ग्वालियर-चंबल संभाग विधानसभा चुनाव में बनेगा चुनावी रणक्षेत्र
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। प्रदेश में विधानसभा चुनाव को 7 माह का समय है, लेकिन दोनों ही दलों ने अभी से अपने चुनावी समीकरण बनाने का काम शुरू कर दिया है। इस बार भी ग्वालियर-चंबल संभाग विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों ही दलों के लिए रण क्षेत्र रहेगा, क्योंकि दोनों ही दल यह मानकर चल रहे है कि यदि इस संभाग में बढ़त बना ली तो सरकार आसानी से बनाई जा सकती है, यही कारण है कि कांग्रेस व भाजपा के दिग्गजों ने अभी से ग्वालियर-चंबल संभाग पर फोकस करना शुरू कर दिया है ओर दौरे भी शुरू कर दिए है। अब चुनाव के समय संभाग किसका साथ देता है यह तो आने वाले वक्त में ही पता लगेगा, लेकिन फिलहाल दोनों ही दल यह मान कर चल रहे हैं कि संभाग से उनको ही बढ़त मिलेगी।
राजनीति में विधानसभा चुनाव से पहले ही नेता जनता की नब्ज टटोलने का काम करते हैं, ताकि चुनाव के समय टिकट वितरण में आसानी हो सके। यही कारण है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ लगातार ग्वालियर-चंबल संभाग के नेताओं की बैठकें कर यह पता लगाने में लगे हुए हैं कि राजनीतिक हवा किस तरफ चल रही है। वहीं भाजपा नेताओ ने भी हवा का रूख भांपना शुरू कर दिया है ओर इसके चलते उनके भी दिग्गज नेताओं ने दौरे शुरू कर दिए हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में 34 विधानसभा सीटे हैं। वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के समय दोनों ही संभाग ने कांग्रेस का खुलकर साथ दिया था ओर 34 सीटों में से कांग्रेस को 26 सीटें मिली थीं जबकि भाजपा को 7 व बसपा को एक सीट मिली थी। अंचल में भाजपा की हार के चलते ही उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी ओर 15 माह बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाराज होने से उनके समर्थक विधायकों ने कांग्रेस से दूर होकर कमलनाथ की सरकार को गिरा दिया था। इसके बाद हुए उप चुनाव में अंचल में भाजपा को ताकत दी ओर 7 विधानसभा सीट की संख्या से वह 17 पर पहुंच गई थी।
सिंधिया के गढ़ को भेदने पर सबसे अधिक जोर :
कांग्रेस से सिंधिया के भाजपा में चले जाने के बाद से ही कांग्रेस नेताओं के निशाने पर भाजपा कम सिंधिया अधिक है, यही कारण है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता लगातार अंचल में दौरे कर रहे है ओर सिंधिया के गढ़ को भेदने के लिए इसी अंचल के कांग्रेस विधायक डॉ. गोविन्द सिंह को नेता प्रतिपक्ष का दायित्व देकर एक तरह से उनको घेरने का प्रयास शुरू कर दिया है। नेता प्रतिपक्ष मुखर होकर सिंधिया पर लगातार हमला भी कर रहे है ओर वह अंचल में कांग्रेस के सबसे पुराने विधायकों में माने जाते है ऐसे में वह दोनों अंचलों में खासा प्रभाव भी रखते है। इसके साथ ही क ांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के अलावा युवा चेहरे भी लगातार दोनों संभागों का दौरा कर जनता की नब्ज पहचानने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की नजर ऐसे भाजपा नेताओं पर भी है जो मूल भाजपाई होने के बाद भी पार्टी से नाराज चल रहे है। चुनाव के वक्त ऐसे नेताओं की अदला-बदली होने की संभावना जताई जा रही है।
सिंधिया सक्रिय होकर अपने प्रभाव को बरकरार रखने में जुटे :
वहीं विधानसभा चुनाव केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए भी अहम माना जा रहा है, क्योकि इस विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही यह तय हो सकेगा कि सिंधिया का अंचल में कितना प्रभाव है। इसके पीछे कारण यह है कि सिंधिया समर्थक मंत्रियों की पटरी फिलहाल मूल भाजपाईयों से नहीं बैठ पा रही है, लेकिन सिंधिया पूरी तरह से भाजपा की पटरी पर चल रहे है ओर अपने समर्थकों को भी उसी पटरी पर चलने की सलाह दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव अब नजदीक आता जा रहा है तो सिंधिया ने भी दोनों संभागों में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है, जिससे वह अपने प्रभाव को बरकरार रख सकें। वैसे विकास का मामला जब भी आता है तो उसमें सिंधिया का नाम जरूर जुड़ता है, क्योंकि अंचल में विकास कार्य कराने में सबसे अधिक सक्रियता सिंधिया परिवार ही दिखाता रहा है ओर उसी राह पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चल रहे हैं। वहीं अंचल में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा खासे सक्रिय हो गए हैं।
एससी-एसटी वर्ग को साधने पर जोर :
ग्वालियर-चंबल संभाग में वर्ष 2018 में एससी-एसटी वर्ग ने कांग्रेस का साथ दिया था। इसके कारण कांग्रेस ने अंचल में 34 में से 26 सीटें जीती थीं। अब उसी वर्ग को अपने पाले में करने के लिए भाजपा व कांग्रेस ने रविदास जयंती पर जिस तरह से आयोजन किए ओर उसमें दोनों दलों के दिग्गजों ने शिरकत की उसको देखते हुए अब यह तय माना जा रहा है कि होने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों संभाग में राजनीतिक रणक्षेत्र में भाजपा व कांग्रेस आमने-सामने होंगे ओर उसकी शुरुआत रविदास जयंती से हो गई है।
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