कानपुर की घटना के सबक गंभीर

कानपुर में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की करतूत भले ही आज राजनीतिक दलों को गुस्से से भर रही हो, मगर वह यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि आखिर प्रदेश में कोई भी अपराधी कानून से बड़ा कैसे हो गया?
कानपुर की घटना
कानपुर की घटनाSocial Media

कानपुर में शातिर बदमाशों को पकड़ऩे गई पुलिस टीम पर हुई फायरिंग में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए। कई सिपाहियों को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है और कई लापता हैं। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। अब तक पुलिस हुए हमलों में यह सबसे बड़ी घटना बताई जा रही है। गुरुवार रात साढ़े 12 बजे बिठूर और चौबेपुर पुलिस ने मिलकर हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के गांव बिकरू में उसके घर पर दबिश दी। विकास और उसके 8-10 साथियों ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी। घर के अंदर व छतों से गोलियां चलाई गईं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना की रिपोर्ट तलब की है और साथ ही डीजीपी एचसी अवस्थी से अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया है। कानपुर की घटना पर पूरा देश हैरान है। यह घटना उत्तर प्रदेश के उस शहर में हुई है जो राजधानी से कुछ घंटों की दूरी पर है और सरकार कानून-व्यवस्था के बड़े-बड़े दावे कर रही है।

सच कहें, तो यह घटना सरकार और कानून दोनों के मुंह पर तमाचा है। एक अपराधी देखते-देखते इतना बड़ा हो गया और पुलिस सोती रही, यह संभव नहीं है। ऐसा तभी होता है, जब किसी अपराधी को या तो पुलिस संरक्षण दे या फिर राजनीति। वैसे भी यूपी में किसी भी अपराधी को राजनीतिक संरक्षण देने का लंबा इतिहास रहा है। उत्तर प्रदेश में राजनीति और अपराध जगत का बेहद करीबी रिश्ता रहा है। यूपी की राजनीति में अतीक अहमद को एक खतरनाक बाहुबली नेता के तौर पर जाना जाता है। वो फूलपुर से सांसद रह चुका है। उस पर हत्या की कोशिश, अपहरण, हत्या के करीब 42 मामले दर्ज हैं। मुतार अंसारी माफिया-डॉन होने के साथ राजनेता भी है। अंसारी को बसपा ने खूब खाद-पानी दिया। मगर जब उसने मायावती को चुनौती दी तो 2010 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ रजा भैया के पैतृक निवास प्रतापगढ़ जिले की कुंडा तहसील के बारे में कहा जाता था कि राज्य सरकार की सीमाएं यहां खत्म हो जाती हैं, क्यूंकि वहां उसका अपना ही राज चलता था। जौनपुर के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता धनंजय सिंह के बारे में कहा जाता है कि पुलिस ने एनकाउंटर की घोषणा कर दी थी, लेकिन उसने राजनीति में शरण लेकर खुद को बचाया।

ऐसे और न जाने कितने चेहरे हैं, जिन्होंने कानून के फंदे से बचने के लिए राजनीति का सहारा लिया और हमारी राजनीति और राजनेताओं ने सत्ता के फेर में उन्हें अपना भी लिया। आज कानपुर कांड के बाद लगभग हर पार्टी मारे गए पुलिसकर्मियों के परिवार को न्याय देने का विलाप कर रही है, मगर वह यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि आखिर यूपी का यह हाल हुआ तो कैसे। विकास दुबे को ही लें, तो उसकी पैठ हर राजनीतिक दल में होती थी। इसी वजह से आज तक उसे नहीं पकड़ा गया। विकास दुबे कई राजनीतिक दलों में भी रहा है, जो आज घटना पर आक्रोश जता रहे हैं।

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