जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में अब कोई भी भारतीय जमीन खरीद सकेगा

सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए भूमि कानून से जुड़ा नोटिफिकेशन जारी किया है। कोई भी भारतीय जमीन खरीद सकेगा। कश्मीर के अब भी कुछ दल हैं, जिन्हें लगता है कि वे 370 बहाल करा लेंगे
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केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए भूमि कानून से जुड़ा नोटिफिकेशन जारी किया है। अब कश्मीर और लद्दाख में अब कोई भी भारतीय जमीन खरीद सकेगा। दोनों केंद्र शासित राज्यों में यह कानून तत्काल लागू होगा।अभी तक कश्मीर में जमीन खरीदने के लिए वहां का नागरिक होने की बाध्यता थी। अब यह बाध्यता केंद्र ने खत्म कर दी है। सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन के तहत आदेश जारी किया है। अभी तक जम्मू-कश्मीर में पिछले साल अगस्त में अनुच्छेद 370 और 35ए हटने से पहले ऐसा व्यक्ति अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता था, जो जम्मू-कश्मीर का निवासी ना हो। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्लाह ने केंद्र के इस फैसले का विरोध किया है। उन्होंने एक ट्वीट किया। इसमें लिखा-जम्मू-कश्मीर के भूमि कानूनों जो बदलाव किया गया है, वह स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अब कश्मीर की सेल चालू होगी और छोटे जमीन मालिकों को तकलीफ होगी।

सरकार का यह फैसला कश्मीर में धारा 370 की वापसी के लिए शुरू किए गए प्रयासों के बाद आया है। माना जा रहा है कि यह आदेश विपक्षी एकता को कुंद करने के लिए ही जारी किया गया। बता दें कि जम्मू-कश्मीर में पिछले साल जब अनुच्छेद 370 की समाप्ति हुई, तो उसका एक संदर्भ यह भी था कि इससे भारत की संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाए रखने में मदद मिलेगी। तब स्थानीय राजनीति में उथल-पुथल की आशंका के मद्देनजर वहां के कुछ नेताओं को नजरबंदी जैसी स्थिति में रखा गया। हाल ही में इस मसले पर सरकार ने पहलकदमी करते हुए नेताओं को नजरबंदी से छुटकारा दिया है, ताकि वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की ओर कदम बढ़ाए जा सकें। मगर सरकार की सोच गलत थी। रिहाई के बाद जम्मू-कश्मीर के छह दलों ने मिल कर राज्य का विशेष दर्जा वापस दिलाने के लिए एक नया मोर्चा बनाने की घोषणा की, तब ऐसा लगा भी कि अब भारतीय संविधान के तहत वहां नए सिरे से राजनीतिक गतिविधियों की शुरुआत होंगी।

लेकिन अब पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी की नेता महबूबा मुफ़्ती ने जिस तरह की अपरिपक्वता दर्शाई है, उससे लगता है कि या तो उन्हें स्थानीय तकाजों का ख्याल नहीं है या वे अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराने के मकसद से कोई नया विवाद खड़ा करना चाहती हैं। उन्हीं की राह पर फारूक और उमर भी निकल पड़े हैं। मगर इन दलों को अपने ही नेताओं के गिरेबां में झांककर देख लेना चाहिए। पीडीपी के ही कई नेता महबूबा के तिरंगा वाले बयान के बाद पार्टी छोड़ चुके हैं और उनके खिलाफ ही माहौल बनने लगा है। धारा-370 की वापसी मुमकिन नहीं है। यह ऐसा मुद्दा है, जिससे देश की भावनाएं जुड़ी हैं। अगर महबूबा और फारूक इस मुद्दे को लेकर आगे बढ़ेंगे तो कश्मीर में ही अपनी राजनीतिक हैसियत को खो देंगे। देश के बाकी हिस्सों में उनका जनाधार वैसे भी नहीं है।

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