहर है, लेकिन आज यह शहर प्रकृति की मार से चौतरफा अपने अस्तित्व बचाने की गुहार लगा रहा है। यहां बड़े अरमानों से घर बनाने वाले और अपने खून-पसीने से इसे सजाने वालों की आंखों में सिर्फ बेबसी के आंसू हैं। स्वर्ग से भी बढ़कर जन्मभूमि से बिछड़ने का दर्द लिए जोशीमठ के लोग कहां जाएंगे, कहा रहेंगे जैसे भविष्य के गर्त में छिपे सवालों का जवाब शीघ्र चाहते हैं।

कल तक जिस तपोभूमि की गलियां और सुरम्य वादियां बच्चों की चहलकदमी, किलकारियों से गुंजायमान होती थी आज वहां विरानियों और सन्नाटे का मातम पसरा है। अब सवाल यह नहीं है कि जोशीमठ बचेगा या जमीन में समां जाएगा। अब सवाल यह भी नहीं है कि जोशीमठ की घटना पूर्णत: प्राकृतिक आपदा है या मानव निर्मित त्रासदी। पर एक बात तो तय है कि ऐसा लगता है मानो जोशीमठ से प्रकृति रूठ सी गई है, अब यहां रहनेवालों को सरकार से ही आस बची है। जोशीमठ की जमीन धंसने से वहां रह रहे लोगों का जीवन बिखर गया है। अब सरकार को चाहिए कि पीड़ित तपके को पर्याप्त सुविधायें मुहैया कराकर जीवन को समेटने, सहेजने और फिर से संवारने का ऐसा उदाहरण पेश करे, जो देशभर के लिए मिसाल बने।

कहते हैं पलायन का जख्म ही ऐसा होता है जिसे सिर्फ पलायन करने वाले ही नहीं, आने वाली पीढ़ियाँ भी भुगतती हैं, फिर चाहे पलायन जमीन से हो, शहर से हो, संस्था से हो, घर से हो, गांव से हो, प्रदेश से या फिर देश से हो। अब जब जिम्मेदार और जानकार जोशीमठ के भविष्य को लेकर संदेह प्रकट करने से नहीं चूक रहे हैं। ऐसे में अनियमित, अनियंत्रित, अवैज्ञानिक और अप्राकृतिक विकास की कब्र में धंसते जोशीमठ से पलायन तो सुनिश्चित है, लेकिन एक बात तय हैं कि जोशीमठ के लोग जहां भी रहेंगे उस जगह को अब विकास की कब्रगाह बनने नहीं देंगे। साथ ही वे कदापि यह नहीं चाहेंगे कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और खिलवाड़ करने की सजा जो वे भुगत रहे हैं भविष्य में और कोई भुगते।

जरा सोचिए सरकार, जीवन भर की गाढ़ी कमाई लगाकर एक आम आदमी अपने परिवार के लिए सपनों का महल तैयार करता है। वह घर उस आम के लिए बहुत ही खास होता है या यह कहें की ताज महल से बढ़कर होता है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। सच्चाई भी यही है कि हम जिस घर रहते हैं उसकी छत, दीवारें, छज्जे, खिड़कियां, दरवाजे यहां तक की घर में लगी एक-एक ईंट से भावानायें जुड़ जाती हैं। आखिरकार घर में रहकर ही तो हम भविष्य के सपने बुनते हैं और उन्हें सकार होते देखने के लिए दिनरात मेहनत करते हैं। घर में ही बच्चों का वात्सल्य अनुभव करते हैं तो माता-पिता और दादा-दादी के स्नेह को पाकर खुद को धन्य समझते हैं। और ऐसा लगता है मानो इस घर में ताउम्र यह साथ बना रहे। हमारे आसपास कई ऐसे बुजुर्ग या जवान देखने को मिल जाते हैं जो अलीशान मकान होते भी छोटे से घर में खुशी-खुशी रहते हैं और जब उनसे पूछा जाए कि आप पॉश कालोनी में स्थिति बड़े मकान छोड़कर इस पुराने और छोटे भवन में क्यों रहते हैं? तो उनका एक ही जवाब होता है कि यह मकान आपके लिए ईंट और गारे से बना खपरैल हो सकता है, लेकिन मेरे लिए स्वर्ग से बढ़कर है, क्योंकि इसी मिट्टी में खड़ी दिवारों और छतों के बीच मेरे बचपन और पूर्वजों की यादें हैं। यहीं रहते हुए मैंने अपने अरमानों को मूर्त रूप दिया है। मुझे जो सुकून और खुशियां यहां मिलती हैं वह विश्वस्तरीय सुविधाओं से सजे होटल में भी नहीं मिलती।

आपदा प्रभावित यह बताते नहीं थकते कि कल तक हम जिस घर में खुद को सबसे अधिक सुरक्षित समझते थे, आज हमारे लिए उस घर में रहना ही मुमकिन नहीं है। मुझे और मेरे परिवार को कल तक जो घर ठंडी हवा के झोंको, सूरज की तपिश और बारिश में भिगने से बचाते थे। आज वही रहने से हमारा जीवन असुरक्षित है। जरा सोचिए आपका आशियाना अचानक उजड़ जाए तो क्या होगा। आज जोशीमठ के रहने वाले 30 हजार लोग उस दौर से गुजर रहे हैं, जिसकी इंसान कभी कल्पना नहीं करता। आशियान उजड़ने, जन्म भूमि से बिछड़ने के साथ कहां जाएंगे, कैसे रहेंगे जैसे सवाल कभी न खत्म होने वाला दुख दे जाते हैं। हम जैसे लोग सिर्फ उस करुण कुंदन को सिर्फ महसूस कर सकते हैं, लेकिन उसका क्या जिनके लिए अपना घर और जन्म भूमि छोड़ना नसीब बन चुका है।

अब सरकार ही है जो पहाड़ टूटने से मिले जोशीमठ के लोगों के गहरे जख्मों पर मरहम लगा सकती है। हालांकि जोशीमठ संकट को लेकर सरकार पूरी तरह से सतर्क है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं इतनी बड़ी घटना के बाद चैन से नहीं बैठे हैं और केन्द्र सरकार की उच्चस्तरीय बैठक बुलाकर विभिन्न विशेषज्ञों से रायमशविरा करते हुए जोशीमठ को बचाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। प्रधानमंत्री स्वयं पर्यावरण प्रेमी हैं और वे विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ को कदापि बर्दाश्त नहीं करेंगे। सरकार को जोशीमठ के लोगों की पर्याप्त चिंता है। पीड़ितों के पुर्नवास के लिए सरकार पूर्ण मदद के लिए प्रतिबद्ध है। जोशीमठ के आपदा प्रभावितों की मदद के लिए केन्द्र और राज्य सरकार की कथनी और करनी में अब तक कोई फर्क नहीं दिखा है।

उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं जोशीमठ में कई दिनों रहकर नजदीक से हालात का जायजा लेते हुए लोगों को हर संभव मदद देते हुए संबल प्रदान करते देखे जा रहे हैं। सरकार से मिला पर्याप्त सहयोग और मदद का ही नतीजा है कि पीड़ितों द्वारा अब तक सरकार को लेकर कोई विशेष आक्रोश देखने को नहीं मिला है। केन्द्र सरकार जोशीमठ की वर्तमान हालत के लिए जिम्मेदारों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करेगी। हालांकि फिलहाल केन्द्र और राज्य सरकार की प्राथमिकता आपदा प्रभावितों का पर्याप्त राहत और सुविधाएं उपलब्ध कराकर उनके पुनर्वास में हर संभव मदद करना है। वास्तव में यह होना भी चाहिए। आपदा पीड़ितों का जीवन सामान्य स्तर पर लाना सरकार की पहली जिम्मेदारी है, क्योंकि जोशीमठ में अपना सब कुछ गंवा देने वालों की सिर्फ सरकार से ही आस है और केन्द्र हो या राज्य सरकार प्रभावितों की उम्मीदें पर खरा उतरने का हर संभव प्रयास करती नजर आ रही है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने पूरी रणनीति तैयार कर रखी होगी कि कैसे पीड़ितों को पुनर्वास के लिए अधिकतम राहत प्रदान की जाए। पीड़ितों को रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई, रोजगार और राहत पैकेज जैसे मुद्दों पर राज्य सरकार ने तात्कालिक घोषणा की है, जिसे आने वाले दिनों में बढ़ाया जाएगा। जोशीमठ की आपदा से प्रभावित भी यह जानते हैं कि मोदी है तो मुमकिन है। लोगों को उम्मीद है कि मोदीजी के प्रधानमंत्री रहते उन्हें एक बेहतर पुनर्वास योजना दी जाएगी।

हकीकत भी यही है कि आपदा प्रभावितों के प्रति सरकार ने जो ईमानदारी, तत्परता और सहानुभूति दिखाई है, उससे जोशीमठ के रहवासियों को संबल मिला है। इसे लेकर कोई दोमत नहीं कि सरकार के प्रयास से एक दिन फिर से नया जोशीमठ, नई जगह पर नई उमंग, उल्लास और उम्मीदों की रोशनी लिए सूर्य की भांति चमकता दिखेगा। वैसे भी जीवन अस्थिरता का पर्याय है, लेकिन फिर भी जीवन रुकता नहीं है, अब प्रशासन की आत्मियता और सहारे से जोशीमठ के लोग यह समझने लगे हैं कि सरकार उनके साथ है। हमें उम्मीद है कि एक नई जगह जहां आज शांति, सन्नाटा और विरानियां है, भविष्य में हरियाली से अच्छादित वादियां फिर से इंसानी मुस्कुराटों की छठा बिखेरेंगी, जहां प्रकृति आंचल फैलाकर आपदा प्रभावितों का सारा दर्द और बेबसी खुद में समेट लेगी। हम उम्मीद करते हैं कि आपदा पीड़ित इस घटना से सबक लेते हुए एक नया जोशीमठ बनाएंगे। जोशीमठ के लोग फिर से अपने अरमानों के आशियाने में भविष्य के सपने बनुते नजर आएंगे, क्योंकि जीवन चलने का नाम है। प्रकृति ने भले ही जोशीमठ के लोगों को बेसहारा कर दिया है, लेकिन सरकार के सहारे एक बार फिर उनकी जिंदगी में खुशियों की छठा बिखेरेगी।

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