अब आयुर्वेद के डॉक्टर मरीजों की सर्जरी कर सकेंगे

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि देश में अब आयुर्वेद के डॉक्टर मरीजों की सर्जरी कर सकेंगे। कोरोना काल में सभी ने आयुर्वेद की अहमियत देखी है।
अब आयुर्वेद के डॉक्टर मरीजों की सर्जरी कर सकेंगे
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पिछले दिनों केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि देश में अब आयुर्वेद के डॉक्टर भी मरीजों की सर्जरी कर सकेंगे। भारत सरकार ने आयुर्वेद के स्नातकोार छात्रों को सामान्य सर्जरी की अनुमति दे दी है। इसके तहत डॉक्टर हड्डीरोग, नेत्र विज्ञान, नाक- कान-गला और दांतों से जुड़ी सर्जरी भी कर सकेंगे। आयुर्वेदिक अध्ययन के कोर्स में सर्जिकल प्रक्रिया के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल को जोड़ा जाएगा। इसके लिए अधिनियम का नाम बदलकर भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद संशोधन विनियम, 2020 किया गया है। दरअसल, देश में आयुष चिकित्सा की प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टरों की ओर से लंबे समय से एलोपैथी के समान अधिकार देने की मांग हो रही थी। हालांकि, आईएमए द्वारा इस फैसले का तगड़ा विरोध किया जा रहा है। मगर सरकार का तर्क है कि नया आदेश वर्तमान में देश की चिकित्सीय व्यवस्था के लिए बेहतर साबित होगा।

इससे पहले कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए केंद्र सरकार ने देश की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को मान्यता देकर इस महामारी से निपटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया था। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसके लिए तौर-तरीकों संबंधी जो दिशा-निर्देश जारी किए, उनसे पूरे देश में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से भी कोरोना का इलाज संभव हो सकेगा। पिछले छह महीने के दौरान कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए सिर्फ एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति पर ही निर्भरता बनी हुई थी। चाहे संक्रमण हल्का हो या ज्यादा, हर मरीज को तय नियमों के मुताबिक सरकारी, निजी अस्पतालों में भेजा जा रहा था। इससे लोगों के मन में खौफ ज्यादा बनता गया और लोग बीमारी को छिपाने लगे। हालांकि सरकार होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को भी इस तरह की मान्यता दे चुकी है। देश में अभी जिस तरह से लाखों लोग संक्रमण का सामना कर रहे हैं, उसमें सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति के बूते हालात से निपट पाना संभव नहीं है।

भारत की बड़ी आबादी ऐसी है जो अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति का खर्च नहीं उठा सकती। हर किसी ने देखा है कि जिन कोरोना मरीजों को सरकारी अस्पतालों में जगह नहीं मिली और निजी अस्पतालों की ओर भागने को मजबूर होना पड़ा, उन्हें जान बचाने के लिए लाखों रुपए फूंकने पड़े। इनमें ज्यादातर मामले तो ऐसे मिल जाएंगे जिनमें संक्रमण बहुत ही मामूली रहा, लेकिन फिर भी अस्पतालों ने जेब खाली करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में जब कानूनन सिर्फ एक ही चिकित्सा पद्धति से इलाज करवाने की मजबूरी हो, तो किया भी क्या जा सकता था! लेकिन अब कोरोना से जंग में आयुर्वेद की अहमियत को मान्यता मिल जाने से लोग बहुत ही सस्ते में अपना इलाज करवा सकेंगे। ठीक इसी तरह जब आयुर्वेद को सर्जरी की इजाजत मिल गई है तो मरीज मंहगे डेंटिस्ट के पास न जाकर पैसे की बचत कर पाएंगे और इलाज भी। इसलिए सरकार के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए।

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