होसबाले ने सार्वजनिक जीवन का बड़ा हिस्सा एबीवीपी में काम करते हुए गुजारा

आरएसएस प्रमुख के बाद नंबर दो माने जाने वाले इस पद पर दत्तात्रेय होसबाले के चुनाव को संघ की सोच में बदलाव के तौर पर भी देखा जा रहा है।
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होसबाले ने सार्वजनिक जीवन का बड़ा हिस्सा एबीवीपी में काम करते हुए गुजाराSocial Media

दत्तात्रेय होसबाले को संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की दो दिवसीय बैठक के दौरान सर्वसम्मत्ति से सरकार्यवाह (जनरल सेक्रेटरी) चुना गया है। इससे पहले वे सह सरकार्यवाह की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। आरएसएस प्रमुख के बाद नंबर दो माने जाने वाले इस पद पर दत्तात्रेय होसबाले के चुनाव को संघ की सोच में बदलाव के तौर पर भी देखा जा रहा है। उन्हें संघ का अपेक्षाकृत उदार चेहरा माना जाता है। इससे पहले तक संघ के शीर्ष पदों पर वही व्यक्ति नियुक्त और निर्वाचित होता था जिसने शुरुआती काम संघ के किसी सहयोगी संगठन में न किया हो, बल्कि शुरू से ही सीधे संघ के कामकाज से जुड़ा रहा हो। दत्तात्रेय संघ में आने के बाद लंबे समय तक एबीवीपी से जुड़े रहे। 12 सालों से इस पद पर बने सुरेश भैयाजी ने सरकार्यवाह पद छोडऩे की इच्छा वर्ष 2018 में ही जताई थी, लेकिन 2019 में चुनाव को देखते हुए उन्हें एक साल तक पद पर बने रहने को कहा गया था।

2018 में भी दत्तात्रेय होसबाले का नाम इस पद के लिए आया था, लेकिन उस वक्त संघ दुविधा में था क्योंकि होसबाले ने अपने सार्वजनिक जीवन का बड़ा हिस्सा एबीवीपी में काम करते हुए गुजारा था। संघ के मुख्यधारा के कामकाज से वे बाद में जुड़े। ऐसी ही शर्तों के कारण मदन दास देवी भी सरकार्यवाह नहीं बन सके थे। लेकिन, 2021 में दत्तात्रेय सरकार्यवाह पद के लिए चुन लिए गए। तो क्या संघ ने अपनी सोच कुछ बदली है। होसबाले एबीवीपी में 15 साल तक रहे हैं। इसलिए, संघ के कुछ अहम पदों की बागडोर युवाओं के हाथ में दी जा सकती है। होसबोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी करीबी माने जाते हैं। दत्तात्रेय और मोदी की नजदीकी का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि 2015 में दत्तात्रेय को सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी जाने की कोशिश की गई थी लेकिन विफल साबित हुई। संघ के ही एक धड़े ने उनका विरोध किया था। साथ ही मौजूदा माहौल को देखते हुए संघ के ऊपर लगे पुरातनवादी सोच के ठप्पे को बदलने में भी होसबाले का व्यक्तित्व मददगार साबित होगा। संघ की छवि बदलेगी तो भाजपा की छवि खुद-ब-खुद बदलने लगेगी।

नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के निर्वाचित होने के और भी मायने हैं। मसलन, दत्तात्रेय कर्नाटक से हैं। वे कन्नड़, तमिल, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत के जानकार हैं। भाजपा दक्षिण भारत में अपना प्रसार और बढ़ाना चाहती है। ऐसे में संघ के महत्वपूर्ण पद पर दत्तात्रेय के आने से भाजपा के लिए दक्षिण भारत में जमीन तलाशना आसान होगा। होसबाले दो कार्यकाल पूरा करेंगे। यानी छह साल तक। भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर हिस्सों में पैठ बनाने के बाद संघ का फोकस पूरी तरह से दक्षिण पर है। ऐसे में कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले होसबाले इस लक्ष्य को हासिल करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। आने वाले समय में दक्षिण भारत के कई राज्यों में चुनाव हैं। कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले होसबाले मददगार हो सकते हैं।

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