आखिर तंबाकू से कब बनेगी दूरी?

देश के युवाओं में शराब और धूम्रपान के पदार्थो का बढ़ता रुझान क्या इसके गंभीर खतरे से दुनिया को बचा पायेगा, या फिर पूरी दुनिया को एकजुटता के साथ प्रयास करने होगें?
तंबाकू -निदान कब तक
तंबाकू -निदान कब तकPankaj Baraiya -RE

राज एक्सप्रेस। द लैनसेट नामक पत्रिका में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के मुताबिक वर्ष 2015 में विश्व भर में धूम्रपान के कारण 64 लाख लोगों में से 11.5 प्रतिशत की मौत हुई थी। देश ही नहीं पूरी दुनिया में तंबाकू के बढ़ रहे चलन को खत्म करने का बीड़ा किसी एक देश के उठाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि पूरी दुनिया को सामूहिकता से प्रयास करना होगा। तभी हम अपनी आबादी को नशे के मुंह में जाने से बचा पाएंगे।

इस अध्ययन में वर्ष 1990 से वर्ष 2015 के दौरान 195 देशों में धूम्रपान करने की आदत को आधार बनाया गया था। वर्ष 2015 में विश्व में 10 मौतों में से लगभग एक की मौत धूम्रपान के कारण हुई थी। धूम्रपान से होने वाली 50 प्रतिशत से अधिक मौतें भारत समेत चार देशों में हुई। धूम्रपान के कारण 52.2 प्रतिशत लोगों की मौत चीन, भारत, अमेरिका और रूस में हुई। पुरुषों के धूम्रपान करने के मामले में चीन, भारत और इंडोनेशिया सबसे आगे हैं। वर्ष 2015 में धूमपान करने वाले 51.4 प्रतिशत पुरुष इन्हीं तीन देशों से थे, जबकि महिलाओं के संदर्भ में दुनिया के तीन अग्रणी देश अमेरिका, चीन और भारत हैं। इस पड़ताल के मुताबिक इन तीनों देशों में धूम्रपान करने वाली महिलाओं की 27.3 प्रतिशत आबादी रहती है।

गौरतलब है कि दुनिया में धूम्रपान करने वाली कुल आबादी के 11.2 प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005 के मुकाबले साल 2015 में धूम्रपान से होने वाली मौतों में 4.7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। अब देखा जाए तो मौजूदा समय में धूम्रपान अक्षमता का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। शोधकर्ताओं का मानना है कि धूम्रपान के खिलाफ अभी एक लंबी अंतहीन लड़ाई लड़नी शेष है। इस समय पूरे विश्व में 25 प्रतिशत पुरुष और 5.4 प्रतिशत महिलाएं धूम्रपान करती हैं। एक दूसरे अनुमान के मुताबिक भारत में लगभग 12 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। वह भी तंबाकू के नुकसान को जानते हुए। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार विश्व भर में तंबाकू सेवन करने वालों में से 12 प्रतिशत लोग भारत में निवास करते हैं। 2009 के आंकड़ों के मुताबिक उस साल भारत में लगभग नौ लाख लोग तंबाकू का सेवन करने के कारण मर गए थे, वहीं, वर्ष 2015 में तंबाकू का सेवन करने वालों की संख्या बढ़कर 10 करोड़ 80 लाख हो गई।

यह आंकड़ा इसलिए भी बेहद डरावना है, क्योंकि वर्ष 1998 से वर्ष 2015 के बीच तंबाकू सेवन करने वाले लोगों की संख्या में 36 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। वैसे, तंबाकू के सेवन से वैश्विक स्तर पर 60 लाख लोग हर साल मौत के मुंह में समा रहे हैं। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार 20वीं सदी में तंबाकू का सेवन करने से लगभग 10 करोड़ लोग मारे गए थे। अगर तंबाकू सेवन का मौजूदा चलन यूं ही चलता रहता है तो 21वीं शताब्दी के अंत तक लगभग एक अरब लोग इसके कारण असमय ही काल-कवलित हो जाएंगे। वित्त वर्ष 2005-06 में की गई राष्ट्रीय स्वास्थ परिवार सर्वे के मुताबिक तंबाकू का उपभोग ग्रामीण पुरुषों में खास करके निरक्षर व गरीब लोगों में ज्यादा था।

ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे, जो कि वित्त वर्ष 2009-10 में 15 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों को लक्षित करके किया गया था में पाया गया कि 34.6 प्रतिशत वयस्क में 47.9 प्रतिशत पुरुष एवं 20.3 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू का सेवन करते थे। तंबाकू स्वास्थ के लिए बहुत हानिकारक है। इसकी वजह से कैंसर एवं दूसरे रोगों के कारण मरने का खतरा लगातार बना रहता है। इससे विकलांगता का भी खतरा रहता है। वैसे, इससे सबसे अधिक मुंह एवं फेफड़े के कैंसर होते हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में टीबी की बीमारी के कारण सबसे ज्यादा लोग मर रहे हैं, जिसका कारण भी तंबाकू सेवन है। इससे बरबस सबसे खतरनाक तथ्य तंबाकू के सेवन से शरीर के किसी भी अंग का कभी भी फेल होना है।

अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इसका लगातार सेवन करने से एक तकलीफदेह मौत निश्चित है। भले ही लोग तंबाकू के सेवन से मर रहे हैं, लेकिन भारत में धुएं के सेवन का इतिहास बहुत ही पुराना है। एक अनुमान के मुताबिक ईसा पूर्व 2000 के पहले से ही इसका उपभोग भारत में किया जा रहा है। धुएं के सेवन के दृष्टांत अर्थववेद में भी पाए जाते हैं। हालांकि, देखा जाए तो भारत में तंबाकू का आगाज 17वीं शताब्दी में हुआ था। तंबाकू के दुष्परिणामों से अवगत होने के बावजूद भारत में सार्वजनिक स्थल पर तंबाकू का उपयोग दो अक्टूबर-2008 को बंद कर दिया गया था। हालांकि, अभी भी इस बंदिश का अनुपालन देश भर में नहीं किया जा रहा है। लोग सार्वजनिक स्थल पर तंबाकू पीने के आदी हैं। ऐसे में तंबाकू का सेवन नहीं करने वाले लोग भी बिना किसी गलती के तंबाकू जनित रोग के शिकार हो रहे हैं।

भारत में तंबाकू सेवन करने की समस्या बहुत ही गंभीर है। स्वास्थ के दृष्टिकोण से और दूसरे कारणों से भी। दरअसल, भारत में तंबाकू सेवन के बहुत सारे प्रकार हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बीड़ी, हुक्का और चिलम आदि पिया जाता है तो शहरों में सिगरेट, सिगार, चुरूट आदि। खैनी, पान, जर्दा आदि के जरिए भी तंबाकू सेवन किया जाता है, लेकिन तंबाकू सेवन के इस प्रकार को अपनाने वालों की संख्या कम है। मौजूदा समय में भारत में तंबाकू से बहुत सारे उत्पाद बनाए जा रहे हैं। इसका आर्थिक पक्ष बहुत ही सबल है। इसका व्यापार करने वालों की लॉबी देश में बहुत ही ताकतवर हो चुकी है। फिर यह बहुत सारे लोगों की आजीविका से भी जुड़ा हुआ है। एक बड़ी आबादी तंबाकू के उत्पादन से जुड़े कार्यो में लगी है। वहीं बीड़ी जैसे उत्पाद का निर्माण मुख्य तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में ही किया जाता है। तंबाकू से जुड़े लघु एवं कुटीर उद्योगों का योगदान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी है।

कहा जा सकता है कि तंबाकू के सेवन से लाखों लोग विभिन्न बिमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। इससे मरने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। केवल राजस्व के लिए कब तक हम अपनी जान के दुश्मन बने रहेंगे। इस तरह देखा जाए तो बिहार में शराबबंदी के मामले में एक सकारात्मक पहल की जा चुकी है। अब इस तरह की पहल दूसरे राज्यों में भी किए जाने की जरूरत है। अगर केंद्र व राज्य सरकार चाहें तो पूरे देश में तंबाकू को प्रतिबंधित किया जा सकता है, लेकिन लोग तंबाकू का सेवन नहीं करें इसके लिए आम लोगों को भी अपने अंदर अनुशासन विकसित करना होगा और इस बुरी लत से दूर रहने का संकल्प लेना होगा। हालांकि, इसके बरक्स अब पूरे देश में तंबाकू के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाए जाने की भी जरूरत है। मीडिया के सभी माध्यमों का उपयोग करके एवं नुक्कड़ नाटकों की मदद से मामले में सकारात्मक परिणाम लाए जा सकते हैं। शराब और तंबाकू पर रोक के लिए सख्त कानून भी बनाया जा सकता है। मगर यह तभी हो सकेगा, जब सभी दल इच्छाशक्ति दिखा पाएंगे।

शराब और तंबाकू के प्रति युवाओं का बढ़ता रुझान ही समस्या को बढ़ा रहा है। युवाओं को इस लत की ओर जाने से रोकना बेहद जरूरी है। अब देखने में यह भी आ रहा है कि देश की बड़ी आबादी बेहद कम उम्र से ही तंबाकू का सेवन शुरू कर देती है। इसलिए वे कम उम्र में ही गंभीर बिमारियों तक के शिकार हो जाते हैं। नशा उन्मूलन के खिलाफ हर साल बड़े पैमाने पर सरकारी आयोजन किए जाते हैं और एक बड़ी राशि भी खर्च की जाती है। मगर आज तक उसका प्रतिसाद नहीं मिल पाया है। हमें तंबाकू से लड़ने के लिए मिशन के रूप में शुरुआत करनी होगी और सफलता मिलने तक रुकना नहीं होगा। अगर हम तंबाकू के खिलाफ अभियान में युवाओं को जोड़ लेते हैं, तो आधी जंग तभी जीत लेंगे। बाकी की गंभीर प्रयासों से।

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