भारत में कोरोना संक्रमण के प्रसार को लेकर किए जा रहे अध्ययन बता रहे हैं कि अगर लोगों और सरकारों के स्तर पर लापरवाही नहीं बरती गई होती और बचाव के उपायों को पूरी तरह से अपनाया होता, तो हालात इतने ज्यादा नहीं बिगड़ते। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि महज आठ फीसद लोगों ने साठ फीसद से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर डाला। दोनों राज्यों में पौने छह लाख संक्रमितों पर यह अध्ययन किया गया जो करीब 85 हजार पुष्ट मामलों के संपर्क में आए थे। जाहिर है, संक्रमण की श्रृंखला काफी तेजी से बढ़ती गई। चौंकाने वाली बात यह है कि संक्रमण के ऐसे सबसे ज्यादा मामले बच्चों में देखने को मिले, जिनमें नवजातों से लेकर चौदह साल तक के बच्चे थे। 65 साल से अधिक उम्र वाले लोगों में भी संक्रमण का फैलाव इसी तरह हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की तरह और राज्यों में भी संक्रमण के फैलाव को लेकर अध्ययन कराया जाए तो नतीजे लापरवाही की ही कहानी कहते मिलेंगे।
अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत दुनिया में तीसरा देश है जहां कोरोना का कहर सबसे ज्यादा बरपा है। इस साल तीस जनवरी को पहला मामला सामने आया था और आठ महीने में यह आंकड़ा 63 लाख को पार कर गया। सबसे ज्यादा चिंताजनक तो यह है कि 26 लाख से ज्यादा मामले सिर्फ सितबंर महीने में आए। यह संख्या अब तक कुल कोरोना संक्रमितों की संख्या का 41 फीसद है। हालांकि इसका बड़ा कारण जांच भी रही है। शुरू में भारत के पास जांच के लिए पर्याप्त उपकरण और प्रयोगशालाएं नहीं थीं, लेकिन अब रोजाना लाखों लोगों की जांच हो रही है। ऐसे में संक्रमितों का पता लगना और उन्हें समय पर समुचित इलाज मिलना आसान हो गया है। जहां तक कोरोना से होने वाली मौतों का सवाल है तो अब यह आंकड़ा एक लाख के करीब पहुंचने को है और इसमें सितंबर में ही सबसे ज्यादा 33 हजार 390 मौतें हुईं, जो अब तक संक्रमण से हुई मौतों का करीब चौंतीस फीसद है। लेकिन राहत की बात यह है कि भारत में संक्रमण से उबरने वालों की दर भी निरतंर बढ़ रही है।
सितंबर में संक्रमण से होने वाली मौतों का सर्वाधिक आंकड़ा देखने को मिला, तो दूसरी ओर सबसे ज्यादा लोग भी इसी महीने में ठीक हुए। दुनियाभर में कोरोना महामारी पर करीबी से नजर रखने वाली अमेरिका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की ताजा रिपोर्ट बता रही है कि भारत दुनिया में पहला देश है जहां लोग संक्रमण से सबसे तेजी से उबर रहे हैं। इसके बाद ब्राजील और अमेरिका हैं। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में किया गया अध्ययन इस बात की ओर भी इशारा करता है कि हम चाहें तो संक्रमण को फैलने से अभी भी रोक सकते हैं। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि संक्रमितों को लेकर किसी भी स्तर पर कहीं कोई लापरवाही नहीं बरती जाए। पिछले कुछ महीनों में अस्पतालों से संक्रमितों के भाग निकलने एवं तमाम प्रतिबंधों के बावजूद लोगों द्वारा बचाव संबंधी उपायों का पालन न करने जैसी अनगिनत घटनाएं सामने आती रही हैं।
अब लॉकडाउन खत्म हो जाने के बाद लोग भी निश्चिंत और लापरवाह हो चले हैं। लग रहा है जैसे महामारी अब कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। हाल में स्वास्थ्य मंत्री को भी यह कहने को मजबूर होना पड़ा कि लोगों की लापरवाही से संक्रमण ज्यादा फैला। इसलिए अगर हमें कोरोना से बचना है तो मास्क और सुरक्षित दूरी जैसे उपायों को तो अपनाना ही होगा। देश में रोजाना जिस संख्या में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं, उससे यह तो स्पष्ट है कि महामारी का प्रसार अभी कमजोर नहीं पड़ा है। हालांकि एक हफ्ते के दौरान संक्रमण के मामलों में कमी तो आई है और स्वस्थ होने की दर भी बढ़ रही है, लेकिन चिंता की बात यह है कि महामारी के प्रति लोग अब लापरवाह होते जा रहे हैं और इससे बचाव के उपायों को नजरअंदाज कर रहे हैं। लोगों के इस लापरवाह रवैए पर देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का क्षुब्ध होना स्वाभाविक है। इसीलिए उन्हें आमजन से फिर यह अपील करने को मजबूर होना पड़ा कि लोग बचाव के जरूरी उपायों का कठोरता से पालन करें और महामारी को फैलने से रोके।
हाल ही में मध्यप्रदेश के इंदौर में तो हद तब हो गई जब उपचुनावों के प्रचार के लिए बड़ी-बड़ी रैलियां की गईं जिनमें कोरोना से बचाव के सारे नियमों-उपायों की धज्जियां उड़ाई गईं। राजस्थान में पंचायत चुनाव मतदान के दौरान किसी ने यह नहीं सोचा कि उसे महामारी से बचाव के नियमों का पालन करना चाहिए। हाल में गुजरात के एक विधायक कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद एक मंदिर में भीड़ के सामने नाचते नजर आए थे। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जो कोरोना को लेकर लोगों की लापरवाही को बताते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि जब तक इस महामारी से बचाव का कोई इलाज नहीं खोज लिया जाता, तब तक इससे बचाव के उपाय ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। यह मान बैठना बड़ी भूल होगी कि संक्रमण का प्रसार अब खत्म हो चुका है, इसलिए अब खतरे की कोई बात नहीं है। चिकित्सा विशेषज्ञ ऐसी आशंका भी जता रहे हैं कि तमाम मामलों में अभी भी लक्षणों का उभर कर नहीं आना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है और ऐसे संक्रमिक लोग भी विषाणु के वाहक बन रहे हो सकते हैं।
इसके अलावा महामारी विशेषज्ञ संक्रमण के दूसरे को लेकर भी आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं। इन दिनों डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियां भी जोर पकड़ने लगी हैं। सर्दियों में दिल्ली सहित कई शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति जानलेवा हो जाती है। ऐसे में अगर कोरोना संक्रमण का प्रसार नहीं रुका तो हालात कितने बदतर हो जाएंगे, कोई सोच भी नहीं सकता। इसलिए लोगों के साथ-साथ सरकारों को भी अभी पूरी तरह से सतर्क रहने की जरूरत है और बचाव के उपायों को अपनाना ही इस समस्या से निजात पाने का एकमात्र रास्ता है। अब तो भारत में मरने वालों की संख्या एक लाख पार कर चुकी है। कहा जा रहा है कि अक्टूबर अंत और नवंबर में महामारी के मामले और बढ़ेंगे। तो यह हम सभी के लिए खतरे की घंटी है। बचाव का एकमात्र रास्ता है और वह सभी को पता है। वैक्सीन आने तक हमें खुद ही बचाव करना है। अगर हम ऐसा करते हैं, तो सुरक्षित है और नहीं करते हैं तो अपने और दूसरों के लिए मुसीबत ही खड़ी करेंगे।
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