निवार तूफान के गुजर जाने के बाद अब एक और चुनौती

मौसम विभाग ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में उच्च दबाव के चक्रवाती तूफान के रूप में बदलने की संभावना है। उम्मीद है कि अनुमान सटीक बैठेंगे और नुकसान टल जाएगा।
चक्रवाती तूफान
चक्रवाती तूफानSocial Media

देश में जहां इस साल लोग कोरोना महामारी से त्रस्त हैं वहीं चक्रवाती तूफानों का सिलसिला भी लगातार जारी है। कुछ दिन पहले चक्रवाती तूफान निवार ने दक्षिणी राज्यों में कहर बरपाया था। और अभी इसके गुजरे हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ कि मौसम विभाग ने एक और चक्रवाती तूफान की चेतावनी जारी कर दी है। मौसम विज्ञान विभाग ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में उच्च दबाव के चक्रवाती तूफान के रूप में बदलने की संभावना है। मौसम विभाग ने मछुआरों को चेतावनी देते हुए कहा है कि समुद्र क्षेत्र में न जाएं। इसके अलावा मौसम विभाग ने कोमोरिन क्षेत्र, मन्नार की खाड़ी, दक्षिण तमिलनाडु, केरल और श्रीलंका के पश्चिमी तट पर भी खतरे की चेतावनी दी है। बता दें कि इस साल आने वाली यह तीसरा चक्रवाती तूफान था, इससे पहले मई में सुपर साइक्लोनिक अफान और जून में चक्रवाती तूफान निसर्ग भारत में तबाही मचा चुका है। उसके बाद निवार ने भी तबाही मचाई।

इस साल आए तूफानों को लेकर ज्यादा क्षति इसलिए नहीं हुई क्योंकि मौसम वैज्ञानिकों ने सही अंदाजा लगाना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि अब समुद्री तूफानों की वजह से नुकसानों को कम करने की कोशिशें संभव हो पा रही हैं। ‘निवार’ को लेकर भी जो आंकलन सामने आए थे, उसी वजह से पुडुचेरी और तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों के दो लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। बचाव के इन्हीं पूर्व इंतजामों की वजह से बड़ी तादाद में लोगों को बचाया जा सका। फिर भी तमिलनाडु में तीन लोगों की जान चली गई। पुदुचेरी में व्यापक जलभराव हो गया और बहुत सारे पेड़ गिर गए, तेज हवा के साथ भूस्खलन के दौरान बिजली की आपूर्ति बाधित हुई। निश्चित रूप से भूकंप, चक्रवात, बरसात और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सकता, लेकिन उससे बचने के इंतजाम जरूर किए जा सकते हैं। दुनिया भर में ऐसे उदाहरण आम रहे हैं जिनमें समय-पूर्व संकेत मिल जाने के बाद समुद्री तूफानों से बचाव के इंतजाम किए गए और लाखों लोगों को बचा लिया गया।

ओडिशा के तटीय इलाकों में आने वाले तूफानों से तबाही किसी आम घटना की तरह थी। लेकिन 1999 में सुपर साइक्लोनिक तूफान वहां के तटीय किनारों से 250 किलोमीटर से भी ज्यादा रफ़्तार से टकराया था और उसमें समूचे राज्य में भारी तबाही हुई थी। दस हजार से ज्यादा लोग और साढ़े चार लाख से ज्यादा जीव-जंतु मारे गए। उस आपदा के बाद ओडिशा ने सबक लिया और ऐसे तूफानों से लडऩे के बजाय उससे बचाव के मोर्चे पर ध्यान केंद्रित किया। भूकंप के सटीक पूर्वानुमानों तक पहुंचना अभी बाकी है, लेकिन समुद्री तूफानों के मामले में दुनिया भर में विज्ञान के संसाधनों के जरिए करीब-करीब सही अंदाजा लगा लिया जाता है। इस तरह के कदमों से नुकसान के अनुपात को कम किया जा सकता है।

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