रूस से मजबूत होते भारत के रिश्तें

भारत-रूस के रिश्तों में अब पुराने दिन लौटने के संकेत साफ नजर आ रहे हैं। इस बार PM मोदी की रूस यात्रा ज्यादा महत्वपूर्ण और सफल, दोनों देश आंतरिक मामलों में किसी भी बाहरी दखल के खिलाफ खुलकर साथ आए हैं।
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रूस से मजबूत होते भारत के रिश्तेSocial Media

"भारत और रूस के रिश्तों में अब पुराने दिन लौटने के संकेत साफ नजर आ रहे हैं। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा ज्यादा महत्वपूर्ण और सफल इसलिए कही जानी चाहिए क्योंकि, दोनों देश आंतरिक मामलों में किसी भी बाहरी दखल के खिलाफ खुल कर साथ आए हैं। भारत-रूस के बीच बड़ी चुनौती यह है कि, इन दोनों देशों को अपने संबंध नए दौर के हिसाब से बनाने होंगे ।"

राज एक्सप्रेस। भारत और रूस के रिश्तों में अब पुराने दिन लौटने के संकेत साफ नजर आ रहे हैं। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा ज्यादा महत्वपूर्ण और सफल इसलिए कही जानी चाहिए कि दोनों देश आंतरिक मामलों में किसी भी बाहरी दखल के खिलाफ खुल कर साथ आए हैं। व्लादिवोस्तोक में भारत और रूस के बीच होने वाली सालाना शिखर बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साफ कहा कि अपने देश के अंदरूनी मसलों में किसी भी बाहरी दखल के वे खिलाफ हैं। यह बात पिछले महीने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म किए जाने के बाद पाकिस्तान की बौखलाहट के संदर्भ में उठी।

पाक और चीन ने संयुक्त राष्ट्र से लेकर तमाम देशों के समक्ष कश्मीर से धारा 370 को हटाने का मसला उठाया था। लेकिन हर जगह से पाकिस्तान को यही सुनने को मिला कि यह भारत का अंदरूनी मसला है व इस पर कुछ नहीं किया जा सकता। इसके अलावा अमेरिका भी समय-समय पर मामले में मध्यस्थता का शिगूफा छोड़ता रहा है, जिसे भारत ने साफ तौर खारिज कर दिया। ऐसे में अब इस मसले पर रूस ने भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। रूसी राष्ट्रपति ने तो कहा भी कि पाकिस्तान कश्मीर को लेकर अफवाहें फैला रहा है। भारत की यह कूटनीतिक उपलब्धि है। एक पुराने दोस्त ने भारत के साथ एकजुटता दिखाई है।

भारत और रूस के बीच ईरान को लेकर भी बात हुई। भारत पर अमेरिका का दबाव है कि वह उसके साथ कारोबारी रिश्ते खत्म करे। तेल आयात तो भारत को मजबूरन बंद करना ही पड़ा है। भारत किसके साथ व्यापार करे और किसके साथ नहीं, यह उसका अपना अंदरूनी मामला है। रूस तो खुल कर ईरान के साथ है। इसीलिए पुतिन ने साफ-साफ कहा कि किसी के दबाव में ईरान के साथ रिश्ते खत्म नहीं किए जा सकते। कश्मीर और ईरान के मसले पर रूस का खुल कर भारत के साथ आना बड़ी बात है।

हालांकि बदलते वैश्विक परिदृश्य में पिछले दशकों में भारत का अमेरिका की ओर झुकाव ज्यादा बढ़ा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि रूस से भारत के संबंधों पर कोई असर पड़ा। ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना से लेकर कई क्षेत्रों में रूस भारत को मदद देता रहा है। मोदी और पुतिन पिछले एक साल में छह बार मिल चुके हैं। दोनों नेताओं के बीच जिस तरह से निजी रिश्ते बन गए हैं उनका लाभ भारत को मिल रहा है। रूस ने ऊर्जा और अंतरिक्ष क्षेत्र सहित भारत के साथ पंद्रह करार किए हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि भारत की तरक्की में रूस जैसे पहले साथ था, वैसे ही आज भी है।

दोनों देशों के बीच हुए असैन्य परमाणु समझौते के तहत रूस भारत में बीस परमाणु इकाइयां लगाएगा। दूसरी ओर, भारत रूस के तेल और गैस क्षेत्र में निवेश करेगा। अंतरिक्ष के क्षेत्र में मदद के तौर पर रूस गगनयान मिशन के तहत भेजे जाने वाले भारत के अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देगा। पिछले कुछ सालों में तेजी से विकास करने वाले और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में भारत की जो छवि बनी है उसकी अहमियत रूस बखूबी समझता है। रूस यह भी जानता है कि, भारत को अपने एक पड़ोसी के कारण दशकों से आतंकवाद झेलना पड़ रहा है। ऐसे में भारत को रूस से हर स्तर पर समर्थन मिलना दोनों देशों के रिश्तों को और प्रगाढ़ करेगा।

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के अपने दो दिवसीय यात्रा के दौरान व्लादिवोस्तक में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम (ईईएफ) में कहा कि भारत सुदूर पूर्व (फार ईस्ट) के विकास के लिए एक बिलियन डॉलर लाइन ऑफ क्रेडिट (ब्याज आधारित फंड) देगा। उन्होंने भारत और सुदूर पूर्व के रिश्ता को बहुत पुराना बताते हुए कहा कि, भारत वो पहला देश था जिसने व्लादिवोस्तक में अपना काउंसलेट खोला था। अब इस भागादीरी का पेड़ अपनी जड़ें गहरी कर रहा है। भारत ने सुदूर पूर्व में एनर्जी सेक्टर और दूसरे नेचुरल रिसोर्सेज जैसे डायमंड में महत्वपूर्ण निवेश किया है।

इस दौरान मोदी ने रूस के सुदूर पूर्व के सभी 11 गवर्नरों को भारत आने का न्योता भी दिया। रूस भारत का पुराना मित्र रहा है और वैश्विक पटल पर हमेशा रूस ने भारत का समर्थन किया है फिर चाहे वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद हो या फिर अन्य उभरते हुए अंतरराष्ट्रीय संगठन हों। इस तरह से रूस का भारत के साथ जो गहरा रिश्ता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा उन्हीं रिश्तों को और मजबूत बनाने का काम करेगी। विशेषकर रक्षा और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत और रूस के बीच शुरुआत से ही समझौते होते रहे हैं।

भारत और रूस दोनों ही देश अब अपने रिश्तों को 21वीं सदी के हिसाब से तैयार करना चाहते हैं, इसी की तैयारी के लिए यह यात्रा अहम हो जाती है। अमेरिका और रूस दोनों है बड़े देश हैं और उनके अपने हित हैं। भारत को इन दोनों देशों से अपने हित साधने जरूरी हैं। मौजूदा दौर में जिस तरह का अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य बना हुआ है, उसमें कोई भी बड़ा देश किसी एक देश के साथ ही बहुत ज्यादा करीबी संबंध या खास रिश्ते नहीं रखता है। हर कोई अपने जरूरत के अनुसार दूसरे देश के संबंध स्थापित कर रहा है। रूस के संबंध भारत के साथ जितने मजबूत हैं उतने ही गहते रिश्ते रूस और चीन के बीच भी हैं।

इसलिए अब किसी एक देश के साथ बहुत करीबी रिश्ते बनाए रखने का दौर खत्म हो चुका है। यहा बात अमेरिका और रूस दोनों ही जानते हैं। हाल ही में संपन्न हुई जी 7 की बैठक में भी यह बात निकलकर आई थी। वहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा कि वो चाहते हैं कि रूस भी इस समूह का हिस्सा बने और यह दोबारा जी 8 समूह बन जाए। लेकिन फिर भी भारत के सामने अमेरिका की चिंता जरूर रहेगी, खासकर रूस के साथ रक्षा समझौते करते समय। भारत ने रूस के साथ एस-400 मिसाइल का जो समझौता किया था उस पर अमेरिकी रक्षा विभाग ने सवाल उठाए थे। अमेरिका का कहना था कि भारत रूस और अमेरिका दोनों से हथियार खरीद रहा है। उस समय भारत पर कुछ प्रतिबंध लगाने की बात भी उठी थी।

वहीं कहीं ना कहीं भारत को यह बात समझ में आ गई है कि हथियारों के मामले में जिस तरह की तकनीक रूस मुहैया करवाता है उस तरह की तकनीक अमेरिका की तरफ से उसे नहीं मिलती। हालांकि पिछले कुछ वक्त से रूस के भीतर भारत को लेकर यह नाराजगी भी देखी गई कि भारत और रूस के बीच रक्षा से जुड़े व्यापार का प्रतिशत कम होता जा रहा है लेकिन भारत ने भी अपनी बात स्पष्ट कर दी है कि वह अपने रक्षा सौदों में विविधता लाना चाहता है।

शीत युद्ध के दौर में भारत के रक्षा सौदे में 90 प्रतिशत हिस्सा रूस का होता था, वह दिन अब वापस नहीं आएंगे। भारत भी अपनी रक्षा तकनीक में विविधता लाना चाह रहा है, इसके लिए वह रूस के अलावा इसराइल, अमेरिका और यूरोप के साथ भी जा रहा है। भारत-रूस के बीच बड़ी चुनौती यह है कि इन दोनों देशों को अपने संबंध नए दौर के हिसाब से बनाने होंगे। आज भी ऐसा लगता है कि भारत और रूस शीत युद्ध के दौरान बने संबंधों के र्ढे पर ही चल रहे हैं जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा रक्षा समझौतों का है।

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