शहरों के बाद गांवों में संक्रमण फैलना चिंता की बात

शहरों में संक्रमण भले कम दिख रहा हो, मगर गांवों में महामारी के फैलाव को रोकने एक साथ कई मोर्चे खोलने की दरकार है। इसीलिए विशेषज्ञ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कारगर रणनीति बनाने पर जोर दे रहे हैं।
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कोरोना के आंकड़ों में कमी राहत की बात है। कुछ दिन पहले संक्रमितों का रोजाना आंकड़ा चार लाख से ऊपर बना हुआ था। यह अब तीन लाख के नीचे आ गया है। हालांकि इसकी एक वजह जांच में कमी को माना जा रहा है। जांच कम होगी तो मामले भी कम निकलेंगे। फिर, पिछले साल के मुकाबले इस बार दूसरी लहर को लेकर लोगों के भीतर खौफ भी कम नहीं है। लोग घर से निकलने से बच रहे हैं। ऐसे में संक्रमण को रोकने में मदद मिली है। बहरहाल, आंकड़ों के हिसाब से हालात में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। पिछले छह दिनों में उपचाराधीन मामलों में साढ़े तीन लाख से ज्यादा की कमी दर्ज की गई। जाहिर है, मरीजों के ठीक होने की दर भी बढ़ रही है। 29 अप्रैल को जहां यह 81.90 फीसद थी, वहीं 15 मई को 84.78 फीसद दर्ज की गई। इससे विशेषज्ञों को उम्मीद बंधी है कि हालात जल्दी जनवरी के स्तर तक आ जाएंगे। जनवरी में मरीजों के ठीक होने की दर 97 फीसद थी। लेकिन इस मुगालते में रहना कि संकट टल गया है, ठीक नहीं है।

सुधार की रफ़्तार भले दिखने लगी हो, लेकिन मौतों का आंकड़ा अभी भी चिंताजनक है। जब मामले चार लाख के ऊपर थे, तब भी रोजाना होने वाली मौतों का आंकड़ा साढ़े तीन से चार हजार के बीच बना हुआ था और आज जब संक्रमितों का रोजाना का आंकड़ा 2.50 लाख के करीब आ गया है तब भी मौतों का प्रतिदिन का आंकड़ा चार हजार के ऊपर है। इससे पता चलता है कि दो से तीन हफ्ते पहले जो संक्रमित भर्ती हुए होंगे, उनकी स्थिति ज्यादा गंभीर रही होगी। माना जाता है कि संक्रमण और मौत के बीच दो से तीन हफ्ते का अंतर रहता है। ऐसे में अगर अब संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं तो मौतों के आंकड़ों में कमी आने में दस से 15 दिन लग सकते हैं। अभी भी ज्यादातर उपचाराधीन मरीज सघन चिकित्सा में हैं। ऐसे में आने वाले दो-तीन हफ्तों में मौतों का आंकड़ा कितना कम या ज्यादा होता है, इसका अनुमान लगा पाना मुश्किल है।

भूलना नहीं चाहिए कि देश में अब तक संक्रमितों का आंकड़ा ढाई करोड़ पार कर चुका है। दुनिया के सबसे संकटग्रस्त देशों में भारत दूसरे नंबर पर है। उधर, गांवों में महामारी से हालात बिगड़ रहे हैं। शहरों के बाद गांवों में संक्रमण फैलना चिंता की बात है। ग्रामीण इलाकों में देश की दो तिहाई आबादी रहती है। यह देश का वह इलाका है जहां बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर लगभग कुछ नहीं है। गांवों में महामारी से निपटने को लेकर प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों मुख्यमंत्रियों, डीएम व डॉक्टरों से बात की। जाहिर है, अब सरकार भी हालात को लेकर चिंतित तो है ही। अभी बड़ी मुश्किल यह है कि गांव-गांव तक चिकित्साकर्मियों की पहुंच ही नहीं है। बेशक यह इंतजाम रातों-रात संभव नहीं हो पाता। महामारी को आए पूरा एक साल से ज्यादा हो गया है। अगर सरकारों का ध्यान गांवों पर भी होता तो एक साल का वक्त कम नहीं था।

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